कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं की भरमार के कारण देश में खेल-खिलाड़ी चर्चा में बने हुए हैं। कुछ सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक संदर्भों के कारण चर्चा में हैं। भारतीय खेल जगत का इस तरह सुर्खियों में बने रहना एक शुभ संकेत है क्योंकि बदलते भारत में खेल की दशा और दिशा में बहुत अंतर आ चुका है। खैर, यह लंबी चर्चा का विषय है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से भारतीय क्रिकेट को लेकर काफी चर्चाएं हो रही हैं। जैसे, भारतीय टीम इन दिनों बदलाव के दौर से गुजर रही है, टीम में सीनियर खिलाड़ियों की जगह उभरते हुए युवा खिलाड़ियों को शामिल किया जाना चाहिए, क्या रोहित शर्मा की कप्तानी में टीम शिखर तक पहुंचने की क्षमता रखती है, क्रिकेट के व्यस्त कार्यक्रमों के कारण जसप्रीत बुमराह या हार्दिक पांड्या जैसे धुरंधर खिलाड़ियों की फिटनेस प्रभावित हो रही है… और इसी तरह के अनगिनत सवाल-जवाब। इस बीच, पिछले एक-दो वर्षों से चर्चाएं उठीं कि क्या रोहित शर्मा, विराट कोहली और केएल राहुल के रहते टीम इंडिया का कितना भला हो पाएगा। मीडिया के एक वर्ग ने एक विशेष रणनीति के तहत इस तरह के सवाल उठाए और चारों ओर हंगामा सा मच गया। खिलाड़ी दबाव में आ गए। स्थिति ये हो गई कि आशातीत सफलताएं हासिल करने के बाद अचानक से टीम औंधे मुंह गिरी। टीम इंडिया का पिछले साल टी-20 विश्व कप के सेमीफाइनल और टेस्ट विश्व चैंपियनशिप के फाइनल में बुरी तरह से हारना खेलप्रेमियों के गले नहीं उतरा और गंभीर चिंतन का दौर चल पड़ा।
लंबा सफर तय किया
इस बीच स्टार बल्लेबाज विराट कोहली को एक तरह से खलनायक के तौर पर पेश किया जाने लगा। वो स्थिति जायज नहीं थी। आत्मगिलानी में विराट ने पहले टीम की कप्तानी छोड़ी। फिर कुछ दिनों का विश्राम लिया और जब मैदान में वापसी की तो उन्होंने अपने प्रदर्शन से आलोचकों को करारा जवाब दिया। वेस्ट इंडीज के विरुद्ध पोर्ट ऑफ स्पेन टेस्ट में शानदार शतक जड़ उन्होंने साबित कर दिया कि वह भारत के महानतम बल्लेबाजों की श्रेणी में आते हैं। अपने 500वें अंतरराष्ट्रीय मैच में शतक मारने वाले वह विश्व के एकमात्र बल्लेबाज हैं। इसके अलावा सचिन तेंदुलकर के 100 अंतरराष्ट्रीय शतकों के रिकॉर्ड की ओर कदम बढ़ाते हुए उन्होंने 76वां शतक पूरा किया। 140 करोड़ से अधिक आबादी वाले हमारे देश में क्रिकेट विशेषज्ञों और आलोचकों की संख्या किसी भी लिहाज से क्रिकेट खिलाड़ियों से कम नहीं है। उन्हीं में से कुछ ने उच्छृंखला का परिचय देते हुए फिर से सवाल उठाने शुरू कर दिए कि विदेशी धरती पर 36 पारियों के बाद शतक ठोक विराट ने कोई ऐसा काम नहीं कर दिया कि हम उनका गुणगान करने लग जाएं। लेकिन क्या उनके पास इसका कोई जवाब है कि अपने 500वें अंतरराष्ट्रीय मैच में विराट कोहली जितने फिट और मेहनती हैं, टीम में उनकी बराबरी करने वाला कोई है? क्या कोई बिना प्रतिभा के इस उपलब्धि को हासिल करने वाले विश्व के 10वें खिलाड़ी बन गए? थोड़ा तो विराट कोहली की स्थिति पर गौर करें कि जिस भारतीय टीम में जगह बनाने व एक मैच खेलने के लिए हजारों खिलाड़ी इंतजार कर रहे होते हैं, लाखों युवा उस होड़ में शामिल होने के लिए अथक परिश्रम कर रहे होते हैं, वहां 500 अंतरराष्ट्रीय मैच खेलना आसान है क्या? शायद इन सवालों के जवाब इतने आसान नहीं हैं जितनी आसानी से लोग आलोचनाएं करनी शुरू कर देते हैं। इस मंजिल को पाने के लिए विराट ने एक लंबा सफर तय किया है। टीम के कोच और महान खिलाड़ियों में शुमार राहुल द्रविड़ भी स्वीकर करते हैं कि विराट ने इतना लंबा सफर तय करने के लिए अथक परिश्रम और टीम में बने रहने के लिए ईमानदारी से सतत प्रदर्शन किया है।
अब भी हैं श्रेष्ठ
विराट कोहली के लंबे समय बाद विदेशी धरती पर शतक मारने से भी जब खेलप्रेमियों को संतोष नहीं हुआ तो उन्होंने विराट की इस पारी पर सवाल उठाने शुरू कर दिए। लेकिन एक खेलप्रेमी के लिहाज से देखें तो टेस्ट क्रिकेट को बचाए रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद और तमाम क्रिकेट बोर्ड प्रयास कर रहे हैं। लेकिन उनमें से वेस्ट इंडीज एक ऐसी टीम या बोर्ड है जिन्हें टेस्ट क्रिकेट को बचाए रखने में कोई दिलचस्पी नहीं है। उन्हें फटाफट क्रिकेट से फटाफट पैसे कमाना ज्यादा रास आता है। कैलिप्सो संगीत और मस्ती में लीन रहने वाले कैरेबियन द्वीप के क्रिकेटरों के पास विशेषकर टेस्ट क्रिकेट में खोने को कुछ नहीं दिखता है। ज्यादातर स्टार क्रिकेटर वेस्ट इंडीज के लिए टेस्ट खेलना तक पसंद नहीं करते। लेकिन टेस्ट क्रिकेट के विपरीत माहौल में जब बेफिक्र अंदाज में कोई विपक्षी टीम मैदान पर सामने हो तो रन बनाना उतना आसान भी नहीं होता। 1983 विश्व विजेता टीम के स्टार क्रिकेटर मदनलाल इस बात की चर्चा करते हुए कहा कि विराट अगर इस मंजिल को पाने में सफल हुआ है तो उसके लिए उसने काफी त्याग भी किया है। मदनलाल ने कहा, विराट लगातार बेहतर प्रदर्शन करने के लिए जी-तोड़ मेहनत में जुटा रहता है। इतनी आलोचनाएं झेलने के बाद भी विराट ने अपना फोकस कहीं और नहीं मोड़ा। वह निरंतर अपने खेल में सुधार लाने को प्रयासरत रहा और वेस्ट इंडीज को हल्के में लेने की चूक नहीं की। अगर वेस्ट इंडीज के गेंदबाज इतने ही कमजोर हैं तो विराट कोहली और यशस्वी जायसवाल के अलावा अन्य कोई नामी खिलाड़ी शतक मारने में सफल क्यों नहीं हो पाया। मदनलाल सहित ईशांत शर्मा व आकाश चोपड़ा जैसे कितने ही पूर्व क्रिकेटरों ने विराट की तारीफ की है। इन सभी का मानना है कि चूंकि विराट ने निरंतर अच्छा प्रदर्शन करते हुए अपना पैमाना इतना ऊंचा कर लिया है कि उनके बल्ले से शतक न निकले तो लगता ही नहीं है कि उन्होंने कुछ अच्छा किया है। जबकि सच्चाई यही है विराट भारत के एकमात्र ऐसे क्रिकेटर हैं जिनका टेस्ट औसत (49.2), वनडे औसत (57.30) और अंतरराष्ट्रीय टी 20 औसत (52.7) 50 के करीब या उससे अधिक है। यही नहीं, इतना मैच खेल लेने के बावजूद विराट इस वर्ष भी टीम की ओर से अच्छा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों में शामिल रहे हैं।
त्याग और खेल से लगाव
विराट में क्रिकेट को लेकर इस तरह का लगाव है कि वह इसके लिए कुछ भी त्याग करने की क्षमता रखते हैं। विराट के मित्र व पूर्व क्रिकेटर ईशांत शर्मा उनके खेल के प्रति लगाव और त्याग की चर्चा करते हुए बताते हैं – वर्ष 2006 में विराट जब मात्र 17 वर्ष के थे, उनके पिता का निधन हो गया। उस समय हमलोग दिल्ली-कर्नाटक का रणजी मैच खेल रहे थे। मैच में दिल्ली की हार लगभग तय दिख रही थी। विराट अपने पिता के निधन की खबर सुनने से पहले दिन नाबाद 40 रन बनाकर क्रीज पर थे और पारी का भार उन्हीं के कंधों पर टिका था। मैंने व टीम के अन्य साथियों ने विराट को मैच छोड़ देने की सलाह दी। लेकिन विराट ने कहा कि उनके पिता उन्हें एक क्रिकेटर बनाना चाहते थे इसलिए वह अपनी जिम्मेदारी पूरी करेंगे। विराट मैदान पर आए और 90 रन की पारी खेलकर वापस अपने घर लौट पिता की अंत्येष्टि में शामिल हुए।
आकाश चोपड़ा ने विराट के शुरुआती करिअर को याद करते हुए बताया कि विराट को खाने-पीने का खूब शौक था और अपनी मस्ती में रहने वाला युवा खिलाड़ी फिटनेस को लेकर बहुत सीरियस नहीं था। इसी कारण टीम के साथी खिलाड़ी विराट को चीकू के निकनेम से पुकारते थे। कुछ समय बाद टीम के फिटनेस स्तर को बेहतर होते देख विराट ने भी कठिन परिश्रम करना शुरू कर दिया। इस क्रम में उन्होंने अपने पसंदीदा खाने को पिछले 10-12 साल से हाथ तक नहीं लगाया और एक समय ऐसा आया कि सिर्फ प्रोटीन और तरल पदार्थों का सेवन करते हुए खुद को टीम का सबसे फिट खिलाड़ी बना लिया। वेस्ट इंडीज में ही दूसरे टेस्ट मैच के दौरान रन लेने के प्रयास में विराट जब डाइव लगा रहे थे तो मशहूर क्रिकेटर व कमेंटेटर इयान बिशप ने कहा – विश्व के हर युवा क्रिकेटरों को विराट से सीख लेनी चाहिए कि मैदान पर डाइव कैसे लगाया जाता है और क्रिकेट में फिटनेस की क्या महत्ता है।
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