उत्तराखंड : पहाड़ का 'बेशकीमती चंदन', प्रकृति संरक्षण के लिए देह दान, 30 साल के युवा ने 10 साल में लगाए 60 हजार पेड़
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उत्तराखंड : पहाड़ का ‘बेशकीमती चंदन’, प्रकृति संरक्षण के लिए देह दान, 30 साल के युवा ने 10 साल में लगाए 60 हजार पेड़

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'मन की बात' कार्यक्रम के माध्यम से पर्यावरण के लिए चंदन द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना कर चुके हैं।

by दिनेश मानसेरा
Jul 13, 2023, 09:55 pm IST
in भारत, उत्तराखंड
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नैनीताल : उत्तराखंड का 30 साल का युवा चंदन नयाल, बिना किसी हो-हल्ला, शोर-शराबे, चमक-धमक, दिखावे से इतर चुपचाप प्रकृति को अपने हाथों से संवार रहा है। इस युवा नें 10 साल में 60 हजार पेड़ लगाएं हैं और 6 हजार से अधिक चाल खाल तैयार करके वर्षा का जल संग्रहण करके पेड़ और जंगलों को नवजीवन दिया है। चंदन नें पेड़ों के लिए अपना शरीर भी दान करके एक मिशाल पेश की है।

पेड़ों के लिए जीवन समर्पित, लगा डाले 60 हजार पेड़
उत्तराखंड के नैनीताल जनपद के ओखलकांडा ब्लॉक के ग्राम नाई के तोक चामा निवासी चंदन सिंह नयाल अभी महज 30 साल के हैं। इंजीनियरिंग का डिप्लोमा प्राप्त करने के बाद इंजीनियरिंग में कैरियर बनाने की जगह चंदन नयाल नें पर्यावरण संरक्षण का बीड़ा उठाया है। वे विगत 10 सालों में 60 हजार से अधिक पेड़ अभी तक लगा चुके हैं। चंदन युवा और महिला सहायता समूहों की मदद से अपने गांव में चार हेक्टेयर भूमि में मिश्रित वन विकसित कर रहे हैं। अभी यहां लगे पौधे छह से सात फुट लंबे हो चुके हैं। पौधारोपण के लिए वह हर साल अपनी नर्सरी में लगभग 40 हजार पौधे तैयार कर रहे हैं। यहां से उन्होंने अब तक लोगों को 70 हजार पौधे वितरित किए हैं।

उत्तराखंड के पर्यावरण प्रहरी सचिदानंद भारती से प्रेरणा लेने वाले चंदन ने नैनीताल जिले की शिवालिक पहाड़ियों को हरा भरा करने का संकल्प लिया है।

प्रकृति संरक्षण के लिए देह दान !
चंदन नयाल अपनी मां के निधन के बाद से ही प्रकृति को ही अपनी मां और ईश्वर मानते हैं। उन्होंने पेड़ों के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है और अपना शरीर भी हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया है। शरीर दान करने के पीछे का उद्देश्य है कि इस दुनिया से जाने के बाद उनके खातिर एक छोटा सा पेड़ भी न कटे।

नाम के अनुरूप काम, 6 हजार चाल खाल तैयार करके सूख चुके जलस्रोतों को दिया नवजीवन
चंदन की लकड़ी का विशेष महत्व है। इसकी खुशबू से पूरा वातावरण महक उठता है। चंदन के पेड़ में साल में दो बार नई कोपलें, फल और फूल आते हैं। बरसात के पहले और बरसात के बाद चंदन के पेड़ फलों और फूलों से लदकर पूरे वन को एक नई आभा से युक्त कर देते हैं। ठीक इसी तरह पहाड़ का युवा चंदन नयाल भी विगत 10 सालों से बड़ी शिद्दत से प्रकृति को संवारने में जुटा हुआ है। चंदन के भगीरथ प्रयासों से ही सूख चुके जलस्रोत पुनर्जीवित हो चुके हैं। चौमास में पानी देने वाले नौले धारों में अब बारह मास पानी हैं। चंदन ने विगत 10 सालों में 6 हजार से अधिक चाल खाल तैयार करके वर्षा के जल संग्रहण से सूखे जलस्रोत, पेड़ और जंगलों को नवजीवन दिया है।

मां से मिली प्रेरणा, बांज बचाओ- बांज लगाओ का दिया नारा…!
चंदन नयाल का जीवन बेहद संघर्षमय रहा ओखलकांडा से अपने चाचा के साथ पढ़ाई के लिए रामनगर छोई आए। फिर लोहाघाट से इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। तत्पश्चात रुद्रपुर में कुछ समय बतौर शिक्षक अध्यापन का कार्य भी किया। इस दौरान उन्होंने लोगों को पेड़ों और जंगल के प्रति जागरूक भी किया। उन्होंने छात्र छात्राओं और अन्य लोगों के सहयोग से विभिन्न अवसरों पर पौधारोपण भी किया।

चंदन का मन कभी भी शहर में नहीं रमा। उन्हें बस अपने पहाड़ और वहां के जंगलों में मौजूद पेड़ों से लगाव था। चंदन के गांव के पास चीड़ और बुरांस का जंगल था जिनमें अक्सर आग लगा करती थी। एक बार इन जंगल में इतनी भयंकर आग लगी की बुरांस का पूरा जंगल तबाह हो गया। अपने आंखों के सामने जंगल को आग की भेंट चढ़ते देख चंदन नयाल को बेहद पीड़ा हुई। उन्होंने मन ही मन दृढ निश्चय किया की वो जरूर एक दिन इस जंगल को पुनर्जीवित करेंगे।

उन्होंने चीड़ की जगह बांज बचाओ- बांज लगाओ का दिया नारा और हजारों बांज के पौधे यहां रोपे। इस साल चंदन ने अपने गांव के पास के जंगलों में चाल खाल बनाएं हैं ताकि जंगल में पानी का संग्रहण हो जंगली जानवरों को पीने के लिए पानी मिले और जंगल के पेड़ों को नमी।

चंदन नयाल जब 12वी में थे तो उनकी मां का असमय देहांत हो गया था। इस हृदयविदारक घटना नें चंदन को अंदर ही अंदर से तोड़कर रख दिया था। कुछ महीनों तक उन्हें कुछ समझ में नहीं आया की क्या करना है। लेकिन मां की प्रेरणा से चंदन ने अपनी माटी थाती की सेवा करने की ठानी।

चंदन बताते हैं कि उनकी मां बचपन से ही उनकी प्रेरणा रही हैं। उन्होंने कहा कि जब भी मैं एक नया पौधा लगाता हूं तो जरूर पहले अपनी मां का स्मरण करता हूं। आज जो भी हूं अपनी मां की प्रेरणा और आशीर्वाद से हूं। गांव की महिलाओं को अपने मवेशियों के चारे और घास के लिए दूर न जाना पड़े इसलिए चंदन गांव के निकट बांज का जंगल तैयार करने में जुटे हुए हैं जिसके लिए बांज के पौधे रोपे गएं हैं और चाल खाल बनाकर पानी का संग्रहण किया गया ताकि पेड़ों के लिए नमी बनी रही। निकट भविष्य में जब ये जंगल तैयार होगा तो महिलाओं को चारे के लिए दूर नहीं जाना पड़ेगा।

कार्य को मिल चुके हैं सम्मान, पीएम मोदी भी ‘मन की बात’ में कर चुके हैं प्रशंसा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘मन की बात’ कार्यक्रम के माध्यम से पर्यावरण के लिए किए गए चंदन के प्रयासों की सराहना कर चुके हैं। चंदन नयाल को जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार की ओर से 23 जुलाई 2021 में ‘वाटर हीरो के अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा चंदन नयाल को उत्तराखंड रत्न, सुंदर लाल बहुगुणा स्मृति वृक्ष मित्र सहित ढेरों सम्मान मिल चुके हैं।

पौधारोपण के जरिए हर साल लगाते हैं हजारों फलदार और बांज, पर्यावरण संरक्षण का छात्रों और लोगों को दे रहें हैं संदेश !
चंदन नयाल हर साल हजारों फलदार और बांज के पौधों का वितरण और पौधारोपण करते हैं। चंदन विगत 10 सालों में नैनीताल जनपद के विभिन्न ब्लॉकों में लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक कर चुके हैं। अब इनके पास हर ब्लॉक में युवाओं की एक-एक टीमें हैं। चंदन अब तक लगभग 200 विद्यालयों में हजारों छात्र-छात्राओं को पर्यावरण का पाठ पढ़ा चुके हैं और पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दे चुके हैं। चंदन का मुख्य उद्देश्य बांज के जंगलों को तैयार करना और चाल खाल, खंतिया बनाकर जलस्रोतों को रीचार्ज करना व जंल संग्रहण कर जंगल को बचाना है। वे हर साल बांज, आडू, पोलम, सेब, अखरोट, आंवला, माल्टे, नींबू की पौध वितरित करते हैं। बकौल चंदन पौधारोपण के लिए वन विभाग का सदैव सहयोग मिलता है लेकिन पौध कम पड़ जाते थे इसलिए मैंने खुद की नर्सरी भी तैयार की है और हर साल 6 हजार से अधिक पौध लोगों को वितरित करता हूं।

‘प्रकृति की गोद में मुझे मां के आंचल की छांव मिली तो अपना जीवन समर्पित कर दिया’
युवा चंदन नयाल कहते हैं कि हमें पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक और धरातलीय प्रयास करने होंगे। खासतौर पर बांज के जंगलों को बढ़ावा देना होगा। बांज हमारे लिए हरा सोना है। इससे न केवल चारा मिलेगा अपितु भूस्खलन को रोकने में भी मददगार साबित होगा और जल संरक्षण में भी बांज की भूमिका होती है। प्रकृति के संग कार्य करना है तो हर रोज समस्याओं से आमना सामना होता है लेकिन सतत प्रयास जरूरी है। जब जंगल है तो तभी जीवन भी। जंगल ही नहीं रहेंगे तो सबका जीवन खतरे में होगा। मेरा बचपन से ही सपना था कुछ अलग से कार्य करूं। मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे उत्तराखंड के समस्त पर्यावरणविद्धों का सानिध्य प्राप्त हुआ है। उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा है। छोटी-छोटी कोशिशें करके अभी तो शुरुआत भर की है, अभी लंबा सफर तय करना बाकी है। मेरी मां, मेरे परिवार और मेरे चाचा जी मोहन सिंह नयाल जी के मार्गदर्शन की वजह से आज यहां तक पहुंच पाया हूं। आज मुझे खुशी होती है कि पहाड़ में बसे मेरे छोटे से गांव को मेरी वजह से आज पूरे देश में नई पहचान मिली है।

रिपोर्ट- संजय चौहान

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