यूसीसी : धार्मिक चश्मे के बजाय संवैधानिक दस्तावेज के आधार पर देखे जाने की जरूरत
July 16, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

यूसीसी : धार्मिक चश्मे के बजाय संवैधानिक दस्तावेज के आधार पर देखे जाने की जरूरत

अवसरवादी राजनीति में महिलाओं को नजरअंदाज न करें राजनीतिक दल

by संगीता केशरी
Jul 11, 2023, 10:59 pm IST
in भारत, मत अभिमत
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

हाल के दिनों में यूनिफॉर्म सिविल कोड मुख्यधारा में चर्चा का विषय बना हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी एक भाषण में यूसीसी के संदर्भ में चिंता व्यक्त की कि ‘एक देश में अलग-अलग कानून कैसे हो सकता है।’ निश्चय ही तत्कालीन सरकार इस पर तत्परता दिखाते हुए जल्द से जल्द लागू किए जाने के पक्ष में है। ऐसे में इसे लेकर कानून विशेषज्ञों के साथ-साथ आम जनमानस में भी बहस तेज हो गई है। समाज का प्रत्येक वर्ग चाहे वह किसी भी जाति, समुदाय, लिंग से हो इससे जुड़ा प्रावधान उसे निश्चित रूप से प्रभावित करेगा। एक महिला होने के नाते मेरी उत्सुकता इस प्रावधान के जरिए महिला जीवन में लाए जाने वाले सुधार के प्रति विशेष संवेदना रखती है।

यूसीसी 1930 के दशक से ही अलग-अलग धार्मिक और व्यक्तिगत कानूनों की प्रचलित न्यायिक व्यवस्था के विरुद्ध “राष्ट्रीय अखंडता” के विचार का आह्वान करता रहा है। संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक सामान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रावधान हैं किन्तु राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत में शामिल होने के कारण इसे पूरे भारत में लागू नहीं किया जा सका है। इसे लागू न किए जाने के लिए अनुच्छेद 25 के तहत प्राप्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार कानून का हवाला दिया जाता रहा है। आज इसी आधार पर दिए गए पर्सनल कानूनों के हवाले से पुरुषवादी मानसिकता का तथाकथित प्रबुद्ध समाज महिलाओं के संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों को नजरअंदाज करने के लिए भी तैयार है। किंतु हमें यूसीसी पर बहस करने से पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए टिप्पणी और सुझावों के साथ-साथ समाज में महिलाओं के नागरिक संहिता से संबंधित समस्याओं को समझ लेना चाहिए।

इसके ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर ध्यान दें तो 1947 में भी महिलाओं, विशेषकर हिंदू विधवाओं की स्थिति में सुधार के लिए कई सुधार कानून पारित किए गए। 1956 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की विशेष पहल से, भारतीय संसद द्वारा भारी विरोध के बावजूद हिंदू कोड बिल पारित किया गया। इसकी एक जोरदार मांग पुनः 1985 में शाहबानो केस के दौरान न्यायिक टिप्पणी पर हुई। तब वैवाहिक, तलाक, उत्तराधिकार और संरक्षण से संबंधित कानूनों में एकरूपता की बात कर सुधार किए जाने की मांग उठी थी। तत्कालीन भारत के मुख्य न्यायाधीश वाई.वी. चंद्रचूड़ की अगुआई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने फैसले में कहा था, ‘यह अफसोस की बात है कि हमारे संविधान का अनुच्छेद 44 ‘डेड लेटर’ (अप्रचलित कानून) बना हुआ है। देश के लिए समान नागरिक संहिता बनाने की दिशा में सरकार की तरफ से किसी भी गतिविधि के कोई सबूत नहीं हैं। एक ऐसी धारणा मजबूत होती जा रही है कि मुस्लिम समुदाय अपने पर्सनल लॉ में सुधार के लिए खुद ही पहल करें। समान नागरिक संहिता विरोधाभासी विचारधारा वाले कानूनों (पर्सनल लॉ) की प्रति निष्ठा को खत्म करके राष्ट्रीय एकता में मदद करेगी।’

किंतु तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने इस पर कोई वैधानिक कार्य न करते हुए उच्चतम न्यायालय के फैसले को धार्मिक रुढ़िवादियों के दबाव में एक बिल के माध्यम से पलट कर रख दिया। समान नागरिक संहिता की आवश्यकता कई दशकों से सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ भारत के विभिन्न हाई कोर्ट के फैसलों में निर्देशित किया गया। 1995 में सरला मुद्गल बनाम भारत संघ केस, मैरी रॉय बनाम केरल राज्य, 2003 के जॉन वल्लामट्टोम केस, 2014 के शायरा बानो बनाम भारत संघ केस इत्यादि को यूसीसी के संदर्भ में देखा जा सकता है।

आज भी देश के विभिन्न हिस्सों में बहुविवाह, बालविवाह, अनैतिक ढंग से तलाक जैसे ट्रिपल तलाक, हलाला, महिला का पिता की संपत्ति में अधिकार न होना जैसे कई महिला विरोधी रूढ़िवादी परंपराओं को 21वीं सदी का भारत धर्मांधता के नाम पर झेल रहा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-20) से पता चला कि बहुविवाह का प्रचलन ईसाइयों में 2.1%, मुसलमानों में 1.9%, हिंदुओं में 1.3% और अन्य धार्मिक लोगों में 1.6% है। प्रतिशत के अनुसार भले किसी धर्म में दूसरे की तुलना में यह कम लगे लेकिन भारत की जनसंख्या के अनुपात में देखे तो निश्चित ही यह चिंता का विषय है। इसे मुस्लिम कानून के द्वारा धार्मिक प्रथा के रूप में मान्यता प्राप्त है। ऐसे भी कई उदाहरण देखने को मिले हैं जहां अन्य धर्म के पुरुष इस्लाम को स्वीकार कर बहुविवाह का निर्वाह कर रहे है। जिसे 1995 में सरला मुद्गल बनाम भारत संघ केस के फैसले के बाद न्यायिक निगरानी में लाया जा सका। आज भी भारत में कुछ अपवाद के अतिरिक्त यह प्रथा पूर्णत: पुरुषों द्वारा पोषित हो रही है।

छोटी उम्र में विवाह किसी भी प्रगतिशील समाज में अभिशाप है। किन्तु 2020 तक संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष के आंकड़ों के अनुसार, भारत में आज भी अनुमानित तौर पर हर साल 15 लाख लड़कियों की शादी तय उम्र से पहले कर दी जाती है जो पूरे विश्व में सबसे ज्यादा है। जहाँ आज भी 15 से 19 वर्ष के बीच की लगभग 16 प्रतिशत लड़किया शादीशुदा हैं। वही दूसरी ओर मुस्लिम कानून के तहत बालविवाह पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इसे पॉक्सो एक्ट के उल्लंघन के रूप में भी देखा जाना चाहिए। जिस उम्र में शिक्षा और कौशल की अनिवार्यता होनी चाहिए उस उम्र में विवाह न सिर्फ लैंगिक असमानता को बढ़ावा दे रहा है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।

भारत में तलाक एक आयातित विषय है जिसका प्रचलन किसी भी दम्पत्ति के अलगाव को आसान बनाने के लिए स्वीकार्य है। लेकिन धार्मिक आधार पर इसमें दी गई छूट और असमानताएं वास्तविक रूप में महिलाओं के लिए बद्तर स्थिति उत्पन्न कर रही हैं। व्यावहारिक रूप में इसकी सारी शक्तियां पुरुषों के हाथ में होने से ट्रिपल तलाक, हलाला जैसे कई उदाहरण आज भी समाज में अपनी जगह बनाए हुए हैं जो पहले ही संवैधानिक प्रक्रिया के दायरे में लाया जा चुका है। वही तलाक लेने की अनुमति, परित्याग की अवधि, एवं भरण पोषण के लिए गुजारा भत्ता के प्रावधान धार्मिक आधारों पर बेहद अलग हैं जो महिलाओं की समानता और सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है। जैसे ईसाई कानून के तहत महिलायें सिर्फ व्यभिचार के आधार पर ही तलाक ले सकती हैं। ऐसे ही कई समस्याओं को समय-समय भारत की अदालतों में लाया गया और पारसी, ईसाई, मुस्लिम कानूनों में सुधार एवं समानता की मांग की गई।

यूसीसी की बहस में सबसे कम चर्चित लेकिन महत्वपूर्ण विषय उत्तराधिकार और विरासत का है। इसमें एक बड़े स्तर पर लैंगिक असामनता देखी जा सकती है। 2005 में भले ही हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम पारित किया गया किंतु इसमें भी पैतृक और अर्जित संपत्ति के अलावा महिला के वैवाहिक स्थिति के आधार पर कई असमानता देखी जा सकती है। महिला के अर्जित संपत्ति के उत्तराधिकार  को लेकर भी कई खामियां हैं। जबकि भारत के कई राज्यों में महिला उत्तराधिकार का प्रावधान है। वसीयत से संबंधित कानूनी प्रावधान वैध पंजीकरण और निष्पादन की प्रक्रिया जोर देने वाले, समानता के सिद्धांतों के अनुरूप होनी चाहिए।

भारत में विविध धर्म और संस्कृति के कारण धार्मिक अनुष्ठानों में अनेक प्रकार के नियम हैं किन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत एक पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है जिसके मूल में नागरिक की भौतिक स्वतंत्रता उतनी ही महत्व रखती है जितनी धार्मिक स्वतंत्रता। जब परंपराएं समाज के एक बड़े वर्ग को मुख्यधारा से पीछे ले जाने, कुछ वर्चस्व वादियों के लिए हथियार का कार्य करें तो निश्चित रूप से इनका दमन करना आवश्यक है। धार्मिक हठधर्मिता के कारण महिलाओं के मौलिक अधिकारों की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती। ऐसे में पूर्वाग्रह से मुक्त होकर वर्तमान की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर यूसीसी को संविधान अनुरूप लागू किए जाने की आवश्यकता है।

यूसीसी लैंगिक पक्षपात और धार्मिक सहूलियत को नजरअंदाज करके समानता और समान न्याय के संवैधानिक ढांचे पर आधारित है। यह सतत विकास लक्ष्य के विविध आयाम में से भी एक है जिसके अंतर्गत महिलाओं की सुरक्षा, हिंसा पर रोक, समान अधिकार, समान अवसर, लैंगिक समानता जैसे विषयों का समावेशन है।

किंतु पूर्ववर्ती सरकारों ने इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। 2014 में भाजपा ने इसे अपने चुनावी मुद्दों में शामिल किया और 2019 में ट्रिपल तलाक, आर्टिकल 370 और राम मंदिर के साथ यूसीसी भाजपा के संकल्प पत्र का मुख्य हिस्सा रहा।

निश्चित रूप से इसे प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 2022 में लाल किले के प्राचीर से ‘लैंगिक समानता’ एवं ‘नारी सम्मान’ के संदर्भ में लिए गए संकल्प से जोड़ कर देखा जाना चाहिए जिसे पूरा करने के लिए वर्तमान सरकार पूरे जोश में दिख रही है।

लेकिन आज दशकों से सेकुलरिज्म और धर्मनिरपेक्ष राजनीति की वकालत करने वाली विपक्षी पार्टियां मुस्लिम वोट बैंक के लिए अवसरवादी राजनीति का सहारा ले रही हैं। और यूसीसी समर्थन के बजाय नकारात्मक संदेश प्रचारित करने में लगी हुई हैं। लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि प्रगतिशील मुसलमानों की तुलना में आज भले ही उन्हें परंपरावादी मुसलमानों से कुछ ज्यादा वोट मिल जाए किन्तु उनका यह अवसरवादी निर्णय मुस्लिम पर्सनल लॉ के संदर्भ में एकतरफा और भारत की महिलाओं के लिए अहितकारी होगा। इस कानून के संदर्भ में अभिजात्य नारीवादी एक्टिविस्ट की बौद्धिक अनुपस्थिति भी देखा जाना पीड़ादायक है। यह सामुदायिक पितृसत्ता को बल देने जैसा है। ऐसे में आवश्यकता है कि इन समूहों और राजनीतिक दलों को राष्ट्रहित में विभिन्न धर्मों के बीच सर्वसम्मति बनाए जाने पर जोर देना चाहिए न कि धार्मिक रंग के चश्मे में महिलाओं के लिए सामाजिक विसंगति की खाई खोदनी चाहिए।

हाल ही में उत्तराखंड सरकार ने जब राज्य के लिए यूसीसी के प्रस्ताव को जनमानस पटल पर सुझाव के लिए रखा और राजनीतिक दलों से राय मांगी, तो 2.5 लाख लोगों के सुझावों के बीच कई विपक्षी दलों ने कोई जवाब न देकर अनुपस्थिति दर्ज की। राष्ट्रीय दलों द्वारा ऐसी प्रतिक्रिया महिला विरोधी होने के साथ-साथ राजनीतिक निरंकुशता को बढ़ावा देती है जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक स्थिति है।

अमेरिका में सेकुलरिज्म के नाम प्रपंच करने वाली कांग्रेस पार्टी को यह समझना चाहिए कि अमेरिका, यूके, कनाडा और दूसरे पश्चिमी देशों ने लाखों मुस्लिमों के होने के बावजूद बहुत पहले ही इन कानूनों को स्वीकार कर सफलतापूर्वक अपने देशों में लागू किया है। यहां तक कि मुस्लिम बहुल पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया जैसे देशों में भी यह कानून लागू है।

यूसीसी 21वीं सदी के भारत की 5 ट्रिलियन इकोनामी की परिकल्पना में महिलाओं के सामान भागीदारी एवं महिला सशक्तिकरण के लिए भी अतिआवश्यक है। ये कानून विवाह, तलाक, विरासत में महिलाओं के लिए संपत्ति, उत्तराधिकार और बच्चों की अभिरक्षा के संबंध में भेदभाव को समाप्त करता है। इसके साथ ही कई आधुनिक मांग जैसे, विवाह की वैधानिक आयु, अंतर-धार्मिक विवाह, ‘लिव-इन-रिलेशनशिप’ के अस्थायी रिश्तों से पैदा हुए बच्चों के वैध माने जाने, नाबालिग गर्भपात, बच्चा गोद लेने एवं जनसंख्या नियंत्रण संबंधी विषयों को महिला हेतु सुगम एवं सुरक्षित बनाए जाने पर जोर देता है। इसका प्रभाव आयकर कानून, बाल संरक्षण और एलजीबीटी के अधिकारों पर भी देखे जाने की संभावना है।

2019 में ट्रिपल तलाक को गैरकानूनी घोषित करने के बाद यह प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार का महिला सुधारों में एक बहुत बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन है। यह भी उम्मीद लगाई जा सकती है कि बढ़ती जनसंख्या के बीच यह कदम जनसंख्या नियंत्रण के लिए भी भविष्योन्मुखी होगा। निश्चित रूप से यह कानून प्रधानमंत्री मोदी के संकल्प ( “नारी का गौरव राष्ट्र के सपने पूरे करने में बहुत बड़ी पूंजी बनने वाला है।…” 15 अगस्त 2022 को लाल किले पर दिए गए भाषण का अंश।) का संवैधानिक स्वरूप है जो आधी आबादी को आजादी से रहने और स्वतंत्र हो के स्वयं के लिए निर्णय लेने के लिए कानूनी संरक्षण प्रदान करेगा। आजादी के 75 साल में हम महिला की आजादी, अधिकार और उत्थान से संबंधित कोई बड़ी प्रगतिशील बहस समाज में स्थापित नहीं कर पाए हैं। उम्मीद है कि यूसीसी इन बहसों को आमंत्रित करेगा और एक सकारात्मक निष्कर्ष की ओर समाज को लेकर जाएगा। तभी एक सशक्त, संगठित एवं समग्र राष्ट्र का स्वप्न साकार हो सकेगा।

(लेखिका  दिल्ली विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं)

Topics: Prime Minister Narendra ModiUCClawकानूनयूसीसीप्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीयूनिफॉर्म सिविल कोडUniform Civil Codeभारत
Share7TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

पाक-चीन की खैर नहीं…भारत ने बनाई एडवांस्ड मिसाइल; ब्रह्मोस से 3 गुना ज्यादा शक्तिशाली

लालमोनिरहाट में बनी पाषाण कलाकृति को पहले कपड़े से ढका गया था, फिर स्थानीय प्रशासन के निर्देश पर मजदूर लगाकर ध्वस्त करा दिया गया

बांग्लादेश में मुक्ति संग्राम स्मारक तोड़कर ‘छात्र आंदोलन’ को ‘अमर’ बनाने में जुटी अंतरिम सरकार

Currution free Uttrakhand

मुख्यमंत्री धामी ने देहरादून में ‘भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड’ अभियान को दी मजबूती, दिलाई शपथ

Terrorism

नेपाल के रास्ते भारत में दहशत की साजिश, लश्कर-ए-तैयबा का प्लान बेनकाब

न्यूयार्क के मेयर पद के इस्लामवादी उम्मीदवार जोहरान ममदानी

मजहबी ममदानी

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में नहीं गए

BRICS से गायब शी जिनपिंग, बीजिंग में राष्ट्रपति Xi Jinping के उत्तराधिकारी की खोज तेज, अटकलों का बाजार गर्म

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Pahalgam terror attack

Pahalgam Terror Attack: चश्मदीद ने बताया, 26 निर्दोष लोगों की हत्या के बाद जश्न मना रहे थे आतंकी

प्रतीकात्मक तस्वीर

ओडिशा: छात्रा ने यौन उत्पीड़न से तंग आकर लगाई आग, इलाज के दौरान हुई मौत, HoD पर लगाए संगीन आरोप

PM Kisan Yojana

PM Kisan Yojana: 20वीं किस्त की तैयारी पूरी, जानें किस दिन आएगा पैसा

सत्यजीत रे का पैतृक आवास ध्वस्त कर रहा बांग्लादेश। भारत से जुड़ी हर पहचान मिटाना चाहता है।

सत्यजीत रे का पैतृक घर ध्वस्त कर रहा बांग्लादेश, भारत ने म्यूजियम बनाने की दी सलाह

नेपाल का सुप्रीम कोर्ट

नेपाल: विवाहित बेटी को भी पैतृक संपत्ति में बराबर का अधिकार, सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, जानिये कब से होगा लागू

जमीयत उलेमा ए हिंद, उदयपुर फाइल्स, दर्जी कन्हैयालाल, अरशद मदनी, रियाज अत्तारी, गौस मोहम्मद

फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ को न्यायालय के साथ ही धमकी और तोड़फोड़ के जरिए जा रहा है रोका

ए जयशंकर, भारत के विदेश मंत्री

पाकिस्तान ने भारत के 3 राफेल विमान मार गिराए, जानें क्या है एस जयशंकर के वायरल वीडियो की सच्चाई

Uttarakhand court sentenced 20 years of imprisonment to Love jihad criminal

जालंधर : मिशनरी स्कूल में बच्ची का यौन शोषण, तोबियस मसीह को 20 साल की कैद

पिथौरागढ़ में सड़क हादसा : 8 की मौत 5 घायल, सीएम धामी ने जताया दुःख

अमृतसर : स्वर्ण मंदिर को लगातार दूसरे दिन RDX से उड़ाने की धमकी, SGPC ने की कार्रवाई मांगी

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies