कश्मीर घाटी में लगभग 45 दिन तक आवाम में आक्रोश और अशांति का वातावरण बना रहा था। अलगाववादी ताकतों ने इस मामले को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया था और घाटी के लोगों का कंधा इस्तेमाल कर पाकिस्तानी साजिश को अमलीजामा पहनाया।
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने हाल ही में दो डॉक्टरों, डॉ. बिलाल अहमद दलाल और डॉ. निगहत शाहीन चिलू को फर्जी साक्ष्य गढ़ने की पाकिस्तानी साजिश में शामिल होने के आरोप में बर्खास्त कर दिया है। इन दोनों जिहादियों ने वर्ष 2009 में सेना को बदनाम करने की साजिश रचते हुए शोपियां में नाले में दुर्घटनावश डूब गईं दो महिलाओं की गलत पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार कर ‘दुष्कर्म’ के आरोपों को सही ठहराने का षड्यंत्र रचा था।
इस घटना को लेकर घाटी लगभग सात महीने तक सुलगती रही थी और लगभग छह हजार करोड़ रु. का नुकसान हुआ था। बाद में सीबीआई जांच से पर्दा हटा और सच बाहर आया। अब प्रशासन की इस कार्रवाई से साजिश रचने वालों के चेहरे उजागर हो गए हैं। इस कार्रवाई ने न केवल इन दोनों के गंभीर कदाचार को उजागर किया है, बल्कि कड़ा संदेश दिया है कि ऐसी अराजकता बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
2009 के कुख्यात ‘शोपियां बलात्कार’ मामले में एक जलधारा में आसिया जान और नीलोफर मृत पाई गई थीं। घटना में आरोप लगाए गए थे कि सुरक्षाकर्मियों ने उनके साथ बलात्कार किया, फिर हत्या कर दी। बाद में सीबीआई जांच हुई तो पता चला कि आसिया और नीलोफर की गलत पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनाई गई थी। इन महिलाओं की बलात्कार के बाद हत्या नहीं की गई थी, बल्कि उनकी मृत्यु नाले में डूबने से हुई थी।
गौरतलब है कि 29 मई, 2009 के शोपियां बलात्कार मामले ने न केवल देश को झकझोर दिया था, बल्कि कश्मीर घाटी में लगभग 45 दिन तक स्थानीय आवाम में आक्रोश और अशांति का वातावरण बना रहा था। अलगाववादी ताकतों ने इस मामले को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया था और घाटी के लोगों का कंधा इस्तेमाल कर पाकिस्तानी साजिश को अमलीजामा पहनाया। इस दौरान आसिया जान और नीलोफर के झूठे बलात्कार और हत्या के आरोपों के चलते इलाके में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए और कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ाई गईं। हुर्रियत ने 42 बार बंद का ऐलान किया। हिंसा की 600 घटनाएं हुईं।
घाटी के विभिन्न पुलिस स्टेशनों पर पथराव, आगजनी और मारपीट की 251 प्राथमिकी दर्ज की गई। पुलिस के 29 और अर्धसैनिक बल के छह जवान हिंसा में घायल हुए। वहीं सात नागरिकों को भी जान गंवानी पड़ी, 107 घायल हुए। इस मामले में सुरक्षा बलों पर झूठा आरोप लगाने के इरादे से डॉक्टरों ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हेरफेर किया, जिसके चलते हालात और खराब हुए।
ऐसे में अब राज्य प्रशासन द्वारा सत्य को सामने लाते हुए इन दोनों डॉक्टरों को बर्खास्त कर दिया है। यह कार्रवाई न्याय और सत्य के सिद्धांतों की रक्षा के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है। राज्य प्रशासन ने स्पष्ट संकेत दिया है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है। निश्चित ही ऐसी कार्रवाइयां न्याय प्रणाली में विश्वास बहाल करने में महत्वपूर्ण कदम हैं।
यह था मामला
2009 के कुख्यात ‘शोपियां बलात्कार’ मामले में एक जलधारा में आसिया जान और नीलोफर मृत पाई गई थीं। घटना में आरोप लगाए गए थे कि सुरक्षाकर्मियों ने उनके साथ बलात्कार किया, फिर हत्या कर दी। बाद में सीबीआई जांच हुई तो पता चला कि आसिया और नीलोफर की गलत पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनाई गई थी। इन महिलाओं की बलात्कार के बाद हत्या नहीं की गई थी, बल्कि उनकी मृत्यु नाले में डूबने से हुई थी।
प्रस्तुति : साजिद यूसुफ शाह
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