वैदिक संस्कृति, शुद्ध ज्ञान और आदि गुरु शंकराचार्य के अद्वैतवाद को जन मानस तक पहुंचाने वाले ब्रह्मलीन स्वामी चिन्मयानंद बीसवीं शताब्दी के आध्यात्मिक दिव्य आभा के प्रतिबिंब थे।
हरिद्वार : स्वामी चिन्मयानन्द भारत के प्रसिद्ध आध्यात्मिक चिंतक तथा वेदान्त दर्शन के विश्व प्रसिद्ध विद्वान थे। वह हिन्दू धर्म और संस्कृति के मूलभूत सिद्धान्त ‘वेदान्त दर्शन’ के महान प्रवक्ता थे। उपनिषदों और गीता पर उनके भाष्य तथा उनके द्वारा विकसित वेदांत अध्ययन का पाठ्यक्रम वर्त्तमान सन्दर्भों में वेदांत को समझने की दृष्टि से अद्वितीय है। उनके द्वारा स्थापित चिन्मय मिशन आज भी सम्पूर्ण विश्व में वेदांत दर्शन के प्रचार प्रसार में संलग्न है। उन्होनें सैकड़ों संन्यासी और ब्रह्मचारी प्रशिक्षित किये, हजारों स्वाध्याय मंडल स्थापित किये, बहुत-से सामाजिक सेवा के कार्य भी उन्होंने प्रारम्भ करवाये थे।
उपनिषद, गीता और आदि शंकराचार्य के 35 से अधिक ग्रंथों पर इन्होंने व्याख्यायें लिखीं थी। ‘गीता’ पर लिखा गया उनका भाष्य सर्वोत्तम माना जाता है। हिन्दू संस्कृति की रक्षा के लिए हिन्दू संगठन, चिंतन एवं चरित्र के प्रेरक स्वामी चिन्मयानन्द की अध्यक्षता में उनके मुम्बई के पवई आश्रम में सन 1964 में विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना हुई थी। वैदिक संस्कृति, शुद्ध ज्ञान और आदि गुरु शंकराचार्य के अद्वैतवाद को जन मानस तक पहुंचाने वाले ब्रह्मलीन स्वामी चिन्मयानंद बीसवीं शताब्दी के आध्यात्मिक दिव्य आभा के प्रतिबिंब थे।
स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती का जन्म 8 मई सन 1916 को एर्नाकुलम, केरल में हुआ था। उनके बचपन का नाम बालकृष्ण मेनन था। उनके पिता न्याय विभाग में न्यायाधीश थे। बालकृष्ण की प्रारम्भिक शिक्षा पांच वर्ष की आयु में स्थानीय विद्यालय श्रीराम वर्मा ब्यास स्कूल में हुई थी। सन 1939 में मद्रास विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि ग्रहण करने के पश्चात उन्होनें लखनऊ विश्वविद्यालय से साहित्य एवं कानून विषयों में स्नातकोत्तर उपाधियां भी प्राप्त कीं थी। तत्कालिन समय के बहुप्रतिष्ठित समाचार पत्र नेशनल हेराल्ड में इन्होंने बतौर पत्रकार कार्य किया और राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रह कर जेल की सजा भी भुगती थी।
शिकागो में विश्व धर्म संसद में चिन्मयानंद सरस्वती ने हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। एक शताब्दी पहले स्वामी विवेकानंद को यह सम्मान मिला था। कैलिफोर्निया के सैन डियागो में दिल का घातक दौरा पड़ने से स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती ने महासमाधि प्राप्त की और सांसारिक जीवन से मुक्त हो गए थे।
व्यावसायिक रूप से अच्छे प्रदर्शन के बाबजूद बालकृष्ण मेनन अपने तात्कालिक जीवन से घोर असंतुष्ट व बेचैन थे तथा जीवन एवं मृत्यु और आध्यात्मिकता के वास्तविक अर्थ के शाश्वत प्रश्नों से घिरे हुए थे। अपने प्रश्नों के उत्तर ढूंढ़ने के लिए बालकृष्ण मेनन ने भारतीय तथा यूरोपीय दोनों दर्शनशास्त्रों का गहन अध्ययन शुरू किया। स्वामी शिवानंद के लेखन से गहन रूप से प्रभावित होकर बालकृष्ण मेनन ने सांसारिकता का परित्याग कर दिया और सन 1949 में स्वामी शिवानंद के आश्रम में शामिल हो गए थे। वहां उनका नामकरण “स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती” किया गया, जिसका अर्थ था “पूर्ण चेतना के आनंद से परिपूर्ण व्यक्ति”।
अगले आठ वर्षो का समय उन्होंने उत्तराखंड में वेदांत गुरु स्वामी तपोवन के निर्देशक में प्राचीन दार्शनिक साहित्य और अभिलेखों के अध्ययन में बिताया था। इस दौरान चिन्मयानंद को अनुभूति हुई कि उनके जीवन का उद्देश्य वेदांत के संदेश का प्रसार और भारत में आध्यात्मिक पुनर्जागरण लाना है। पुणे से आरंभ करके चिन्मयानंद सरस्वती ने सभी मुख्य नगरों में ज्ञान-यज्ञ करना शुरू किया। इसके बाद देश-विदेशों में गीता ज्ञान का प्रचार-प्रसार करते हुए 576 ज्ञान यज्ञ के माध्यम से सनातन धर्म व मानव कल्याणार्थ चिन्मय मिशन के तहत अनेक कार्यो में जुटे रहे। चिन्मयानंद तक हर व्यक्ति की पहुंच थी, वह सत्संगों, धार्मिक सभाओं में पुरुषों और स्त्रियों से मिलते तथा उन्हें आध्यात्मिक मार्गदर्शन देते थे।
उन्होंने जोर दिया कि वेदांत का उद्देश्य मनुष्य के दैनंदिन जीवन में उसे क्रमश: अधिक सुखी और संतुष्ट बनाना है, जो व्यक्ति को भीतर से स्वत: आध्यात्मिक जागरण की ओर प्रवृत्त करता है। दैनिक जीवन के उदाहरणों की सहायता से वह गूढ़ दर्शन को सामान्य और तर्कपूर्ण ढंग से समझाते थे। स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती ने ‘चिन्मय मिशन’ की स्थापना की, जो दुनिया भर में वेदांत के ज्ञान के प्रसार में संलग्न है। यह संस्था कई सांस्कृतिक, शैक्षिक और सामाजिक कार्यों की गतिविधियों की भी देखरेख करती है। सन 1993 में शिकागो में विश्व धर्म संसद में चिन्मयानंद सरस्वती ने हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। एक शताब्दी पहले स्वामी विवेकानंद को यह सम्मान मिला था। कैलिफोर्निया के सैन डियागो में दिल का घातक दौरा पड़ने से स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती ने महासमाधि प्राप्त की और सांसारिक जीवन से मुक्त हो गए थे।
वर्तमान समय में उनके द्वारा दिए गए ज्ञान एवं उद्देश्यों को चिन्मय मिशन के विश्वव्यापी प्रमुख स्वामी तेजोमयानंद के नेतृत्व में 300 से अधिक केन्द्रों के माध्यम से बाल विहार, चिन्मय युवक केन्द्र, देवी ग्रुप, वानप्रस्थ संस्थान, 80 चिन्मय विद्यालय, 4 महाविद्यालय, अभियंत्रण महाविद्यालय, चिन्मय इंटरनेशनल स्कूल, चिन्मय ग्रामीण विकास प्रबंधन संस्थान, चिन्मय इंटनरनेशनल फाउंडेशन, चिन्मय विभूति, चिन्मय नादविन्दु, चिन्मय आरोग्य संस्थान, संदीपनी साधनालय मुम्बई, संदीपनी साधनालय हिमाचल प्रदेश, चिन्मय ओजस बोकारो जैसे अंतरराष्ट्रीय मानक पर उतरने वाले संस्थान में दिन-रात सतत अध्यात्मिक सोचयुक्त कर्मठ ब्रह्मचारी, ब्रह्मचारिणी, स्वामी-स्वामिनी और अन्य निष्ठ कर्मियों के सफल संरक्षण में उतरोत्तर मिशन के उद्देश्यों एवं विचारों को नित नया आयाम दिया जा रहा है।
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