बंगाल में विधानसभा चुनावों में हुई हिंसा स्मरण होगी और हाल ही में जिस प्रकार से पंचायत चुनावों में हिंसा और महिलाओं को लेकर हिंसा हुई है, वह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। स्त्री की देह पर ही जैसे सारे युद्ध लड़े जा रहे हैं और स्त्री की देह ही जैसे बिसात बनी हुई है। आज कुछ उन भूले हुए मामलों की बात करेंगे जिनमें महिलाओं को निर्वस्त्र किया गया, उनके साथ या तो राजनीतिक प्रतिशोध लिया गया या फिर उन्हें मात्र अपनी हवस मिटाने के लिए कुछ लोगों द्वारा वस्त्रविहीन कर दिया गया।
यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस बंगाल का नाम साहित्य एवं संवेदना के लिए प्रख्यात है, उसी बंगाल में लगातार राजनीतिक दुराग्रह के चलते महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं, परन्तु संवदेना की नदी वहां तक जा नहीं पाती। यही दुर्भाग्य है! बंगाल के हावड़ा के पांचला क्षेत्र में पंचायत चुनाव के मतदान के दिन ग्राम पंचायत की एक प्रत्याशी ने तृणमूल कार्यकर्ताओं पर यह आरोप लगाया है कि उसे निर्वस्त्र करके पूरे गाँव में घुमाया गया था। घटना 8 जुलाई की बताई जाती है। महिला के अनुसार उन्हें तृणमूल के लगभग 40 उपद्रवियों ने मारा-पीटा था। और उन्हें मतदान केंद्र से बाहर फेंक दिया गया। एफआइआर की कॉपी में तृणमूल प्रत्याशी हेमंत राय, नूर आलम, अल्फी एसके, रणबीर पांजा संजू, सुकमल पांजा समेत कई लोगों के नाम हैं।
मगर यह एक घटना नहीं है और न ही अंतिम है। बंगाल में ही जब विधानसभा के चुनाव परिणाम आए थे और उसके बाद हिंसा का जो दौर चला था उसमें दिल दहलाने वाली कई घटनाएं सामने आई थीं, जिनमें एक 60 वर्षीय महिला की भी कहानी सामने आई थी, जिसमें उनके साथ उनके पोते के सामने ही बलात्कार किया गया था। तृणमूल कांग्रेस के लोगों ने उन्हें खाट पर बांधकर बलात्कार किया था और जबरन जहर भी दे दिया था। इस घटना के बाद वह लगभग एक माह तक अस्पताल में भर्ती रही थीं। उन्होंने उच्चतम न्यायालय से न्याय की गुहार लगाई थी। मगर उनकी पीड़ा का विमर्श नहीं बन सका था।
महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचारों में प्रथम स्थान पर राजस्थान है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के साथ अत्याचार के मामले सबसे अधिक राजस्थान में हो रहे हैं। हाल ही में जोधपुर में एक ही परिवार के चार सदस्यों को जिंदा जला दिया गया था। और इसमें छह महीने की बच्ची तक को नहीं छोड़ा था और उसे भी आग के हवाले कर दिया था। मगर जो सबसे घिनौना काण्ड हुआ था वह था वंचित समाज की महिला को निर्वस्त्र करके पति और बच्चों के सामने ही उसका सामूहिक बलात्कार करना। यह वर्ष 2022 की घटना है। धौलपुर की 26 वर्षीय महिला खेत से सरसों की कटाई के बाद वापस आ रही थी। गाँव के कुछ लोगों ने पहले उसके पति के साथ मारपीट की थी, और फिर कट्टा का भय दिखाकर बच्चों के सामने ही दुष्कर्म किया। इस जघन्य घटना पर भी महिला विमर्श का झंडा उठा रहे लोगों ने कुछ कहा हो, यह संज्ञान में नहीं आता!
21 जुलाई 2023 को राजस्थान सरकार में मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने भी महिला सुरक्षा के मामले पर अपनी ही सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि “राजस्थान में इस बात में सच्चाई है कि हम महिलाओं की सुरक्षा में विफल हो गए हैं। राजस्थान में जिस तरह से महिलाओं पर अत्याचार बढ़े हैं, ऐसे में हमें मणिपुर की बजाय अपने गिरेबां में झांकना चाहिए।” हालांकि इस सच की कीमत उन्हें चुकानी पड़ी और मोहब्बत की दुकान चलाने का दावा करने वाली कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा को उनके पद से बर्खास्त कर दिया।
पत्रकार अमिताभ अग्निहोत्री का बिहार की किसी घटना को लेकर ट्वीट वायरल हो रहा है जिसमें लिखा है कि
“लड़की के कपड़े खींचकर फाड़ दिये गये—निर्वस्त्र कर मारा -पीटा गया — मणिपुर की तरह ही बिहार से आई है वीभत्स तस्वीर—-वीडियो हवा में तैर रहा है —हे प्रभु ये क्या हो रहा है !
बंगाल से ही दो महिलाओं के ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिन्हें दिखाया नहीं जा सकता है। उन्हें इसलिए वस्त्रविहीन किया जा रहा क्योंकि उन पर चोरी का संदेह है। hinduvoice नामक हैंडल ने यह वीडियो ट्वीट किया है और लिखा है कि यह वीडियो मालदा का है, जिसमे दो महिलाओं को चोरी के संदेह में पीटा जा रहा है और निर्वस्त्र किया जा रहा है!
महिलाओं को लेकर राजस्थान से ही एक और भयानक समाचार आया है जिसमें वंचित समाज की एक युवती का कुँए में शव मिला है। यह घटना 13 जुलाई की बताई जा रही है। सांसद किरोड़ीलाल मीणा ने आरोप लगाया कि मोहनपुरा, टोडाभीम में दलित बेटी को तड़के सुबह मुंह में कपड़ा ठूंस कर घर से उठाया। फिर सामूहिक बलात्कार किया और फिर गोली मारी और जब गोली मारने से भी नहीं मरी तो तेज़ाब डालकर कुँए में फेंका।
वहीं उत्तर प्रदेश में बाराबंकी में रियाज ने 21 जुलाई 2023 को अपनी ही बहन की गला काटकर इसलिए हत्या कर दी थी क्योंकि उसे अपनी बहन का मुस्लिम समुदाय के ही आदमी से प्यार मंजूर नहीं था। वह सिर काटकर हाथ में लेकर घूमता रहा और फिर पुलिस के पास पहुंचा।
यह सब मामले महिलाओं के मामलों को लेकर व्यापक विमर्श की मांग करते हैं। विशेषकर बंगाल के, क्योंकि बंगाल के मामलों को यह कहकर अनदेखा नहीं किया जा सकता कि वहां पर राजनीतिक हिंसा का इतिहास रहा है। यदि इतिहास रहा भी है तो भी मुखरता के इस दौर में जब वीडियो और तस्वीरें और गवाह वायरल हैं तो कम से कम ऐसे विमर्श आरम्भ होने चाहिए जिनसे यह पता चले कि राजनीतिक दुराग्रहों से दूर होकर भी महिला विमर्श हो सकता है। क्या कारण हैं कि बंगाल में होने वाली महिला हिंसा पर मौन ही जैसे साध लिया गया है और साथ ही राजस्थान में महिलाओं पर हो रही हिंसा की घटनाओं पर बेइन्तहा चुप्पी साध ली गयी है।
राजनीतिक एजेंडे के दायरे में महिला विमर्श नहीं होते। मजहबी एजेंडे के दायरे में महिला विमर्श नहीं होते। रियाज द्वारा अपनी बहन का प्यार करने पर गला काटना और थैले की तरह गला लटकाकर जाना किसी भी विमर्श का हिस्सा नहीं बनता? क्या मुस्लिम महिलाओं की पीड़ा भी तभी विमर्श में आएगी जब उनके साथ अत्याचार करने वाला कोई गैर मुस्लिम होगा? या फिर मीडिया के लिए मुस्लिम महिलाओं की आजादी मात्र हिजाब पहनने की आजादी तक सीमित हो गयी है?
प्रश्न बार-बार उठकर आता है कि इन तमाम घटनाओं पर विमर्श अंतत: कब होगा और क्या महिला विमर्श कभी राजनीतिक एजेंडे या व्यक्तिगत दुराग्रहों से पार पा पाएगा? महिला विमर्श की कई पैरोकारों से प्राय: एक ही वाक्य सुनाई देता है कि वह सत्तापक्ष का विरोध करती हैं। परन्तु सत्तापक्ष के विरोध का महिला विमर्श से क्या सम्बन्ध है?
क्या उनका कहना यह है कि जो सत्ता में होता है वही अत्याचारी होता है, महिलाओं के साथ उत्पीडन आदि सत्ता पक्ष करता है तो यह भी देखना होगा कि सत्ता का अर्थ किससे है? केंद्र में जिस दल की सत्ता होती है, यह आवश्यक नहीं कि प्रदेश में उसी दल की सत्ता हो। ऐसे में वह किस सत्ता का विरोध करेंगी? या फिर वह उनका विरोध करेंगी जिसका सम्बन्ध उन महिलाओं के वैचारिक आकाओं की सत्ता लोलुपता से है? क्या महिला विमर्श मात्र राजनीतिक एजेंडों की पूर्ति हेतु ही रह गया है? यहाँ यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि किसान आन्दोलन में जो पूरी तरह से सत्ता विरोधी आन्दोलन था, एक मामला महिला उत्पीडन और बलात्कार का आया था। परन्तु सत्ता का विरोध करने वाली महिलाओं ने, जिनका पूरा समर्थन उस आन्दोलन को था, उस मामले पर इस प्रकार मौन साध लिया था, जैसे कुछ नहीं हुआ! लड़की का बेचारा पिता अपनी बेटी के साथ हुए अन्याय को लेकर गुहार लगाता रहा, परन्तु महिला विमर्श के ठेकेदारों ने इस पर बात करना उचित नहीं समझा। ऐसे तमाम मामले हैं, जिन्हें देखकर समझा जा सकता है कि महिला विमर्श जिसे महिलाओं पर बात करनी थी, जिसे महिला को महिला समझते हुए दर्द उठाने थे, वह कहीं न कहीं राजनीतिक दुराग्रहों का केंद्र बन गया है, जहां पर सब कुछ है, बस महिला विमर्श नहीं! मणिपुर की घटना ने पूरे देश को शर्मसार किया है। सभ्य समाज का सिर शर्म से झुक गया है। लेकिन इस जघन्य घटना के बाद भी क्या महिला विमर्श का मुद्दा उठ पा रहा है? क्या सभी राज्यों में महिलाओं की स्थिति पर चर्चा हो रही है? महिला विमर्श के लिए राजनीति के एजेंडे और मजहबी एजेंडे से ऊपर उठना होगा। तभी महिलाओं को न्याय मिल पाएगा।
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