जिहादी सोच के पाकिस्तान की कथित सामरिक और रणनीतिक मदद से काबुल की गद्दी पर चढ़ बैठे मध्ययुगीन सोच के लड़ाके तालिबान ने लड़कियों पर कहर ढान जारी रखा हुआ है। दुनिया के तमाम देश भले उस पर लोगों के हक छीनने के लिए लानतें भेजते रहे, महिलाओं पर जुल्म करने की हद पार करने को लेकर दुत्कारते रहें, लेकिन ‘शरियत के बंदों’ ने अपनी पाश्विकता को रत्तीभर कम नहीं होने दिया है। उन्होंने अब ताजा फरमान यह जारी किया है कि लड़कियां तीसरी कक्षा अथवा दस साल की उम्र से आगे स्कूल नहीं जाएंगी। जो जा रही हैं, उन्हें स्कूलों से निकालने के आदेश जारी किए गए हैं।
अपनी बर्बरता और महिला विरोधी नीतियों तथा कानूनों के लिए कुख्यात तालिबान हुकूमत के मुल्लाओं ने महिलाओं को पिछड़ा और नाकारा बनाने की अपनी मुहिम जारी रखी हुई है। आएदिन ऐसे फरमान जारी किए जा रहे हैं जो युवतियों, महिलाओं को शेष दुनिया के सामने लाचार बना कर रखने की मंशा से तैयार किए गए हैं। अब इस नए फरमान से महिलाओं और पढ़ने की इच्छुक लड़कियों पर नई गाज गिराई गई है।
गत दिसंबर माह में तालिबान के हुक्मरानों ने कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में लड़कियों के दाखिले बंद कर दिए थे। उस वक्त भी कई देशों और संयुक्त राष्ट्र ने इस आदेश की जमकर आलोचना की थी, लेकिन तालिबान के कान पर जूं तक न रेंगी। हालांकि उसके प्रवक्ता ‘महिलाओं को हर तरह के अधिकार दिए जाएंगे’ का झूठ बोलते आ रहे हैं। लेकिन धरातल पर तो महिलाओं के चारों ओर ‘शरिया और इस्लाम के कायदों’ का शिकंजा कसता ही दिखा है।
इससे पहले जिहादी तालिबान ‘इस्लाम के कायदों के अनुसार’, ब्यूटी पार्लरों, लड़के-लड़कियों को अलग स्कूलों, गीत—संगीत, आधुनिक पहनावों, रेस्तरां और पार्कों में अकेली महिला के जाने आदि पर पाबंदिया लगा ही चुका है। पहले लड़कियों की उच्च शिक्षा पर रोक लगाई गई थी, अब बच्चियों के लिए तीसरी कक्षा से आगे अथवा 10 साल की उम्र के बाद पढ़ाई जारी रखने पर रोक लगा दी है।
प्राप्त समाचारों के अनुसार, अफगानिस्तान में गजनी सूबे में तालिबान के ‘शिक्षा मंत्रालय’ ने स्कूलों और ऐसे ‘शॉर्ट टर्म कोर्सिस’ के संस्थानों को आदेश भेजकर कह भी दिया है कि 10 साल से ज्यादा की बच्चियों को आगे न पढ़ाया जाए। कुछ र्ष से अधिक उम्र की लड़कियों को प्राथमिक स्कूल में पढ़ने की अनुमति न दी जाए”। कई प्रिंसिपलों को कहा गया है कि तीसरी क्लास से आगे पढ़ रहीं लड़कियों को स्कूल से बाहर कर दिया जाए।
इस नए फरमान से जहां पढ़ने की इच्छुक लड़कियां घबराई हुई हैं तो वहीं उनके माता—पिता समझ नहीं पा रहे हैं कि तालिबान को बच्च्यिों की पढ़ाई पर ऐतराज क्यों है। लड़कियों को बंदिशों में रखने की तालिबान की पाषाणयुगीन सोच बदलती नहीं दिखती, भले ही यूएन और सभ्य देश उसे मानवाधिकारों की कितनी ही दुहाई दें। लेकिन ऐसे फरमान देने वाले यही तालिबान मुल्ला चाहते हैं कि दुनिया के देश उन्हें मान्यता दें और उसकी पैसे आदि से मदद करें!
गत दिसंबर माह में तालिबान के हुक्मरानों ने कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में लड़कियों के दाखिले बंद कर दिए थे। उस वक्त भी कई देशों और संयुक्त राष्ट्र ने इस आदेश की जमकर आलोचना की थी, लेकिन तालिबान के कान पर जूं तक न रेंगी। हालांकि उसके प्रवक्ता ‘महिलाओं को हर तरह के अधिकार दिए जाएंगे’ का झूठ बोलते आ रहे हैं। लेकिन धरातल पर तो महिलाओं के चारों ओर ‘शरिया और इस्लाम के कायदों’ का शिकंजा कसता ही दिखा है।
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