उत्तराखंड: वन पंचायतों को आत्मनिर्भर बनाने का मसौदा तैयार, शासन को भेजे गए संशोधन प्रस्ताव

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उत्तराखंड ब्यूरो

देहरादून: उत्तराखंड में वन पंचायतों को आत्मनिर्भर बनाए जाने की दिशा में काम तेज हो गया है। इसके लिए वन पंचायत के ब्रिटिश काल के अधिनियमों में संशोधन किया जा रहा है।  मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का विजन है कि वन पंचायतों को अपने जंगल की उपज के मार्केटिंग के अधिकार दिए जाएं, ताकि वो सशक्त हो सके और उनकी रुचि जंगल के प्रति बराबर बनी रहे।

उत्तराखंड में 453165.55 वर्ग किमी में वन पंचायत के जंगल है, देश में उत्तराखंड पहला ऐसा राज्य है जिसकी वन पंचायतें है और वो इन जंगलों का प्रबंधन करती है। ये व्यवस्था ब्रिटिश हुकूमत ने 1815 में बनाई थी। आजादी के बाद इस व्यवस्था के नियमों में 14 बार संशोधन किए गए हैं और राज्य बनने के बाद इनमें तीन बार बदलाव किए गए और अब उत्तराखंड की धामी सरकार भी उत्तराखंड वन पंचायती राज नियमवाली 2012 में  फिर से संशोधन करने जा रही है।

इस बारे में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के दिशा निर्देश पर मुख्य सचिव डॉ. एस एस संधू ने एक बैठक कर वन महकम्मे को इस बारे में सीएम धामी का विजन समझा दिया है, जिसके बाद उत्तराखंड वन पंचायत विभाग ने इस बारे में अपना अध्ययन कर एक मसौदा तैयार कर लिया है।

उत्तराखंड के गढ़वाल में 5329 और कुमायूं में 5891 यानि कुल 11220 वन पंचायतें सक्रिय है। इनमें वानिकी के कार्य किए जाते है और इनका समय समय पर अवलोकन और योजनाओं की समीक्षा का कार्य होता रहा है।

सीएम धामी चाहते हैं कि ये वन पंचायतें स्वतंत्र रूप से अपने उपज का विपणन प्रबंधन करें। इस दिशा में जो प्रस्ताव तैयार किया गया है उसमें वन पंचायतों को  कूड़ा कचरा, छोटे अपराधों का चलान करने ,जुर्माना वसूलने का अधिकार, लीसा, शिलाजीत, चीड़ पत्ता, गुलिया, कीड़ा जड़ी आदि गैर प्रकाष्ठ वन उपज की बिक्री का अधिकार मिल जाएगा। इससे उन्हे होने वाली आय को वे जंगल के रख रखाव में लगाएंगे।

वन पंचायतों में ये कार्य अभी भी होते हैं लेकिन इसमें डीएफओ का अधिकार या दखल रहता है। जिसकी वजह से लोगों का जंगल के प्रति मोह खत्म हो रहा है। वन पंचायतें अभी तक ग्राम सभा से लगे अपने जंगलों के रखरखाव, वृक्षारोपण, वनाग्नि से बचाव आदि का काम स्वयं सहायता समूह या कहें कि सहकारिता की तरह करती आई है, लेकिन इनका प्रबंधन वन विभाग के डीएफओ स्तर से किया जाता है। डीएफओ कार्यालय में लालफीताशाही की वजह से वन पंचायती व्यवस्था दम तोड़ने की कगार पर न पहुंच जाए इसलिए धामी सरकार ने इसमें बदलाव करने का मन बना लिया है।

क्या कहते हैं पीसीसीएफ,(वन पंचायत) धनंजय मोहन ?
सरकार के निर्देश पर वन पंचायतों को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से संशोधन प्रस्ताव तैयार किए गए हैं। काफी समय से इन प्रस्तावों पर चर्चा की जा रही थी। ये प्रस्ताव मुख्य सचिव की अध्यक्षता बैठक में रखे जाएंगे।

क्या कहते हैं मुख्य वन संरक्षक( वन पंचायत सामुदायिकि वानिकी ) डॉ. पराग मधुकर धकाते ?

वन पंचायतीराज राज नियमावली 2012 में संशोधन के बाद वन पंचायत प्रबंध समितियां एक गवर्निग बॉडी की तरह काम करेंगी, इन्हें ज्यादा अधिकार मिलेंगे ये जड़ी बूटी, लीसा, शिलाजीत और अन्य गैर प्रकाष्ठ उपज की बिक्री कर सकेंगे, उन्हें निर्णय लेने के अधिकार मिलेंगे और उनका बाजार से सीधा जुड़ाव हो जाएगा। इससे गांवों में रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।

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