भोपाल। मध्य प्रदेश में ईसाई मिशनरियां कानून की धज्जियां उड़ा रही हैं। न नियम, न नियमन और न ही किसी प्रकार की कानूनी औपचारिकताएं, जिन्हें पूरा करना किसी भी संस्थान के लिए अनिवार्य है। मध्य प्रदेश के अलीराजपुर के जोबट के नर्मदा नगर से जो तथ्य सामने आए हैं, उससे एक बार फिर न सिर्फ यहां चल रही ईसाई मतांतरण की सच्चाई पता चली बल्कि यह भी पता लगा है कि विदेशी फंडिंग और विदेशी मेहमानों को खुश करने के लिए कैसे-कैसे जतन किए जाते रहे हैं।
मध्य प्रदेश राज्य बाल संरक्षण आयोग की टीम 35 साल बाद आज यहां नहीं पहुंचती तो शायद यह सच कभी उजागर ही नहीं होता कि शासन के नियमों की धज्जियां यह ईसाई मिशनरी संस्था किस-किस रूप में कैसे-कैसे उड़ा रही है। मध्य प्रदेश बाल सरंक्षण आयोग की कार्रवाई के साथ ही राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने अब इस पूरे मामले को अपने संज्ञान में लिया है।
तिरंगे का अपमान, छात्रावास में कंडोम, सर्जिकल औजार मिले
यहां राष्ट्रीय ध्वज का अपमान सामने आया है। गंभीर प्रकार के मेडिकल उपकरण और सर्जिकल टूल्स (ऑपरेशन औजार) यहां पाए गए हैं। बच्चों को बिना किसी शासकीय अनुमति के रखने वाले इस संस्थान में बाल आयोग को निरीक्षण दौरान उपयोग किए हुए निरोध (कंडोम) मिले हैं। अनुसूचित जाति-जनजाति समाज के बच्चों का मतान्तरण करने के साक्ष्य यहां पाए गए हैं । करोड़ों की फंडिंग यहां सेवा के नाम से विदेशों से प्राप्त की गई है और इनके अलावा भी अन्य अनेक खामियां इस ईसाई छात्रावास में मिली हैं।
ईसाई मिशनरी गतिविधियों के विरोध में हिन्दू संगठन आगे आए
इन तमाम गड़बड़ियों की जानकारी लगते ही अब हिन्दू संगठन भी मुखर हो गए हैं। हिंदू संगठनों ने राज्य बाल संरक्षण आयोग की टीम में विशेषकर सोनम निनामा और ओंकार सिंह को उन्होंने ज्ञापन सौंपा। उन्होंने कहा कि कैसे पुलिस प्रशासन एवं शासन की नाक के नीचे भोले-भाले जनजाति बन्धुओं और उनके बच्चों को ये ईसाई मिशनरी पूरे अलीराजपुर में धोखें में रखकर और उनका माइंड वॉश कर अपना शिकार बना रही हैं।
35 वर्षों से चल रहा मिशनरी बालगृह, ज्यादातर बच्चे अनाथ
आयोग की सदस्य सोनम निनामा ने बताया कि जब ‘आदिवासी सेवा सहायता समिति’, द्वारा संचालित मिशनरी बालगृह में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की टीम औचक निरीक्षण करने पहुंची और उनकी कमियों की ओर ध्यान दिलाया तो वे उन्हें मानने तक को तैयार नहीं थे। बिना पंजीयन के ही यह बाल गृह 35 सालों से चल कैसे रहा है, यही बड़ा आश्चर्य है। यहां 71 बालक-बालिकाएं मिले, जिनमें नाबालिगों की संख्या 59 है। 35 बच्चियां हैं और उस पर भी अधिकांश बालिकाएं अनाथ हैं। फिलहाल संस्था अध्यक्ष के ऊपर किशोर न्याय अधिनियम का उल्लंघन करने पर महिला बाल विकास विभाग (सीडीपीओ) की ओर से एफआइआर दर्ज करा दी गई है।
मिशनरी संस्था की लापरवाही बच्चों पर इस प्रकार पड़ी भारी
सोनम निनामा ने बताया कि किशोर न्याय अधिनियम की धारा 42 के अंतर्गत जब मिशनरी अनाथालय समिति अध्यक्ष कल्पना डेनियल से बाल गृह पंजीयन के दस्तावेज मांगे गए तो वह उन्हें उपलब्ध नहीं करा पाईं। समिति अध्यक्ष ने लिखकर दिया है कि बिना पंजीयन के ही बाल गृह चलाया जा रहा था। जबकि मप्र शासन द्वारा अलग-अलग आयु वर्ग के हिसाब से बाल गृह संचालन के नियम बने हैं। वास्वत में इस मिशनरी संस्था का सबसे बड़ा अपराध यह है कि इन अनाथ बच्चों का समय रहते पुनर्वास कराया जा सकता था और जो यहां कई वर्षों से रहते हुए आज बालिग हो गए हैं, ऐसे सभी बच्चों को पुनर्वास संबंधी शासन की योजनाओं का लाभ देकर उन्हें कौशल निर्माण से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाया जा सकता था, लेकिन इस संस्था की लापरवाही के कारण अब तक यह नहीं हो सका है।
चिल्ड्रन होम्स सील, शिफ्ट हुए बच्चे
सोनम निनामा का कहना यह भी रहा कि चिल्ड्रन होम्स सील हो चुका हैं। अनाथ बच्चों में 15 बालकों को इंदौर के जीवन ज्योति आवास गृह में शिफ्ट कर दिया गया है। साथ ही 15 अनाथ और नाबालिग छात्राओं को धार के मांडू में बालिका छात्रावास में शिफ्ट कर दिया है। कुल यहां यहां 35 बालिकाएं मिलीं, जिनमें 30 नाबालिग हैं और अधिकांश अनाथ भी । 36 बालक मिले, जिनमें 29 नाबालिग हैं। इसके साथ ही यहां वृद्धाश्रम भी संचालित होता हुआ पाया गया, जिसमें 13 वृद्ध रह रहे हैं।
छात्रावास में जनजाति बच्चों को लाकर रखा गया, ह्यूमन ट्रैफिकिंग के एंगल से जांच की मांग
मप्र राज्य बाल संरक्षण आयोग के सदस्य ओंकार सिंह का कहना है कि यहां ज्यादातर बच्चे अनुसूचित जनजाति के मिले हैं। बच्चियों ने शिकायत की है कि हर रोज रात में सिर्फ दाल-चावल का भोजन मिलता है। नॉनवेज भी भोजन में हर रोज कुछ न कुछ खिलाया जाता है। इस संस्था की ह्यूमन ट्रैफिकिंग के एंगल से जांच होने की आवश्यकता है। क्योंकि मालूम चला है कि 2018 में एक बच्ची सीहोर से यहां लाई गई थी, किंतु उसका अब तक कुछ पता नहीं चला। पता नहीं ऐसे कितने मामले और हों, आगे जांच करेंगे तो अन्य बहुत कुछ भी सामने आएगा।
सभी बच्चों के पास मिली बाईबिल, विदेशी फडिंग का ऐंगल भी आया सामने
ओंकार सिंह ने यह भी बताया कि यहां जांच के दौरान ध्यान में आया कि हर बच्चे के पास कुछ हो न हो, लेकिन बाईबिल जरूर है। यह सभी बच्चों के पास पाई गई। जिससे अनाथ बच्चों का मतांतरण किए जाने की आशंका है। बच्चों को स्थानीय चर्च में प्रार्थना के लिए भी ले जाया जाता था। जांच में यह भी सामने आया है कि संस्था को स्विट्जरलैंड से करोड़ों रुपये का फंड मिलता है। जिसके दस्तावेज भी मिले हैं। यहां कंडोम भी बरामद हुए हैं, जोकि यूज में लाए जा चुके हैं, वहीं अन्य का उपयोग होना है, जबकि इन छात्रावासों में इनका क्या काम?
एनसीपीसीआर ने कलेक्टर को सख्त कार्रवाई एवं जांच संबंधी जरूरी निर्देश दिए
ओंकार सिंह ने कहा कि इस परिसर में जिस तरह से राष्ट्रीय ध्वज को रखा गया था, वह सीधे तौर पर उसका अपमान है। गंभीर प्रकार के मेडिकल उपकरण और सर्जिकल टूल्स का यहां पाया जाना कई प्रकार के संदेह पैदा करता है। इसके साथ ही इस पूरे प्रकरण को अब राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने भी अपने संज्ञान में लिया है। उन्होंने कलेक्टर को नोटिस देकर निर्देशित किया है कि वह केंद्रीय आयोग कार्यालय में बच्चों का पूरा ब्योरा, उनके पुनर्वास के लिए शासन द्वारा उठाए कदम इत्यादि उनसे जुड़ी सभी आवश्यक जानकारियां तीन कार्यदिवस के भीतर भेजें।
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