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होम भारत

…और मणिपुर सुलग उठा!

मैतेई हिंदू 1949 तक जनजाति श्रेणी में थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने इसे हटा कर सामान्य श्रेणी में कर दिया, ताकि ईसाई कन्वर्जन को बल मिले और मैतेई हिंदू कमजोर हो जाएं। इन्हें जनजाति की मान्यता मिलनी ही चाहिए।

by जगदम्बा मल्ल
Jul 25, 2023, 09:47 am IST
in भारत, विश्लेषण, मणिपुर
मणिपुर में आगजनी करते उपद्रवी

मणिपुर में आगजनी करते उपद्रवी

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मणिपुर जल रहा है। ईसाई कुकी जनजाति के लोग हिंदू मैतेई लोगों को मार रहे हैं, उनके घरों को लूटकर आग लगा रहे हैं। इसके बावजूद पूरा ईसाई जगत कुकियों के पक्ष में खड़ा है

गत 20 जुलाई को मणिपुर का एक वीडियो वायरल हुआ। इसमें दो महिलाओं को नग्न कर सरेआम घुमाने का दृश्य है। इस वीडियो के सामने आते ही देश में हड़कंप मच गया। संसद सत्र शुरू होने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘‘यह वीडियो देश के 140 करोड़ लोगों को शर्मसार करने वाला है। दोषी किसी भी सूरत में बचेंगे नहीं।’’ हालांकि इसी दिन सुरक्षा बलों ने मुख्य आरोपी सहित चार लोगों को पकड़ लिया।

मणिपुर 3 मई से सुलग रहा है। इसके कारणों को जानने से पहले वहां के इतिहास के बारे में जानना जरूरी है। मणिपुर में रहने वाले मैतेई जनजाति के लोग भारतभक्त और वैष्णव हिंदू हैं। ये म्यांमार और बांग्लादेश से लगी भारतवर्ष की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर देश के पहरेदार हैं। मणिपुर की सीमा म्यांमार और बांग्लादेश से जुड़ी हुई है। इस सीमा के दोनों ओर ईसाई कुकी बसे हुए हैं। ये कुकी मणिपुर के अलावा नागालैंड, मिजोरम, मेघालय, त्रिपुरा और असम में भी फैले हुए हैं। इन्होंने हिंदू और भारत विरोधी चीन-प्रशिक्षित 19 आतंकवादी संगठनों का गठन किया है।

मिशनरी भाषा में इन्हें ‘चर्च आर्मी’ और ‘साल्वेशन आर्मी’ कहा जाता है और इनके नाम चर्च की वेतन-सूची में शामिल हैं। इनके वेतन का भुगतान अमेरिकी बैपटिस्ट मिशन करता है, जिसके मुख्यालय अमेरिका और ब्रिटेन में हैं इन कुकी आतंकवादियों के शिविर मणिपुर के पर्वतीय और सीमावर्ती क्षेत्रों में तो हैं ही, म्यांमार के चिन हिल्स क्षेत्र और बांग्लादेश में भी इनके शिविर हैं। ये 19 कुकी आतंकवादी संगठन दो भागों में बंटे हुए हैं। एक है कुकी नेशनल आर्गनाइजेशन (केएनओ) और दूसरा है यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (यूपीएफ)।

इन दोनों संगठनों के मार्गदर्शन में मैतेई हिंदुओं पर संगठित आक्रमण हो रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि चर्च-प्रायोजित इन संगठनों के बीच रणनीतिक योजना और आवश्यक समन्वय चर्च के शीर्ष मिशनरी करते हैं। इनका सीधा संबंध वर्ल्ड काउंसिल आफ चर्चेज (डब्ल्यूसीसी) और बैपटिस्ट वर्ल्ड एलायंस (बीडब्ल्यूए) से होता है। इन दोनों संगठनों का भी मुख्यालय अमेरिका और ब्रिटेन में है। इनकी शाखाएं भारत सहित सभी देशों में हैं।

इन सभी 19 कुकी आतंकवादी संगठनों के बल पर मैतेई हिंदुओं को बंदूक दिखाकर उनका कन्वर्जन कराने की साजिश की जा रही है। चर्च आतंकवादियों के छिपने, मारक शस्त्रों और मादक द्रव्यों को छिपाने की सबसे सुरक्षित जगह है। मैतेई हिंदुओं को जल-जंगल-जमीन से बेदखल किया जा रहा है। ईसाई कुकी जनजाति आरक्षण के साथ-साथ ईसाई अल्पसंख्यक आरक्षण का दुगुना लाभ लेकर सरकारी नौकरियों और सरकारी योजनाओं की सारी सुविधाएं हथिया रहे हैं।

जहां-जहां ईसाई आबादी सघन है और चर्च का जाल बिछ गया है वहां-वहां हिंदुओं पर चौतरफा आक्रमण होता है। कहा जाता है कि ईसाई मिशनरियां मैतेई हिंदुओं के खिलाफ जासूसी करती हैं, मैतेई ईसाइयों को मैतेई हिंदुओं के खिलाफ भिड़ा देती हैं। इस ‘सेवा’ के लिए मैतेई समाज के ‘जयचंदों’ को बड़ी रकम देकर पुरस्कृत किया जाता है। बरसों से मणिपुर में चर्च का कन्वर्जन युद्ध चल रहा है। इस लड़ाई में मैतेई हिंदू अकेला है, जबकि कुकी ईसाइयों के साथ देश-विदेश के सभी चर्च संगठन खड़े हैं। उनको शस्त्र और संसाधन उपलब्ध करा रहे हैं। राज्य सरकार और केंद्र सरकार पर कुकी ईसाइयों के पक्ष में निर्णय लेने के लिए दबाव डाला जा रहा है। उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में महंगे वकीलों को लगाकर इन ईसाइयों के पक्ष में मुकदमे दायर कर रहे हैं और अब मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह के इस्तीफा की मांग पर तुले हुए हैं।

अरुणाचल प्रदेश में भी चर्च आज यही कर रहा है, जो मणिपुर में हो रहा है। ईसाई वोट बैंक के लालच में सभी राजनीतिक दल ईसाई कुकियों का ही समर्थन कर रहे हैं और मैतेई समाज के लोग हिंदू होने की ‘सजा’ भुगत रहे हैं। भारत और विश्व के सभी चर्च संगठन कुकी ईसाइयों के समर्थन में खड़े हो गए हैं और मैतेई हिंदुओं की कटु निंदा करते हुए हमारे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को ज्ञापन भेज रहे हैं।

राहत शिविर में रह रहे मैतेई शरणार्थी

‘मणिपुर फॉर क्राइस्ट’

‘नागालैंड फॉर क्राइस्ट’ घोषित कर ‘स्वतंत्र नागालैंड’ की लड़ाई में चर्च ने लगभग 40,000 नागा युवकों और 1,000 से अधिक भारतीय सैनिकों और सुरक्षा बलों की बलि चढ़ा दी है। ‘मिजोरम फॉर क्राइस्ट’ घोषित कर यहां भी चर्च ने खून की नदी बहाई है, जहां सैकड़ों चकमा और रियांग हिंदुओं की हत्या की गई है। सैकड़ों युवतियां इनकी पाशविकता का शिकार हुई हैं। अब चर्च ‘अरुणाचल फॉर क्राइस्ट’ के साथ-साथ ‘मणिपुर फॉर क्राइस्ट’ की योजना पर कार्य कर रहा है। माना जा रहा है कि मणिपुर की सभी पर्वतीय हिंदू जनजातियों को ईसाई बनाने के बाद चर्च ने इंफाल घाटी में बसे मैतेई हिंदुओं को ईसाई बनाने का लक्ष्य तय किया है। इसलिए चर्च प्रायोजित हत्या, आगजनी, लूट और बलात्कार की धधकती आग में मणिपुर का मैतेई हिंदू जल रहा है।

अरुणाचल प्रदेश में चर्च को आगजनी, लूट, हत्या और बलात्कार करने की आवश्यकता अभी तक नहीं पड़ी है, क्योंकि यहां मैतेई हिंदुओं जैसा प्रतिकार और विरोध नहीं है। यहां बड़ी आसानी से कन्वर्जन का कार्य निर्विरोध चल रहा है।

मणिपुर विधानसभा में नागा विधायकों की संख्या भी 10 है। इनमें नागा पीपुल्स फ्रंट के 5 विधायक (खाशिम वाशुम, लीशियो कीशिंग, आवांगबो न्युमाई, राम मुइवा और लोस दीखो), भाजपा के दो विधायक (एस एस ओलिश और दिन्गांग्लुंग गानमई), नेशनल पीपुल्स पार्टी के दो विधायक (एन काईसी और जांघेम्लुंग पानमई) और एक निर्दलीय विधायक (जे कुमो शा) हैं। बाहरी मणिपुर के सांसद लोरहो फोजे भी नागा ही हैं।

चाहे कुकी ईसाई हों या इनके संगठन, इन सबकी लगाम चर्च के माध्यम से वर्ल्ड काउंसिल आफ चर्चेज और बैपटिस्ट वर्ल्ड एलायंस के हाथ में है। इन दोनों वैश्विक संगठनों की लगाम हाथ में बताई जाती है।

जुलूस जब चुराचन्दपुर पहुंचा तो मैतेई हिंदुओं पर पत्थर फेंके गए, रास्ते में जो हिंदू मिला उनको मारा-पीटा और सामान लूट लिया। परिणामत: कुकी ईसाई और मैतेई हिंदू के बीच खूनी संघर्ष छिड़ गया, जिसमें इस रपट के लिखे जाने तक तक दोनों पक्षों के 200 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और लगभग इतने ही लोग लापता हैं। इनमें आधे से अधिक मैतेई हिंदू हैं। अनेक हिंदुओं की गला रेत कर हत्या की गई है। हजारों लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं। कुकी ईसाइयों ने मैतेई हिंदुओं के 30 से अधिक मंदिरों में आग लगा दी और प्रतिमाओं को पैरों से रौंद डाला है।

‘चिकिम’ की मांग

चिन, कुकी, कचिन और मिजो-इन चारों जनजातियों को एक ही मानव समूह का माना जाता है। इनके द्वारा ‘एक खून और एक देश’ का नारा लगाया जाता है। ये चारों जनजातियां मिल कर एक अलग स्वतंत्र कुकी देश की मांग कर रही हैं। इन्होंने इसे चिकिम (चिन, कुकी, कचिन और मिजो) नाम दिया है। चिकिम के नक्शे में मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, असम और त्रिपुरा के अलावा म्यांमार और बांग्लादेश के वे सभी क्षेत्र समाहित हैं, जहां चिन, कुकी, मार, कचिन और मिजो रहते हैं। इस चिकिम नामक प्रस्तावित स्वतंत्र कुकी देश के निर्माण में मैतेई हिंदू सबसे बड़े बाधक हैं। स्वतंत्र ‘वृहत्तर नागालैंड’ के निर्माण में भी मैतेई हिंदू सबसे बड़े बाधक हैं।

मैतेई समाज जब तक हिंदू है तभी तक बाधक है। जिस दिन ये ईसाई बन जाएंगे उस दिन ये भी नागा और कुकी ईसाइयों के साथ मिलकर अलग ‘कांगलीपाक’ (मणिपुर का प्राचीन नाम) नामक अलग देश की मांग शुरू कर सकते हैं। तब क्या स्थिति होगी, इसका अंदाजा लगाना कोई कठिन नहीं है।

वर्तमान संघर्ष का कारण
म्यांमार से लगभग 50,000 चिन, कुकी मणिपुर में अवैध रूप से घुसकर मणिपुरी हिंदुओं की जमीन और सरकारी वनों में 300 से अधिक अवैध गांव बसा चुके हैं। इनको मिलाकर कुल कुकी गांवों की संख्या 1,336 हो गई है। ये लोग 8-10 बच्चे पैदा कर अपनी जनसंख्या तेजी से बढ़ा रहे हैं। स्थानीय कुकी समाज, ईसाई मिशनरियां और कुकी आतंकवादी संगठन इन कुकियों को संरक्षण प्रदान करते हैं। कुकी आतंकवादी इन चिन कुकियों और स्थानीय कुकियों से पोस्त की खेती करवाते हैं। अनुमान है कि 150 एकड़ से भी अधिक जमीन पर पोस्त की खेती होती है। कुकी आतंकवादी इससे मादक पदार्थ बनाकर मणिपुर और पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में बेचते हैं। यह इनकी आय का प्रमुख साधन है, जिससे सैकड़ों करोड़ रुपए का अवैध धंधा होता है।

जातीय संहार
कुकी आतंकवादियों से केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने 22 अगस्त, 2008 को सैन्य परिचालन के निलंबन को लेकर एक समझौता किया। कुल 32 कुकी आतंकवादी संगठनों में से 25 ने समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद सेना तो बैरक में चली गई, किंतु कुकी आतंकवादी एके 47 लेकर सड़क पर आ गए। अब पूरा पर्वतीय क्षेत्र कुकी आतंकवादियों के नियंत्रण में आ गया है। कहा जा रहा है कि यहां पोस्त की खेती को कुकी गांवों के गांव बूढ़ा (ग्राम प्रमुख) को सौंपकर पोस्त के उत्पादन का लक्ष्य उन्हें बता दिया गया।

इस क्षेत्र के मैतेई हिंदू ग्रामों ने इसका विरोध किया। इसलिए कुकियों ने इनके गांवों में आग लगा दी, इनके मंदिरों को तोड़ कर राधा-गोविन्द, शंकर भगवान और सनामही भगवान की प्रतिमाओं को अपमानित किया। किंतु मैतेई हिंदुओं को बचाने के लिए कुछ नहीं किया गया। जिस प्रकार कश्मीर घाटी से जिहादी तत्वों ने हिंदुओं का नरसंहार कर उनको भगा दिया, उसी प्रकार कुकियों ने इस पूरे क्षेत्र में मैतेई हिंदुओं का जातीय संहार किया। इस कारण मैतेई हिंदू अपने गांव छोड़कर सुरक्षित स्थान पर चले गए हैं। ये लोग शरणार्थी का जीवन जीने के लिए मजबूर हैं। कुकियों ने उनके घर के ताले तोड़ कर सामान लूट लिए, घर और जमीन पर कब्जा कर लिया।

सरकार की कार्रवाई
मणिपुर की एन. बिरेन सिंह की भाजपा सरकार ने सुरक्षा बल लगा कर इन विदेशी चिन कुकियों से इस क्षेत्र को खाली कराना शुरू किया और राष्ट्रीय नागरिक पंजिका लागू करने की बात कही। पोस्त की खेती और मादक द्रव्य बनाने वाली मशीनों सरकारी वनों और जमीन पर बने घरों को जेसीबी और बुलडोजर से तुड़वाना शुरू किया। इसके विरोध में सारा कुकी समाज सड़क पर आ गया। चर्च ने कुकियों के साथ नागा समाज को भी जोड़ा और 3 मई, 2023 को मणिपुर के सभी 10 पर्वतीय जिलों में आल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन के तत्वावधान में ट्राइबल सोलिडर्टी मार्च निकाली, जिसमें एके 47 के साथ सभी आतंकवादी संगठनों और ईसाई मिशनरियों ने भी भाग लिया। गत 3 मई को उपराष्टÑपति जगदीप धनखड़ मणिपुर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में उपस्थित थे। इसलिए काफी सुरक्षा बल इनकी सुरक्षा में लगे थे। इस अवसर का लाभ उठाकर इस जुलूस की रचना की गई थी, जिसमें नागाओं ने भी भाग लिया।

जुलूस जब चुराचन्दपुर पहुंचा तो मैतेई हिंदुओं पर पत्थर फेंके गए, रास्ते में जो हिंदू मिला उनको मारा-पीटा और सामान लूट लिया। परिणामत: कुकी ईसाई और मैतेई हिंदू के बीच खूनी संघर्ष छिड़ गया, जिसमें इस रपट के लिखे जाने तक तक दोनों पक्षों के 200 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और लगभग इतने ही लोग लापता हैं। इनमें आधे से अधिक मैतेई हिंदू हैं। अनेक हिंदुओं की गला रेत कर हत्या की गई है। हजारों लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं। कुकी ईसाइयों ने मैतेई हिंदुओं के 30 से अधिक मंदिरों में आग लगा दी और प्रतिमाओं को पैरों से रौंद डाला है।

मैतेई हिंदू 1949 तक जनजाति श्रेणी में थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने इसे हटा कर सामान्य श्रेणी में कर दिया, ताकि ईसाई कन्वर्जन को बल मिले और मैतेई हिंदू कमजोर हो जाएं। इस अन्याय से छुटकारा पाने के लिए मैतेई हिंदुओं को तो जनजाति की मान्यता मिलनी ही चाहिए।
(लेखक पूर्वोत्तर मामलों के विशेषज्ञ हैं)

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