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होम भारत

फैल रही ‘चंदन’ की सुगंध

नैनीताल जिले के चंदन नयाल केवल 30 वर्ष के हैं, लेकिन गजब का नाम कर रहे हैं। मन में संकल्प लेकर वे धरती को हरा-भरा कर रहे हैं। गत 10 साल में चंदन ने 60,000 से अधिक पेड़ लगाकर पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभाई है

by संजय चौहान
Jul 21, 2023, 11:30 am IST
in भारत, उत्तराखंड, पर्यावरण
चंदन नयाल द्वारा बनाया गया छोटा पोखर

चंदन नयाल द्वारा बनाया गया छोटा पोखर

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नैनीताल जनपद के ओखलकांडा खंड के ग्राम नाई के तोकचामा निवासी चंदन सिंह नयाल ने इंजीनियरिंग में डिप्लोमा प्राप्त करने के बाद पर्यावरण संरक्षण का बीड़ा उठाया है। चंदन युवा और महिला सहायता समूहों की मदद से अपने गांव में चार हेक्टेयर भूमि में मिश्रित वन विकसित कर रहे हैं।

उत्तराखंड के चंदन सिंह नयाल, बिना किसी हो-हल्ले, शोर-शराबे, चमक-दमक एवं दिखावे से इतर चुपचाप प्रकृति को अपने हाथों से संवार रहे हैं। इस युवा ने गत 10 वर्ष में 60,000 पेड़ लगाए हैं और 6,000 से अधिक चाल-खाल (छोटे-छोटे पोखर) तैयार कर वर्षा जल का संग्रहण किया है। इससे पेड़ों और जंगलों को नवजीवन मिल रहा है।

पेड़ों को जीवन समर्पित

चंदन ने पेड़ों के लिए अपने शरीर को भी दान कर उदाहरण प्रस्तुत किया है। नैनीताल जनपद के ओखलकांडा खंड के ग्राम नाई के तोकचामा निवासी चंदन सिंह नयाल ने इंजीनियरिंग में डिप्लोमा प्राप्त करने के बाद पर्यावरण संरक्षण का बीड़ा उठाया है। चंदन युवा और महिला सहायता समूहों की मदद से अपने गांव में चार हेक्टेयर भूमि में मिश्रित वन विकसित कर रहे हैं। आज यहां लगे पौधे छह से सात फुट लंबे हो चुके हैं। पौधारोपण के लिए वे हर साल अपनी नर्सरी में लगभग 40,000 पौधे तैयार करते हैं। यहां से उन्होंने अब तक लोगों को 70,000 पौधे वितरित किए हैं। उत्तराखंड के पर्यावरण प्रहरी सचिदानंद भारती से प्रेरणा लेकरे चंदन ने नैनीताल जिले की शिवालिक पहाड़ियों को हरा-भरा करने का संकल्प लिया है।

चंदन नयाल अपनी मां के निधन के बाद से प्रकृति को ही अपनी मां और ईश्वर मानते हैं। उन्होंने पेड़ों के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है। यहां तक कि मृत्यु के बाद देह दान के लिए उन्होंने हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज में दानपत्र भरा है। इसके पीछे उद्देश्य है कि इस दुनिया से जाने के बाद उनकी खातिर एक छोटा-सा पेड़ भी न कटे।

एक बार इन जंगलों में इतनी भयंकर आग लगी कि बुरांस का पूरा जंगल तबाह हो गया। अपनी आंखों के सामने जंगल को आग की भेंट चढ़ते देख चंदन नयाल को बेहद पीड़ा हुई। उन्होंने मन ही मन यह दृढ़ निश्चय किया कि वे एक दिन इस जंगल को पुनर्जीवित करेंगे। उन्होंने चीड़ की जगह ‘बांज बचाओ-बांज लगाओ’ का नारा दिया और हजारों बांज के पौधे यहां रोपे। बांज एक पत्तीदार पौधा होता है। इस साल चंदन ने अपने गांव के पास के जंगलों में वर्षा जल को रोकने के लिए छोटे-छोटे पोखर बनाए हैं। इसके दो लाभ हैं-एक, जंगली जानवरों को पीने के लिए पानी मिल जाता है और दूसरा, जमीन में नमी रहती है। इससे पेड़ हरे-भरे रहते हैं। 

नाम के अनुरूप काम

भारत में चंदन की लकड़ी का विशेष महत्व है। इसकी सुगंध से पूरा वातावरण महक उठता है। चंदन के पेड़ में साल में दो बार नई कोपलें, फल और फूल आते हैं। बरसात के पहले और बरसात के बाद चंदन के पेड़ पूरे वन को एक नई आभा से युक्त कर देते हैं। ठीक इसी तरह युवा चंदन नयाल भी विगत 10 वर्ष से बड़ी प्रतिबद्धता के साथ प्रकृति को संवारने में जुटे हुए हैं। चंदन के भगीरथ प्रयासों से ही सूख चुके जलस्रोत पुनर्जीवित हो चुके हैं।

मां से मिली प्रेरणा

चंदन नयाल का जीवन बेहद संघर्षमय रहा है। वे ओखलकांडा से अपने चाचा के साथ पढ़ाई के लिए रामनगर छोई आए। फिर लोहाघाट से इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। तत्पश्चात् रुद्रपुर में कुछ समय बतौर शिक्षक अध्यापन का कार्य भी किया। इस दौरान उन्होंने लोगों को पेड़ों और जंगल के प्रति जागरूक भी किया। उन्होंने छात्र-छात्राओं और अन्य लोगों के सहयोग से विभिन्न अवसरों पर पौधारोपण किया। चंदन का मन कभी भी शहर में नहीं रमा। उन्हें बस अपने पहाड़ और वहां के जंगलों में मौजूद पेड़ों से लगाव था। उनके गांव के पास चीड़ और बुरांस का जंगल था, जिनमें अक्सर आग लग जाती थी।

एक बार इन जंगलों में इतनी भयंकर आग लगी कि बुरांस का पूरा जंगल तबाह हो गया। अपनी आंखों के सामने जंगल को आग की भेंट चढ़ते देख चंदन नयाल को बेहद पीड़ा हुई। उन्होंने मन ही मन यह दृढ़ निश्चय किया कि वे एक दिन इस जंगल को पुनर्जीवित करेंगे। उन्होंने चीड़ की जगह ‘बांज बचाओ-बांज लगाओ’ का नारा दिया और हजारों बांज के पौधे यहां रोपे। बांज एक पत्तीदार पौधा होता है। इस साल चंदन ने अपने गांव के पास के जंगलों में वर्षा जल को रोकने के लिए छोटे-छोटे पोखर बनाए हैं। इसके दो लाभ हैं-एक, जंगली जानवरों को पीने के लिए पानी मिल जाता है और दूसरा, जमीन में नमी रहती है। इससे पेड़ हरे-भरे रहते हैं। चंदन नयाल जब 12वीं में पढ़ते थे तभी उनकी मां का असमय देहांत हो गया था।

इस घटना ने चंदन को अंदर ही अंदर तोड़कर रख दिया था। कुछ महीनों तक उन्हें समझ में नहीं आया कि क्या करना है। लेकिन मां की प्रेरणा से चंदन ने अपनी माटी की सेवा करने की ठानी। वे बताते हैं कि उनकी मां बचपन से ही उनकी प्रेरणा रहीं। जब भी मैं एक नया पौधा लगाता हूं तो पहले अपनी मां का स्मरण करता हूं। गांव की महिलाओं को अपने मवेशियों के चारे और घास के लिए दूर न जाना पड़े इसलिए चंदन गांव के निकट बांज का जंगल तैयार करने में जुटे हुए हैं। वे कहते हैं, बांज हमारे लिए हरा सोना है। इससे न केवल चारा मिलेगा, अपितु ये भूस्खलन को रोकने में भी मददगार साबित होगा और जल संरक्षण में भी बांज की भूमिका होती है। प्रकृति से संग कार्य करना है तो हर रोज समस्याओं से आमना-सामना होता है, लेकिन सतत प्रयास जरूरी है।

प्रधानमंत्री ने की प्रशंसा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘मन की बात’ कार्यक्रम के माध्यम से पर्यावरण के लिए किए गए चंदन के प्रयासों की सराहना कर चुके हैं। चंदन नयाल को जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से 23 जुलाई, 2021 को ‘वाटर हीरो अवार्ड’ से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा चंदन को ‘उत्तराखंड रत्न’, ‘सुंदरलाल बहुगुणा स्मृति वृक्ष मित्र’ जैसे अनेक सम्मान मिल चुके हैं।

चंदन की पौधशाला, जहां हर वर्ष 6,000 पौधे वितरित किए जाते हैं

पौधों का वितरण

चंदन नयाल हर साल हजारों फलदार और बांज के पौधों का वितरण और पौधारोपण करते हैं। इसके साथ ही वे नैनीताल जनपद के विभिन्न खंडों में लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक कर रहे हैं। अब इनके पास हर खंड में युवाओं की टोली है। चंदन अब तक लगभग 200 विद्यालयों में हजारों छात्र-छात्राओं को पर्यावरण का पाठ पढ़ाकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे चुके हैं। उनका मुख्य उद्देश्य बांज के जंगलों को तैयार करना, उन्हें बचाना और जलस्रोतों को पुनर्जीवित करना है। वे हर साल बांज, आडू, पोलम, सेब, अखरोट, आंवला, माल्टा, नींबू की पौध वितरित करते हैं। बकौल चंदन, ‘‘पौधारोपण के लिए वन विभाग का सदैव सहयोग मिलता है, लेकिन पौधे कम पड़ जाते थे। इसलिए मैंने खुद की नर्सरी तैयार की है और उसके माध्यम से हर साल 6,000 से अधिक पौधे वितरित किए जाते हैं।’’

चंदन यह भी कहते हैं कि हमें पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक और जमीनी प्रयास करने होंगे। जंगल है, तो जीवन है। जंगल ही नहीं रहेंगे तो सबका जीवन खतरे में होगा। मेरा बचपन से ही सपना था कि कुछ अलग से कार्य करूं। मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे उत्तराखंड के समस्त पर्यावरणविदों का सान्निध्य प्राप्त हुआ है। उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा है। छोटी-छोटी कोशिशें करके शुरुआत की है, अभी लंबा सफर तय करना है। आज मुझे यह देखकर खुशी होती है कि पहाड़ में बसे मेरे छोटे से गांव को मेरी वजह से पूरे देश में नई पहचान मिली है। इसमें दो मत नहीं है कि आज चंदन की ‘सुगंध’ दूर-दूर तक फैल रही है। इससे लोगों को पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा मिल रही है।

Topics: पौधों का वितरणप्रधानमंत्री ने की प्रशंसामां से मिली प्रेरणाenvironmental watchdogप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीinspiration from Sachidanand Bhartiमन की बातdistribution of saplingsपर्यावरण संरक्षणPrime Minister's praiseinspiration from motherEnvironment Protectionfragrance of 'Chandan'पर्यावरण प्रहरीपौधों का वितरण और पौधारोपणसचिदानंद भारती से प्रेरणा
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