भोपाल। मध्य प्रदेश में ईसाई मिशनरी ने मतान्तरण की सभी हदें पार कर दी हैं। कोई एक घटना नहीं, पिछले कुछ समय में अनेक घटनाएं सामने आ चुकी हैं। वह योजना से हिन्दू बच्चों को ईसाई मत में कन्वर्ट करने का कार्य कर रहे हैं और सरकारी मशीनरी प्रदेश में धर्मांतरण रोधी कानून होने के बाद भी उन्हें रोकने में असमर्थ साबित हो रही है। मध्य प्रदेश बाल संरक्षण आयोग की टीम जहां भी जा रही है, वहीं मतान्तरण का एक जैसा पेटर्न मिल रहा है।
नया मामला मप्र के झाबुआ जिले का है, जहां मिशन हायर सेकेंडरी स्कूल परिसर के अंदर स्थित ज्योति भवन में जब राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की टीम पहुंची तो यह देखकर दंग रह गई कि कैसे नाबालिग बच्चियों को दूसरे राज्यों से लाकर यहां नन बनाया जा रहा है, जबकि शिक्षा के मंदिर में इस तरह का कृत्य गैर कानूनी है। यहां नन बनाई जा रही तीनों किशोरियां राजस्थान से लाई गई हैं।
आयोग ने अपनी जांच में इस स्कूल में अनेक खामियां पाई हैं। साथ ही यहां के आवासीय छात्रावास में बच्चों से अतिरिक्त शुल्क लिया जाता हुआ पाया गया। विदेश से भी फंडिंग होने की बात सामने आई है। एक 12 बोर की बंदूर का होना भी यहां पाया गया। जिसे कि संस्था के नाम होना बताया गया, किंतु आर्म्स एक्ट के नए प्रावधानों के अनुसार उसका कोई पालन नहीं होता हुआ मिला। अब इन सभी तमाम गंभीरताओं को देखते हुए राज्य बाल आयोग ने संस्था पर एफआईआर दर्ज कराने की तैयारी कर ली है। साथ ही आयोग ने तत्काल ही इन तीनों किशोरियों को बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) झाबुआ के सुपुर्द कर दिया। जहां से उन्हें वन स्टाप सेंटर भेज दिया गया है।
इस संबंध में राज्य बाल संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) के सदस्य ओंकार सिंह ने बताया कि यहां वनवासी समाज के बच्चों से भी अलग से छात्रावास में रखने के नाम पर हर साल अलग से 20 हजार से 15 हजार रुपए तक लिए जा रहे हैं। जिसकी पुष्टि जांच के दौरान हुई है। इन्हें ईसाई मत में कन्वर्ट करने के लिए तरह-तरह के उपाय करते हुए यहां साक्ष्य मिले हैं। स्कूल और छात्रावास में बंदूक का क्या काम ? नए नियमों के अनुसार किसी भी शिक्षा संस्थान में शस्त्र रखने की अनुमति नहीं है। यहां ज्योति भवन से एक 12 बोर बंदूक के साथ पटाखे चलाने वाली एक बंदूक पाई गई। इस पर हमने आपत्ति ली है और दोनों ही बंदूकें जब्त करके झाबुआ पुलिस थाने को सौंप दी हैं।
ओंकार सिंह का कहना है कि आयोग ने सभी अनियमितताओं को बेहद गंभीरता से लिया है, ऐसे में आयोग इस संस्थान के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए शासन को लिखेगा। संस्था पर एफआईआर की जानी चाहिए और फिर इस संपूर्ण मामले में निष्पक्ष जांच होकर जो भी इन गड़बडि़यों में संलिप्त पाए जाते हैं उन पर कठोर कार्रवाई की जाए, यह हमारी इच्छा है।
इनके साथ नन बनने आईं छात्राओं से बातचीत करने एवं गहराई से तथ्यों को जानने के बाद प्रदेश बाल संरक्षण आयोग की सदस्य सोनम निनामा ने बताया कि यहां बच्चियां स्कूल की ड्रेस पहने हुए थीं और नन की ट्रेनिंग लेने आई थीं। उन्होंने बताया कि जब हम यहां पहुंचे तो कैथोलिक गर्ल्स छात्रावास के पास के भवन में नन के साथ तीन वनवासी किशोरियां दिखीं। उनसे जब मेरे द्वारा सहज ही बातचीत की गई तो पता चला कि उन्हें राजस्थान, बांसवाड़ा जिले के किसी गांव से नन बनने का प्रशिक्षण देने के लिए यहां लाया गया है। किसी भी शिक्षा परिसर में इस प्रकार से नन बनने के प्रशिक्षण देने की अनुमति नहीं है। ऐसे में यह कैसे शिक्षा के स्थान में नन बनाई जा रही थीं ?
उन्होंने कहा कि ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित इस परिसर में जांच के दौरान ध्यान में आया है कि संस्था संचालनकर्ताओं को किसी भी कानून या शासन का कोई भय नहीं। ये यहां शासन के बनाए किसी भी नियम का पालन करते हुए नहीं पाए गए। आयोग सदस्य सोनम निनामा का कहना यह भी था कि अपनी जांच के दौरान प्रदेश बाल आयोग ने अनेक खामियां चिन्हित की हैं। फिलहाल तीनों लड़कियों को बाल कल्याण समिति झाबुआ के सुपुर्द कर दिया गया है। सभी को वन स्टाप सेंटर पर भेजा है।
वहीं, इस संपूर्ण मामले में अपनी प्रतिक्रिया डॉ. निवेदिता शर्मा ने भी दी । उन्होंने आयोग टीम की इस जांच को लेकर बताया कि प्रदेश में बाल संरक्षण आयोग जहां भी बालकों के संबंध में शिकायत मिलती है या उनके साथ कुछ गलत होने की जानकारी सामने आती है, तब दोनों ही स्थिति में आयोग वहां पहुंचता है। अब तक कई शासकीय, निजि एवं अन्य अल्पसंख्यक सभी प्रकार के विद्यालयों, छात्रावासों में बाल आयोग का जाना हुआ। इन सभी में निरीक्षण के दौरान ध्यान में आया है कि अधिकांश अल्पसंख्यक प्रबंधकों द्वारा चलाए जा रहे शिक्षण संस्थानों में मतांतरण-धर्मांतरण हो रहा है। मुरैना, डबरा-ग्वालियर, डिंडौरी, मंडला, सागर, दमोह, शिवपुरी, समेत कई जिलों में जहां भी अब तक जाना हुआ, स्थितियां लगभग एक जैसी हैं। इनमें कई अल्पसंख्यक संस्थानों ने विद्यालय चलाने की मान्यता तक राज्य सरकार ने नहीं ली है, फिर भी ये कई वर्षों से बिना किसी अनुमति लिए और बिना किसी भय के संचालित होते पाए गए हैं।
उन्होंने कहा, यह देखकर आश्चर्य होता है कि एमपी में धर्मांतरण को लेकर राज्य सरकार सख्त है। मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता नियम 2022 लागू है। किसी भी धर्म के लोगों को धर्मांतरण के 60 दिन पूर्व आवेदन देना होगा। इसके बाद कलेक्टर इसका रिव्यू करते हैं। जांच के दौरान अगर यह बात सामने आती है कि भय, प्रलोभन, धोखे, कपट आदि से धर्मांतरण कराए जा रहे हैं तो कार्रवाई की जाती है । इसमें शामिल सहयोगियों और सहभागियों को 10 वर्ष तक की जेल और एक लाख रुपये तक के जुर्माने की सजा दिए जाने के प्रावधान मप्र की सरकार द्वारा किए गए हैं। इसके बाद भी कहीं कोई शासन का भय यहां नहीं दिखता है।
डॉ. निवेदिता शर्मा यह भी कह देती हैं कि यदि आप कोई विद्यालय, छात्रावास या अन्य कुछ भी बालकों के हित में या उनसे संबंधित संचालित कर रहे हैं तो उसे शासन के बनाए हुए नियमों का पालन करते हुए चलाएं। यहां ऐसा लगता है कि शासन के नियमों को नहीं मानकर वे सीधे यह जता रहे हैं कि व्यवस्था को वे नहीं मानेंगे। वे संविधान, कानून और सभी नियमों से ऊपर हैं। आगे भी जहां अनियमितताएं पाई जाएंगी, स्वभाविक है कि वहां बाल आयोग अपनी कार्रवाई करेगा। क्योंकि शासन के बनाए नियम सभी को मानना अनिवार्य है।
वहीं, इस संबंध में बाल कल्याण समिति झाबुआ के अध्यक्ष प्रदीप ओएल जैन का कहना है कि किशोरियां कक्षा 11वीं और 12वीं की पढ़ाई भी कर रही हैं । जहां यह मिली वह पूरा शिक्षा परिसर है। राज्य शासन के नियमों से किसी भी शिक्षा परिसर में नन बनाने की गतिविधि चलाने की अनुमति नहीं दी जाती है। हमने लड़कियों के अभिभावकों को राजस्थान से बुलवाया है। हम इस बात की जांच करेंगे कि आखिर इन किशोरियों को राजस्थान से पढ़ाई के लिए और नन बनाने के लिए झाबुआ क्यों लाया गया । क्या यह किसी प्रलोभन की शिकार हुई हैं। क्या इसके माता-पिता की गरीबी का फायदा उठाकर कोई लालच दिया गया है। कैसे यह नाबालिग नन बनने के लिए तैयार हो गईं।
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