प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति की तीसरी वर्षगांठ के अवसर पर नई दिल्ली के प्रगति मैदान के भारत मंडमप में अखिल भारतीय शिक्षा समागम का उद्घाटन किया। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आने वाले समय में देश के सभी सीबीएसई स्कूलों में एक पाठ्यक्रम लागू किया जाएगा, जिसको लेकर 22 भाषाओं में पाठ्यपुस्तकों को तैयार किया जा रहा है। इस अवसर पर पीएमश्री योजना की पहली किस्त को भी जारी किया गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि शिक्षा ही देश का भाग्य बदलने की ताकत रखती है। जिस लक्ष्य को लेकर देश आगे बढ़ रहा है उसमें शिक्षा की ही महत्वपूर्ण भूमिका है, और आप इसके प्रतिनिधि हैं। पीएम मोदी ने कहा कि अखिल भारतीय शिक्षा समागम का हिस्सा बनना मेरे लिए भी एक बेहद महत्वपूर्ण अवसर है।
’10+2 की जगह नया सिस्टम को स्टूडेंट जांनते हैं’
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि NEP ने पारंपरिक ज्ञान प्रणाली से लेकर भविष्य की तकनीक तक को संतुलित तरीके से महत्व दिया है। रिसर्च इकोसिस्टम को मजबूत करने के लिए देश के शिक्षा जगत के सभी महानुभावों ने बहुत मेहनत की है। हमारे छात्र नई व्यवस्थाओं से भली-भांति परिचित हैं, वे जानते हैं कि 10+2 शिक्षा प्रणाली की जगह अब 5+3+3+4 लाई जा रही है। 3 साल की उम्र से पढ़ाई की शुरुआत होगी। जिससे देश में एकरुपता आएगी।
‘युवा टैलेंट के साथ न्याय की असली शुरुआत’
प्रधानमंत्री ने कहा कि युवाओं की उनकी प्रतिभा की जगह उनकी भाषा के आधार पर उन्हें जज करना उनके साथ अन्याय है। पीएम मोदी ने कहा कि मातृभाषा में पढ़ाई होने से अब देश के युवा टैलेंट के साथ असली न्याय की शुरुआत होने वाली है। सामाजिक न्याय का भी यह महत्वपूर्ण कदम है।
‘दुनिया के ज्यादातर विकसित देशों ने अपनी भाषा के दमपर बढ़त हासिल की’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि दुनिया के अधिकतर विकसित देशों ने अपनी भाषा के दमपर बढ़त हासिल की है, वहीं हमने अपनी भाषाओं को पिछड़ेपन के रूप में पेश किया है। इससे बड़ी दुर्भाग्य की बात और क्या हो सकती है ? कि कोई युवा कितना ही इनोवेटिव माइंड का क्यों नहीं हो ? लेकिन अगर उस शख्स को अंग्रेजी बोलनी नहीं आती है, तो उसकी प्रतिभा को अस्वीकार कर दिया जाता था, और इस बात का सबसे बड़ा नुकसान ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को होता था।
‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति से हीन भावना को पीछे छोड़ने की हुई शुरुआत’
पीएम मोदी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से इस हीन भावना को पीछे छोड़ने की शुरुआत हो गई है। उन्होंने कहा कि मैं तो यूएन (संयुक्त राष्ट्र) में भी देश की भाषा बोलता हूं। हां ये जरूर है कि समझने वाले को ताली बजाने में देर लगेगी, लेकिन कोई बात नहीं। मातृभाषा में शिक्षा लेने से न ही केवल युवाओं की प्रतिभा उभरकर सामने आएगी, बल्कि भाषा की राजनीति करके अपनी दुकान चलाने वालों का भी शटर डाउन हो जाएगा।
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