अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर ब्रेक्जिट जैसे जनमत संग्रह का कोई सवाल ही नहीं : सुप्रीम कोर्ट
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अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर ब्रेक्जिट जैसे जनमत संग्रह का कोई सवाल ही नहीं : सुप्रीम कोर्ट

अदालत ने कहा कि भारत एक संवैधानिक लोकतंत्र है, जहां इसके निवासियों की इच्छा केवल स्थापित संस्थानों के माध्यम से ही सुनिश्चित की जा सकती है

by WEB DESK
Aug 9, 2023, 09:57 pm IST
in दिल्ली
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सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 370 को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर ब्रेक्जिट जैसे जनमत संग्रह कराने का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि न्यायालय इस सवाल से जूझ रहा है कि क्या इसे निरस्त करना संवैधानिक रूप से वैध था। अदालत ने कहा कि भारत एक संवैधानिक लोकतंत्र है, जहां इसके निवासियों की इच्छा केवल स्थापित संस्थानों के माध्यम से ही सुनिश्चित की जा सकती है।

दरअसल, मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की, जब वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करना ब्रेक्जिट की तरह ही एक राजनीतिक कृत्य था, जहां ब्रिटिश नागरिकों की राय जनमत संग्रह के माध्यम से प्राप्त की गई थी, लेकिन 5 अगस्त 2019 को जब अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया था तब ऐसा नहीं था।

कांग्रेस नेता मोहम्मद अकबर लोन की ओर से कपिल सिब्बल पेश हुए थे, जहां उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने को चुनौती दी है। इस दौरान सिब्बल ने कहा, ‘संसद ने जम्मू-कश्मीर पर लागू संविधान के प्रावधान को एकतरफा बदलने के लिए अधिनियम को अपनी मंजूरी दे दी। यह मुख्य प्रश्न है कि इस अदालत को यह तय करना होगा कि क्या भारत सरकार ऐसा कर सकती है।’

इस दौरान उन्होंने जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की अनुपस्थिति में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की संसद की शक्ति पर भी सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि केवल संविधान सभा को अनुच्छेद, 370 को निरस्त करने या संशोधित करने की सिफारिश करने की शक्ति निहित थी और चूंकि संविधान समिति का कार्यकाल 1957 में समाप्त हो गया था, इसलिए जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संवैधानिक प्रावधान को स्थायी मान लिया गया।

कपिल सिब्बल की दलीलों के बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘संवैधानिक लोकतंत्र में लोगों की राय जानने का काम स्थापित संस्थानों के माध्यम से किया जाना चाहिए। आप ब्रेक्जिट जैसे जनमत संग्रह जैसी स्थिति की कल्पना नहीं कर सकते।’ साथ ही उन्होंने कहा हमारे जैसे संविधान के भीतर जनमत संग्रह का कोई सवाल ही नहीं है। इधर सिब्बल ने जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के केंद्र के फैसले पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि संविधान इसकी अनुमति नहीं देता है।

Topics: जनमत संग्रहजम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रहArticle 370 in Supreme CourtReferendum in Jammu and KashmirSupreme Courtसुप्रीम कोर्टreferendumhearing on article 370सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370अनुच्छेद 370 पर सुनवाई
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