पशु तस्करों और पुलिस के बीच संग्राम का केंद्र बना हुआ है। पुलिस की कई बार पशु तस्करों से मुठभेड़ हो चुकी है। असम के कई जिले बांग्लादेश की सीमा से सटे हैं। पड़ोसी राज्य मेघालय की सीमा भी बांग्लादेश के साथ लगती है
असम विगत कुछ माह से पशु तस्करों और पुलिस के बीच संग्राम का केंद्र बना हुआ है। पुलिस की कई बार पशु तस्करों से मुठभेड़ हो चुकी है। असम के कई जिले बांग्लादेश की सीमा से सटे हैं। पड़ोसी राज्य मेघालय की सीमा भी बांग्लादेश के साथ लगती है। भारत की लगभग 27 सौ किमी सीमा बांग्लादेश के साथ लगती है। इसका फायदा उठाते हुए पशु तस्कर बांग्लादेश को अवैध तरीके से पशुओं की आपूर्ति करते हैं। इस पर नकेल कसने के लिए असम सरकार ने विधानसभा के जरिये कड़े पशु कानून बनाये हैं, इसके बावजूद राज्य में अभी भी गोवंश की तस्करी जारी है। असम में ऐसा कोई दिन नहीं जाता है जब राज्य के किसी न किसी हिस्से में तस्करी के लिए ले जाया जा रहा गोवंश न पकड़ा जाता हो।
पशु तस्करी रोकने में जुटी पुलिस
पशु तस्करी पर लगाम कसने के लिए पुलिस के साथ ही असम पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के डीआईजीपी पार्थ सारथी महंत के नेतृत्व में टीम जुटी हुई है। 16 और 17 जुलाई, 2023 को गुवाहाटी से जोराबाट स्थित मेघालय के पशु बाजार में अवैध रूप से गोवंश को लेकर जा रहे तस्कर पकड़े गये। ट्रकों और तस्करों के विरुद्ध जारी छानबीन के दौरान एसटीएफ की एक टीम ने 18 जुलाई, 2023 की रात जोराबाट थाना प्रभारी के साथ संयुक्त रूप से एक अभियान चलाया।
अभियान के दौरान गुवाहाटी से एसटीएफ की टीम ने दो पशु तस्करों मोहम्मद शमसुद्दीन अहमद उर्फ बोगा (31) और मोहम्मद शाहिदुल इस्लाम (31) को पकड़ा। तस्करों के पास से 26.50 लाख रुपये नकद धनराशि, एक महिंद्रा बोलेरो (एएस-01एफएफ-0527) के अलावा दो मोबाइल फोन बरामद किये गये।
बीएसएफ गुवाहाटी फ्रंटियर के प्रवक्ता ने बताया कि इस साल जुलाई के दूसरे सप्ताह तक भारत-बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाके से कुल 2800 पशुओं को तस्करों से मुक्त कराया गया है। इस दौरान कुल 94 तस्करों को गिरफ्तार किया गया है, जिसमें 76 भारतीय एवं 18 बांग्लादेशी पशु तस्कर शामिल हैं। मध्य असम के नगांव जिले में पुलिस ने अप्रैल और मई, 2023 में कुल 438 मवेशियों को सफलतापूर्वक छुड़ाया, जिन्हें अवैध रूप से राज्य के बाहर ले जाया जा रहा था।
2 अप्रैल को ग्वालपाड़ा में 2 पशु तस्करों आमिर अली और मंसूर अली को पकड़ा गया। उनके पास से 8 मवेशियों के सिर बरामद किये गये। इसी दिन नगांव में पुलिस ने 50 मवेशियों से लदे दो वाहन पकड़े। 18 अप्रैल को पुलिस ने गोसाईगांव में दो मवेशियों और उनके ले जाने वाले वाहनों को पकड़ पशु तस्करी को विफल कर दिया। इसके एक दिन पहले 17 अप्रैल को नगांव जिले में एक ट्रक से 14 मवेशियों को बरामद किया गया। एक अन्य अभियान में धेमाजी जिले में नौ पशु तस्करों को पकड़ कर उनसे 27.50 लाख रुपये बरामद किये।
22 अप्रैल को गोहपुर पुलिस थाना क्षेत्र में चार पिकअप वैन से 53 मवेशियों को बरामद किया गया और सात तस्करों को पकड़ा गया। 23 अप्रैल को नगांव पुलिस ने तीन वाहनों से 77 गाय-बैल बरामद कर 6 पशु तस्करों को गिरफ्तार किया। एक अन्य अभियान में डिब्रूगढ़ से बिरनीहाट ले जा रहे दो पशु तस्करों को पकड़ा, 22 मवेशी और एक बारह पहिया ट्रक जब्त हुआ। काजीरंगा के पास 10 गायें और चार पशु तस्कर पकड़े गये। 2
3 अप्रैल को ही सोनितपुर पुलिस ने टो ट्रकों में 57 मवेशियों को बरामद किया और 5 गो-तस्करों को पकड़ा गया। उल्लेखनीय है कि असम में गोतस्करी का हजार करोड़ रुपये का व्यापार है जो ज्यादातर मुस्लिम अपराधियों द्वारा चलाया जाता है और इससे अर्जित धन का एक हिस्सा जिहादी फंडिंग में जाता है जिसका खुलासा हाल ही में डीजीपी ने किया था।
गोवंश संरक्षण और संवर्धन से जुड़ी संस्थाओं ने असम सरकार से आह्वान किया है कि जिस तरह से कड़े पशु कानून बनाये गये हैं, उसी तरह का कानून गोवंश के संरक्षण और संवर्धन के लिए भी बनाना आवश्यक है। इसके लिए आयोग भी बनाया जाना नितांत आवश्यक है, जिसके जरिए पुलिस द्वारा पकड़े गये पशुओं की जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके
असम के मुख्यमंत्री ने बीते विधानसभा सत्र के दौरान विधानसभा को बताया था कि 2022 में गो तस्करी में शामिल 1,326 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इस अवधि के दौरान कम से कम 612 वाहन जब्त किये गये और 13,000 से अधिक मवेशियों को बरामद किया गया है, जिन्हें तस्करी के जरिये बांग्लादेश ले जाया जाना था। इनमें से ज्यादातर घटनाएं बांग्लादेश की सीमा से लगे धुबरी जिले की हैं, जहां 2022 में पशु तस्करी के 617 मामले दर्ज किये गये थे।
ऐसे होती है गोतस्करी
पशुओं की तस्करी पैदल और नदी मार्ग से होती है जिसमें निचले असम के धुबरी और दक्षिण सालमारा-मनकाचार तथा बराक घाटी के करीमगंज एवं हैलाकांदी जिले प्रमुख हैं। वहीं जोरबाटा में राष्ट्रीय राजमार्ग-37 के एक छोर पर असम की सीमा है तथा दूसरे छोर पर मेघालय की। मेघालय में पशुओं का एक बड़ा बाजार स्थित है जहां से पशुओं की आपूर्ति मेघालय के रास्ते बांग्लादेश को की जाती है। वहीं करीमगंज और हैलाकांदी जिलों से होकर बांग्लादेश को पशुओं की आपूर्ति अंतरराष्ट्रीय सीमा खुली होने के कारण पैदल जंगली रास्तों से की जाती है। जबकि, धुबरी और दक्षिण सालमारा-मानकाचार जिलों से तस्करी पैदल मार्ग एवं नदी मार्ग के जरिये की जाती है। इसके अलावा एक मार्ग और है जो धुबरी से ग्वालपाड़ा जिला से होकर जंगलों के बीच गुजरते हुए पशुओं को मेघालय पहुंचाता है, जहां से उन्हें बांग्लादेश भेज दिया जाता है।
उग्रवाद को फंडिंग
असम में गोवंश के संरक्षण और संवर्धन के कार्य में जुटे कई संगठनों ने बताया कि भारत से पूर्वोत्तर के राज्यों से होकर बड़े पैमाने पर पशुओं की तस्करी से मिलने वाले धन का उपयोग देश में मजहबी कट्टरपंथ को बढ़ावा देने, उग्रवाद को मजबूत बनाने के लिए होता है। उन्होंने बताया कि इसके पक्के सबूत हमने देश की प्रमुख खुफिया एजेंसियों (नाम बताने से इनकार) को पूरे डेटा के साथ मुहैया कराए हैं। एजेंसियां इस मामले में अपनी जांच-पड़ताल में जुटी हुई हैं।
गोसेवा के कार्यों से जुड़ी संस्थाओं के पदाधिकारियों ने बताया कि असम में प्रतिदिन अवैध गोवंश की तस्करी को रोकने के लिए पुलिस अभियान चलाकर उन्हें पकड़ रही है, लेकिन राज्य में पशु संरक्षण और संवर्धन के लिए उपयुक्त कानून का अभाव और व्यवस्था नहीं होने के कारण पकड़े गये पशु पुन: पशु तस्करों के हाथ में पहुंच जाते हैं। उन्होंने दावा किया कि राज्य में लगभग 30 गोशालाएं हैं, जिनमें अधिकांश में दुग्ध उत्पादन का कार्य होता है। पकड़े गये पशुओं को रखने की उनके पास कोई व्यवस्था नहीं है।
भारत से पूर्वोत्तर के राज्यों से होकर बड़े पैमाने पर पशुओं की तस्करी से मिलने वाले धन का उपयोग देश में मजहबी कट्टरपंथ को बढ़ावा देने, उग्रवाद को मजबूत बनाने के लिए होता है। उन्होंने बताया कि इसके पक्के सबूत हमने देश की प्रमुख खुफिया एजेंसियों (नाम बताने से इनकार) को पूरे डेटा के साथ मुहैया कराए हैं। एजेंसियां इस मामले में अपनी जांच-पड़ताल में जुटी हुई हैं।
हाल के दिनों में ऊपरी असम में पकड़े गये करीब 2100 गोवंश को जोरहाट स्थित गीताश्रम गोशाला में रखा गया है। गोवंश संरक्षण और संवर्धन से जुड़ी संस्थाओं ने असम सरकार से आह्वान किया है कि जिस तरह से कड़े पशु कानून बनाये गये हैं, उसी तरह का कानून गोवंश के संरक्षण और संवर्धन के लिए भी बनाना आवश्यक है। इसके लिए आयोग भी बनाया जाना नितांत आवश्यक है, जिसके जरिए पुलिस द्वारा पकड़े गये पशुओं की जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके कि आखिर उनको कहां रखा गया है, वे किस हाल में हैं, अन्यथा पुलिस पशुओं को पकड़ती तो है लेकिन जाने कैसे वे फिर चोर दरवाजे से उन्हीं तस्करों के हाथ में पहुंच जाते हैं।
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