विदेशी हाथ भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नष्ट करने या कम से कम धीमा करने की कोशिश कर रहा है, 1997 में तब सामने आया, जब पांच प्रमुख वैज्ञानिकों – सतीश धवन, यूआर राव, यशपाल, रोडम नरसिम्हा और के.चंद्रशेखर ने टीएन शेषन के साथ सरकार को एक पत्र लिखा
- 18 जनवरी, 1991 को इसरो ने ‘क्रायोजेनिक इंजन’ के प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ग्लावकोसमोस के साथ एक समझौता किया था। भारत ने बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि पहले ही विकसित कर ली थी।
- लेखक और ब्रॉडकास्टर ब्रायन हार्वे ने अपनी विस्तृत शोध पुस्तक, ‘ इन स्पेस: द फेल्ड फ्रंटियर’ में लिखा है कि 1980 के दशक के अंत में, भारत 24 घंटे की कक्षा में उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए एक विशाल रॉकेट विकसित करने पर विचार कर रहा था। भारत ने पहले जापान से बात की, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। फिर पहले जनरल डायनेमिक्स कॉर्पोरेशन ने भारतीयों से संपर्क किया, जिसने एक अमेरिकी इंजन की पेशकश की। लेकिन लागत बहुत अधिक थी, इसके तुरंत बाद यूरोप के एरियनस्पेस से प्रस्ताव आया। हार्वे ने लिखा, ‘तभी एक तीसरा प्रस्ताव आया, इस बार सोवियत संघ से 200 मिलियन डॉलर की काफी उचित कीमत पर दो इंजन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की पेशकश की गई।’
- रूसी एक गोपनीय इंजन, आरडी-56 या केवीडी-1 की पेशकश कर रहे थे, जिसका निर्माण इसायेव डिजाइन ब्यूरो ने किया था। केवीडी-1 में अद्वितीय ताकत और क्षमता थी। यह रॉकेट इंजन मूल रूप से 1964 में सोवियत मानवयुक्त चंद्रमा लैंडिंग कार्यक्रम के हिस्से के रूप में विकसित किया गया था।
- इसरो और ग्लावकोस्मोस को संदेह था कि अमेरिका इस प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर आपत्ति करेगा। इसलिए, इसरो और ग्लावकोस्मोस प्लान बी के साथ तैयार थे। इसके अनुसार, ग्लावकोसमोस अपने क्रायोजेनिक इंजन के निर्माण को केरल हाई-टेक इंडस्ट्रीज लिमिटेड (केईएलटीईसी) को आउटसोर्स करेगा, ताकि इस व्यवस्था से प्रौद्योगिकी भारत को उपलब्ध हो सके। मई 1992 में अमेरिका ने इसरो और ग्लावकोसमोस पर प्रतिबंध लगा दिया, यह आरोप लगाते हुए कि यह व्यवस्था एमटीसीआर का उल्लंघन है।
- हालांकि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और उनकी पत्नी हिलेरी को कुछ अज्ञात कारणों से भारत का मित्र माना जाता है, लेकिन राष्ट्रपति क्लिंटन के काल में रूस भारत को प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करने के अपने प्रस्तावों से पीछे हट गया और उसने समझौते को निलंबित कर दिया। इस संबंध में अमेरिकी उपराष्ट्रपति अल गोर और उनके रूसी समकक्ष विक्टर चेर्नोमिर्डिन के बीच हुआ समझौता महत्वपूर्ण था।
- खैर, जनवरी 1994 में संशोधित रूस-भारत समझौता हुआ। इसके तहत, मॉस्को तीन पूरी तरह बने बनाए केवीडी-1 इंजन, बिना तकनीक हस्तांतरण देने पर सहमत हुआ, जिसे भारत के आग्रह पर सात इंजन कर दिया गया। भारत को कोई ब्लूप्रिंट भी नहीं दिया जाना था।
- 1990 के दशक की शुरुआत में अमेरिकी जासूस पूरे रूस में रेंग रहे थे, और इतनी बड़ी वस्तु को चोरी-छिपे स्थानांतरित करना आसान नहीं था। ‘इसरो ने पहले एयर इंडिया से संपर्क किया, लेकिन एयरलाइन ने कहा कि वह सीमा शुल्क की खुली मंजूरी के बिना परिवहन नहीं कर सकती। जे. राजशेखरन नायर ने अपनी पुस्तक, ‘स्पाईज फ्रॉम स्पेस: द इसरो फ्रेम-अप’ में इसका खुलासा किया है। इसरो ने रूस की यूराल एयरलाइंस के साथ एक समझौता किया। हार्वे ने आगे लिखा है: ’उचित दस्तावेजों, और उपकरणों को कथित तौर पर यूराल एयरलाइंस द्वारा गुप्त उड़ानों पर मास्को से दिल्ली तक चार शिपमेंट में स्थानांतरित किया गया।
- इसकी पुष्टि क्रायोजेनिक टीम लीडर नंबी नारायणन ने की, जिन्होंने भारतीय मीडिया को बताया कि वह उस उड़ान में सवार थे, जिसने प्रौद्योगिकी को भारत पहुंचाया। वे अपने सहायक डी. शशिकुमारन के साथ क्रायोजेनिक इंजन प्रौद्योगिकी के प्रभारी थे।
- नारायणन को केरल पुलिस और इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) ने गिरफ्तार कर लिया और प्रताड़ित किया। उन पर मालदीव की दो ऐसी महिलाओं के माध्यम से महत्वपूर्ण सैन्य जानकारी बेचने का आरोप था, जिनसे वे कभी मिले तक नहीं थे।
- कुछ महत्वाकांक्षी पुलिस अधिकारियों ने रशीदा की गिरफ्तारी के अवसर का इस्तेमाल वरिष्ठ पुलिस अधिकारी रमन श्रीवास्तव को निशाना बनाने के लिए किया। रशीदा की गिरफ्तारी के एक महीने के भीतर कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने नंबी नारायणन के डिप्टी डी. शशिकुमारन और तीन अन्य को गिरफ्तार कर लिया। दो हफ्ते बाद, 30 नवंबर, 1994 को नारायणन को भी गिरफ्तार कर लिया गया। मामला तब और संदिग्ध हो गया जब इकोसिस्टम के करीबी अधिकारी आरबी श्रीकुमार को 1994 में तिरुअनंतपुरम में राज्य खुफिया ब्यूरो (एसआईबी) का उप निदेशक बना दिया गया।
- पहला संकेत कि कोई विदेशी हाथ भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नष्ट करने या कम से कम धीमा करने की कोशिश कर रहा है, 1997 में तब सामने आया, जब पांच प्रमुख वैज्ञानिकों – सतीश धवन, यूआर राव, यशपाल, रोडम नरसिम्हा और के.चंद्रशेखर ने टीएन शेषन के साथ सरकार को एक पत्र लिखा, जिसमें कहा गया कि नारायणन और कुमारन के खिलाफ जासूसी के आरोप मनगढ़ंत थे।
- केरल पुलिस के एक विशेष जांच दल की 15 दिनों की जांच के बाद, मामला सीबीआई को स्थानांतरित कर दिया गया, जिसने 18 महीने की जांच के बाद अप्रैल 1996 में निष्कर्ष निकाला कि नंबी नारायणन और अन्य के खिलाफ मामला मनगढ़ंत था।
(लेखक इतिहास के अध्येता हैं)
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