सऊदी अरब के जेद्दाह में रूस—यूक्रेन युद्ध की समाप्ति और शांति के प्रयासों हेतु एक महत्वपूर्ण सम्मेलन चल रहा है। चार दिन के इस सम्मेलन में भारत सहित 30 देशों को आमंत्रित किया गया है। कल सम्मेलन का दूसरा दिन था। भारत के प्रतिनिधि NSA अजित डोवल ने अपने भाषण में स्पष्ट कहा कि भारत तो यूक्रेन में चल रहे संघर्ष के समाधान की कोशिश में लगातार जुटा हुआ है।
डोवल ने इस संदर्भ में भारत की भूमिका स्पष्ट करते हुए कहा कि यूक्रेन में शांति के लिए हमारा देश आरम्भ से ही वार्ता तथा कूटनीति की बात करता आ रहा है। यूक्रेन संघर्ष का समाधान इस तरह निकालना होगा जो दोनों संबंधित पक्षों रूस तथा यूक्रेन को स्वीकार हो। भारत की दृष्टि से यह सबसे आवश्यक बात है।
उन्होंने इस संबंध में ध्यान दिलाया कि इसी साल के आरम्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान में जी-7 सम्मेलन में भाग लिया था। वहां उनकी सम्मेलन से अलग, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की से बात भी हुई थी। इस चर्चा में उन्होंने जेलेंस्की का विश्वास दिलाया था कि इस संकट को दूर करने के लिए भारत जो भी कर पाएगा वह करेगा।
इस सम्मेलन को आयोजित करने वाले सऊदी अरब को लेकर कुछ रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि चीन ने जिस प्रकार ईरान तथा सऊदी अरब के बीच समझौता कराने को लेकर खुद के सिर पर एक बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि का सेहरा बांधा था, कुछ उसी तरह सऊदी अरब भी चाहता है कि यूक्रेन संकट के समाधान की खोज उसकी कूटनीतिक सफलता का परचम लहराए। क्योंकि यदि जेद्दा के इस सम्मेलन में यूक्रेन तथा रूस किसी समाधान की तरफ बढ़ते हैं तो यह सऊदी अरब की नजर में एक अहम कूटनीतिक उपलब्धि समझी जाएगी। विशेषज्ञों को लगता है कि सऊदी अरब इस कदम में जरिए यह संदेश देने की कोशिश में है कि वह अंतरराष्ट्रीय फोरम पर एक अहम किरदार निभाने जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान में जी-7 सम्मेलन में भाग लिया था। वहां उनकी सम्मेलन से अलग, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की से बात भी हुई थी। इस चर्चा में उन्होंने जेलेंस्की का विश्वास दिलाया था कि इस संकट को दूर करने के लिए भारत जो भी कर पाएगा वह करेगा।
एक अन्य विशेषज्ञ का कहना है कि सऊदी अरब की महत्वाकांक्षा बढ़ रही है और यह सम्मेलन उसी तरह संकेत कर रहा है। आज सऊदी अरब एक मध्यम शक्ति के देश के नाते आगे आने का इच्छुक है। वह जी-20 में तो है ही, ब्रिक्स स भी जुड़ना चाहता है। ऐसे में यूक्रेन और रूस के बीच संघर्ष में वह चाहता है कि उसकी विदेश नीति में भारत की तरह रणनीतिक स्वायत्तता का पहलू शामिल हो जाए।
लेकिन अभी तक के हालात से लगता नहीं कि रूस और यूक्रेन में से कोई भी युद्ध को लेकर पीछे हटने को तैयार है। यूक्रेन का कहना है कि रूस ने उसके जो हिस्से कब्जाए हैं उससे वह पीछे हटे। ऐसा होने पर ही वह किसी चर्चा के लिए तैयार हो सकता है। जबकि दूसरी तरफ रूस का कहना है कि यूक्रेन धरातल पर वास्तविकता को स्वीकारेगा तो ही किसी तरह का करार करने के आसार बन पाएंगे।
भारत की भूमिका की जहां तक बात है, तो प्रधानमंत्री मोदी के रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ दोस्ताना संबंध हैं। दोनों नेताओं की इस विषय में बात भी हुई है। उस वार्ता में मोदी ने पुतिन के सामने भी वार्ता के रास्ते तनाव दूर करने की अपील की थी जिस पर पुतिन ने गंभीरता से विचार करने का वादा किया था। इसी तरह जापान में जेलेंस्की से हुई अपनी चर्चा में मोदी ने कहा था कि चीजों को सुलझाने के लिए आज युद्ध कोई विकल्प नहीं रह गया है। दोनों पक्ष बैठकर बात करके कूटनीतिक रास्ते से किसी समाधान तक पहुंच सकते हैं।
सऊदी अरब की इस ओर विशेष दिलचस्पी की एक वजह यह भी है कि वह रूस और यूक्रेन से अनाज लेता है। दोनों ही देशों के बीच इस युद्ध की वजह से सऊदी अरब में खाद्यान्न का संकट पैदा हो गया है। इसलिए भी वह चाहता है कि रूस और यूक्रेन के बीच शांति हो जाए ताकि उसका यह खाद्यान्न संकट दूर हो सके।
साथ ही, रूस के साथ सऊदी अरब का तेल के क्षेत्र में काफी कारोबार होता आया है। इस संकट से उसका यह कारोबार प्रभावित हो रहा है। वह चाहता है, रूस से उसकी नज़दीकी कायम रहे जिससे उसे तेल के क्षेत्र में कोई समस्या न आए।
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