भारत सीमा पर उसकी भड़काऊ कार्रवाइयों को नजरअंदाज कर व्यापार और अन्य चीजें पूर्व की भांति जारी रखे। चीन चालाकी से सैन्य घुसपैठ और व्यापार व सहयोग के अन्य मुद्दों को अलग-अलग रखना चाहता है जो भारत को अस्वीकार्य है।
ब्रिक्स देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (एनएसए) की बैठक में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल ने शीर्ष चीनी राजनयिक वांग यी (अब पुन: विदेश मंत्री) के साथ बैठक में भारत के इस रुख को दोहराया कि सैन्य घुसपैठ और सीमा पर तनाव के बीच दोनों देशों के संबंध सामान्य नहीं हो सकते। तो दूसरी तरफ चीन चाहता है कि भारत सीमा पर उसकी भड़काऊ कार्रवाइयों को नजरअंदाज कर व्यापार और अन्य चीजें पूर्व की भांति जारी रखे। चीन चालाकी से सैन्य घुसपैठ और व्यापार व सहयोग के अन्य मुद्दों को अलग-अलग रखना चाहता है जो भारत को अस्वीकार्य है।
अप्रैल 2020 में पूर्वी लद्दाख के कई इलाकों में सैन्य अतिक्रमण और गलवान संघर्ष के बाद चीन के प्रति भारत के सख्त तेवर बरकरार हैं। हाल ही में दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में ब्रिक्स देशों के एनएसए की बैठक में अजीत डोवाल ने बिना लागलपेट भारतीय चिंताओं को चीन के सामने रखा। डोवाल ने चीन के वांग यी के साथ मुलाकात में कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जारी हालात ने रणनीतिक संबंधों में भरोसे और रिश्तों में सार्वजनिक और राजनीतिक आधार को कमजोर किया है।
‘चीन कभी वर्चस्व की इच्छा नहीं करेगा और बहुपक्षवाद एवं अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लोकतंत्रीकरण के लिए भारत सहित तमाम विकासशील देशों के साथ मिलकर काम करने का इच्छुक है।’
उन्होंने कहा कि संबंधों को सामान्य बनाने में आ रही रुकावटों को दूर करने के लिए चीन को सीमा पर शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए कदम उठाने चाहिए। डोवाल की यह खरी-खरी जकार्ता में एशियान रीजनल फोरम की बैठक में विदेश मंत्री एस. जयशंकर की वांग यी से 14 जुलाई को मुलाकात के सिर्फ दस दिन बाद आयी है। फर्क बस इतना है कि कूटनयिक भाषा के लिहाज से डोवाल का बयान काफी तल्ख है।
इससे पहले चीनी विदेश मंत्री वांग यी पिछले साल मार्च में भारत आये थे, तब भी डोवाल ने सैन्य गतिरोध पर भारत के रुख को स्पष्ट करते हुए कहा था, ‘सीमा पर शांति बहाली और द्विपक्षीय संबंधों को पटरी पर लाने के लिए चीन को टकराव वाले इलाकों से सैनिकों की समग्र वापसी करनी चाहिए। सीमा पर ऐसे हालात आपसी संबंधों के हित में नहीं हैं और परस्पर विश्वास बहाली के लिए चीन को अनुकूल वातावरण बनाने पर ध्यान देना चाहिए।’ डोवाल ने उस समय बीजिंग की यात्रा का न्योता ठुकराते हुए स्पष्ट कर दिया कि सैन्य गतिरोध का मुद्दा सुलझने के बाद ही वे चीन दौरे पर सोचेंगे।
ब्रिक्स की बैठक में डोवाल ने कहा कि ब्रिक्स देशों को आतंकवादियों और उनको प्रश्रय देने वालों के नाम संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध सूची में शामिल कराने के लिए मिलकर काम करना चाहिए और यह प्रक्रिया किसी राजनीति और दोहरे मानदंडों से परे होनी चाहिए।
सैन्य गतिरोध और चीन के दावे
भारत अपने इस रुख पर कायम है कि सैन्य घुसपैठ और सीमा पर तनाव के बीच दोनों देशों के संबंध सामान्य नहीं हो सकते। तो दूसरी तरफ चीन चालाकी से सैन्य घुसपैठ और व्यापार व सहयोग के अन्य मुद्दों को अलग-अलग रखना चाह है जो भारत को अस्वीकार्य है। बहरहाल चीन को नीति, न्याय और नैतिकता नहीं सिखाई जा सकती। उसे लगता है कि सैन्य अतिक्रमण और परस्पर सहयोग एक साथ जारी रह सकते हैं।
चीन की आधिकारिक समाचार एजेंसी शिनहुआ ने वांग के हवाले से कहा, ‘बहु ध्रुवीकृत दुनिया की दिशा में भारत और चीन प्रमुख शक्तियां हैं और दोनों को द्विपक्षीय संबंधों को सही दिशा में ले जाना चाहिए। दोनों देशों को रणनीतिक विश्वास बढ़ाना चाहिए और विवादित मुद्दों से पार पाने के लिए सहमति और सहयोग पर ध्यान देना चाहिए।’ शिनहुआ आगे लिखता है, ‘चीन कभी वर्चस्व की इच्छा नहीं करेगा और बहुपक्षवाद एवं अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लोकतंत्रीकरण के लिए भारत सहित तमाम विकासशील देशों के साथ मिलकर काम करने का इच्छुक है।’
वांग के बयान में कहीं भी सीमा विवाद और 2020 से ही जारी सैन्य गतिरोध का जिक्र नहीं है। बल्कि संबंधों को सामान्य दिखाने की कोशिश में चीन ने एक नया शिगूफा छोड़ दिया है। डोवाल और वांग की मुलाकात के तुरंत बाद चीनी विदेश मंत्रालय ने दावा किया कि पिछले साल इंडोनेशिया के बाली में जी-20 देशों की बैठक के दौरान रात्रि भोज पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच अहम चर्चा हुई और द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने पर सहमति बनी। भारतीय विदेश मंत्रालय ने चीनी दावे पर टिप्पणी से परहेज किया। हालांकि बाली में पिछले 16 नवंबर को दोनों नेताओं की बेहद संक्षिप्त मुलाकात पर विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने कहा था कि रात्रि भोज के बाद दोनों ने एक-दूसरे से कुशल क्षेम पूछा था।
‘सीमा पर शांति बहाली और द्विपक्षीय संबंधों को पटरी पर लाने के लिए चीन को टकराव वाले इलाकों से सैनिकों की समग्र वापसी करनी चाहिए। सीमा पर ऐसे हालात आपसी संबंधों के हित में नहीं हैं और परस्पर विश्वास बहाली के लिए चीन को अनुकूल वातावरण बनाने पर ध्यान देना चाहिए।’
चीनी दावे कुछ भी हों लेकिन अप्रैल 2020 के बाद मोदी और जिनपिंग के बीच कोई संवाद नहीं हुआ है। माना जाता है कि बाली में हुई मुलाकात भी चंद मिनटों की थी। लेकिन चीन का दावा है कि रात्रि भोज पर बातचीत में संबंधों की बहाली पर सहमति बनी और इसी आधार पर चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों पक्षों को अपने नेताओं के इस रणनीतिक फैसले का पालन करना चाहिए कि दोनों देश एक-दूसरे के लिए खतरा नहीं है और वे एक-दूसरे के विकास के अवसरों में सहायक हैं।
चीन का दोहरा चरित्र
बहरहाल चीनी दावों को गंभीरता से लेने की कोई वजह नहीं दिखती। हो सकता है कि ब्रिक्स या जी-20 के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक के दौरान मोदी व जिनपिंग में शायद केपटाउन या नयी दिल्ली में भेंट मुलाकात हो जाए लेकिन बाली में किसी सहमति के साक्ष्य नहीं दिखते और न ही दोनों नेताओं की ओर से किसी प्रस्तावित मुलाकात की पुष्टि हुई है। तमाम संकेत बताते हैं कि भारत अपने रुख पर कायम है कि सैन्य घुसपैठ और सीमा पर तनाव के बीच संबंध सामान्य नहीं रह सकते। और तनाव का मुद्दा सिर्फ सीमा पर गतिरोध ही नहीं है।
‘बहु ध्रुवीकृत दुनिया की दिशा में भारत और चीन प्रमुख शक्तियां हैं और दोनों को द्विपक्षीय संबंधों को सही दिशा में ले जाना चाहिए। दोनों देशों को रणनीतिक विश्वास बढ़ाना चाहिए और विवादित मुद्दों से पार पाने के लिए सहमति और सहयोग पर ध्यान देना चाहिए।’
भारत आतंकवाद पर चीन के दोहरे चरित्र से भी वाकिफ है कि कैसे वह मसूद अजहर जैसे आतंकियों को संयुक्त राष्ट्र की आतंकवाद निरोधक सूची में नाम आने से रोकता रहा है। इसी का नतीजा है कि ब्रिक्स की इस बैठक में डोवाल ने चीन पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि ब्रिक्स देशों को आतंकवादियों और उनको प्रश्रय देने वालों के नाम संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध सूची में शामिल कराने के लिए मिलकर काम करना चाहिए और यह प्रक्रिया किसी भी तरह की राजनीति और दोहरे मानदंडों से परे होनी चाहिए।
बहरहाल डोवाल के इस सख्त संदेश के बावजूद लगता नहीं कि चीनी रवैये में कुछ खास बदलाव आएगा। चीन ने पैंगोंग झील, गोगरा और हाट स्प्रिंग्स से अपनी फौजें हटा ली है लेकिन बातचीत में बनी सहमति के बावजूद वह देपसांग और देमचोक से सेनाएं हटाने को लेकर मुकर गया। चीन की ‘सलामी स्लाइसिंग’ रणनीति के मुकाबले के लिए 50,000 जवान सीमा पर अभी भी मुस्तैद हैं। जाहिर है कि ऐसे में सामान्य संबंधों की बहाली की चीनी दलीलें भरोसा जगाने के बजाय उसकी नीयत पर और संशय खड़े करती हैं।
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