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इतिहास : स्वाधीनता संग्राम के सेनापति

सुभाषचंद्र बोस को 4 जुलाई, 1943 को रासबिहारी बोस ने आजाद हिंद फौज का प्रधान सेनापति नियुक्त किया। नेताजी के नेतृत्व में स्वतंत्र भारत की पहली सरकार की घोषणा के साथ ही आजाद हिंद फौज ने ब्रिटिश सेना की नाक में दम कर दिया और भारत की स्वाधीनता के लिए आखिरी युद्ध लड़ा गया

by लक्ष्मीनारायण भाला ‘लक्खी दा’
Jul 4, 2023, 06:08 am IST
in भारत
सुभाष चंद्र बोस

सुभाष चंद्र बोस

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1942 के अगस्त मास की 1 तारीख से आंदोलन की घोषणा कर दी गई थी। इसे विफल करने की रणनीति अपनाते हुए अंग्रेज सरकार ने कांग्रेस में विद्यमान दोनों धाराओं के नेताओं को एक साथ गिरफ्तार कर लिया।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत का स्वाधीनता आंदोलन चरम पर था। भारत की स्वाधीनता एवं स्वतंत्रता आंदोलन की दो धाराएं थीं। एक धारा सत्याग्रह, असहयोग आदि के द्वारा अंग्रेजों का हृदय परिवर्तन कर पाएंगे, इस आशा से अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले आंदोलन के रूप में और दूसरी धारा शस्त्रों के द्वारा अंग्रेजों के मन में भय एवं असुरक्षा का भाव निर्माण कर भारत छोड़ने के लिए बाध्य कर पाएंगे, इस विश्वास के साथ हो रहे क्रांतिकारी आंदोलन के रूप में।

सुभाष चंद्र बोस

देश में ‘अहिंसा परमोधर्म:’ के साथ ही ‘धर्म हिंसा तथैव च’ को मानने वाली दोनों धाराएं समानांतर बह रही थीं। सन् 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन इन दोनों धाराओं का मध्य मार्ग था। दोनों धाराओं को मानने वाले इस आंदोलन के प्रति आशावान थे। 1942 के अगस्त मास की 1 तारीख से आंदोलन की घोषणा कर दी गई थी। इसे विफल करने की रणनीति अपनाते हुए अंग्रेज सरकार ने कांग्रेस में विद्यमान दोनों धाराओं के नेताओं को एक साथ गिरफ्तार कर लिया।

प्रचार-प्रसार से दूर रहकर काम करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों का भी आंदोलन में सक्रिय सहभाग था। विदर्भ में समानांतर सरकार बनाने से लेकर मुजफ्फरनगर रेलवे मार्ग पर धरना देने तक विभिन्न गतिविधियों में स्वयंसेवक सक्रिय थे। मेरठ में कई स्वयंसेवक पुलिस की गोली के शिकार बने थे। गिरफ्तारी से बचने के लिए कई स्थानों पर तत्कालीन कांग्रेसी नेताओं को सुरक्षा एवं आश्रय प्रदान करने में भी संघ के कुछ प्रमुख व्यक्तियों ने पहल की थी। ‘

42 की बिजली’ के नाम से मशहूर प्रसिद्ध आंदोलनकारी अरुणा आसफ अली ने उस समय की स्थिति के संदर्भ में स्पष्ट रूप से कहा था कि हम दिल्ली के संघचालक लाला हंसराज गुप्ता के घर भूमिगत थे। सभी प्रमुख नेता जेल में थे। लोगों को दिशा-निर्देश देने वाला कोई नहीं था। जिसके मन में जैसा आया, उसने वैसा आंदोलन किया। इसलिए यह कहना कि 1942 के आंदोलन के फलस्वरूप भारत आजाद हुआ, गलत होगा।’ वास्तव में यह आंदोलन परिणामकारी नहीं हो सका।

आजाद हिंद फौज की कमान

इसी संदर्भ में सशस्त्र आंदोलन में विश्वास रखने वाले स्वाधीनता संग्राम सेनानियों के एक समूह को ब्रिटिश सेना में कार्यरत एक भारतीय सेनाधिकारी मोहन सिंह ने ‘आजाद हिंद फौज’ के नाम से संगठित किया। इसके समर्थन में जापानी सेना ने भारतीय युद्धबंदियों को बंदी बनाये रखने या अंग्रेजों के हाथों सौंप देने के बजाय मोहन सिंह द्वारा गठित इस फौज में भेजना प्रारम्भ किया। सन् 1942 के अंत तक प्राय: 70 हजार सैनिकों वाली इस फौज को भारत से बाहर रखकर प्रशिक्षित किया जाने लगा।

भारतीय कांग्रेस द्वारा संकेत प्राप्त होने के पश्चात ब्रिटिश सत्ता से भारत को मुक्त कराने हेतु यह फौज सैनिक कार्रवाई करेगी, यह सोचा गया था। भारत छोड़ो आंदोलन की विफलता के कारण इस सोच को नयी ऊर्जा प्राप्त हो चुकी थी। 1 सितंबर, 1942 को आजाद हिंद फौज की पहली डिवीजन का गठन किया गया। भारत में क्रांतिकारी आंदोलन के पुरोधा कहलाने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस इस बीच कलकत्ता की नजरबंदी से भागकर भारत से बाहर जा चुके थे। वे रूस, जर्मनी होकर जापान पहुंचे। ब्रिटिश सत्ता से भारत को मुक्त कराने हेतु अन्य देशों से आवश्यक सहायता की व्यवस्था करते हुए जुलाई 1943 में वे सिंगापुर पहुंचे।

रासबिहारी बोस तथा अन्य भारतीय स्वाधीनता सेनानियों की मदद से नेता 943 को अस्थायी भारतीय सरकार का गठन किया। 11 देशों ने इसे मान्यता प्रदान की

वहां 4 जुलाई, 1943 को कैथे हाउस में रासबिहारी बोस ने मोहन सिंह की जगह सुभाषचंद्र बोस को आजाद हिंद फौज का प्रधान सेनापति नियुक्त किया। रासबिहारी बोस तथा अन्य भारतीय स्वाधीनता संग्रामियों की मदद से उन्होंने सिंगापुर में 21 अक्तूबर, 1943 को अस्थायी भारतीय सरकार का गठन किया। 11 देशों ने इसे मान्यता भी प्रदान कर दी तथा इस सरकार ने अपनी मुद्रा भी जारी कर दी। रंगून में इसका मुख्यालय बनाया गया। रानी झांसी रेजिमेंट के रूप में महिला सेना भी गठित की गई। सैनिकों को गहन प्रशिक्षण दिया जाने लगा। दिसम्बर 1943 में सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी से भारत की स्वाधीनता के लिए अंतिम युद्ध की तैयारी का संकेत देते हुए आशीर्वाद मांगा।

दिल्ली चलो

विश्व युद्ध के कारण इंग्लैंड को आर्थिक व सामरिक नुकसान से उबर पाना कठिन हो गया था। भारत छोड़कर जाना उनके लिए अनिवार्य था। इधर आजाद हिंद फौज की एक बटालियन ने जापानी फौज के सहयोग से अंडमान-निकोबार द्वीप पर आक्रमण किया। अंडमान को शहीद द्वीप और निकोबार को स्वराज द्वीप नाम देकर भारत की आंशिक स्वाधीनता की घोषणा कर दी गई। 4 फरवरी, 1944 को आजाद हिंद फौज ने अंग्रेज शासित भारत के कोहिमा आदि पूर्वोत्तर भारत के अंश को भी स्वाधीन घोषित कर दिया। अपने अभियान को आगे बढ़ाते हुए 21 मार्च, 1944 को ‘दिल्ली चलो’ के नारे के साथ आजाद हिंद फौज का भारत की मुख्य भूमि की ओर ब्रह्म देश की सीमा पर आगमन हुआ।

छह मास तक अपनी सेना को प्रशिक्षण देकर पारंगत करने के बाद ही नेताजी ने भारतवासियों का, विशेषकर अपने सैनिकों के बलिदान दिवस 11 सितम्बर, 1944 के दिन मार्मिक शब्दों में आह्वान किया कि हमारी मातृभूमि स्वतंत्रता की खोज में है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा। यह स्वतंत्रता की देवी की मांग है। नेताजी के इस संभावनापूर्ण प्रयास को यदि गांधी जी का समर्थन मिलता तो देश का इतिहास एवं भूगोल संभवत: कुछ और ही होता। ‘‘कदम-कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा, ये जिंदगी है कौम की, तू कौम पे लुटाये जा’’ इस प्रयाणगीत को गाकर आगे बढ़ने वाली सेना के प्रयाण मात्र से ही अंग्रेज भारत छोड़कर चले जाते, क्योंकि वे अंदर से कमजोर एवं असहाय हो चुके थे।

द्वितीय विश्व युद्ध ने उनकी कमर तोड़ दी थी। परंतु इस देश का दुर्भाग्य ही कहना होगा कि अंग्रेजों की इस मजबूरी का लाभ उठाकर देश को स्वाधीन कराने के अवसर को कांग्रेस ने हिंसा-अहिंसा की उधेड़बुन में गवां दिया। द्वितीय युद्ध के दौरान 15 अगस्त, 1945 को जापान ने आत्मसमर्पण किया और उसके ठीक 3 दिन बाद 18 अगस्त, 1945 वह दुर्भाग्यपूर्ण दिन था, जिस दिन नेताजी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ। कुछ ही दिनों बाद 2 सितंबर, 1945 को युद्ध की समाप्ति की घोषणा कर गई।

नेताजी द्वारा प्राप्त आंशिक स्वाधीनता को भी अवैध घोषित कर दिया गया। अंग्रेजों ने भारत सरकार अधिनियम 1935 के नियम एवं कानून के सहारे अज्ञातवासी घोषित कर नेताजी पर मुकदमा दर्ज किया। आजाद हिंद फौज से भी आत्मसमर्पण करवाकर फौज को उसी मुकदमे का अंग बनाया गया। अंग्रेजों द्वारा भारत पर थोपे गये नियमों से हटकर युद्ध का मार्ग अपनाने वाले नेता जी को अंतत: अंग्रेजों के प्रायोजित दुर्घटना की आड़ में मृत्यु या अज्ञातवास की अंधियारी गली में भटकने को विवश होना पड़ा।

भारत के संविधान में नेताजी का चित्र

भारत का संविधान 22 भागों तथा 3 उप भागों में लिखा गया है जिसके भाग 19 की चर्चा यहां जरूरी है। नेताजी ने अपनी सरकार के गठन के लिए जो रचना बनायी थी, उसी का विवरण इस भाग में प्रतिबिंबित हुआ है। भारत के शासन एवं प्रशासन से संबंधित पदाधिकारियों, पदों, आयोगों, मंडलों तथा अन्य व्यवस्थाओं से जुड़े कई बिंदुओं पर इसमें धारा 361 से 367 तक चर्चा की गई है।

इसी क्रम में भारत के संविधान का प्रारूप तैयार करने वाले डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर तथा प्रारूप समिति के 6 सदस्य संविधान की रचना में मग्न थे। विभाजन की त्रासदी, महात्मा गांधी की हत्या, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर मिथ्या आरोप लगाकर उस पर प्रतिबंध लगाना, प्रतिबंध का हटना, राज्यों एवं राजे-रजवाड़ों का विलीनीकरण आदि घटनाओं से देश के वातावरण में उथल-पुथल हो रही थी परंतु संविधान समिति का कार्य निरंतर चल रहा था।

अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद करना तथा दोनों भाषाओं में हाथ से लिख कर उसे चित्रों द्वारा सुसज्जित करना आदि सभी काम साथ-साथ चल रहे थे। संविधान के 22 भागों पर कुल 28 चित्र नंदलाल बोस द्वारा बनाये गये थे। इनमें भाग 19 पर जो चित्र है, वह नेताजी सुभाष के इसी प्रयास को प्रदर्शित करता है। इस चित्र में आजाद हिंद फौज के सैनिकों को कूच करते हुए दिखाया गया है तथा नेताजी तिरंगे झंडे को प्रणाम करते हुए उसे निहार रहे हैं। उनके द्वारा गांधी जी से की गयी विनती भी लिखी गई है।

इससे स्पष्ट होता है कि भारत की स्वाधीनता का सही मार्ग नेताजी एवं गांधी जी के समन्वित प्रयास ही था। चित्र पर लिखा है- MAHATMAJI, FATHER OF OUR NATION, IN THIS HOLY WAR FOR INDIA’S LIBERATION, WE ASK FOR YOUR BLESSINGS & GOOD WISHES.  रंगून रेडियो से प्रसारित अपने भाषण में नेताजी ने अपनी मन:स्थिति एवं सेना द्वारा प्राप्त स्थिति को स्पष्ट करते हुए भाषण दिया था जिसमें उन्होंने गांधी जी से उपरोक्त आशीर्वाद मांगा था। यह चित्र श्री अरविंद की उस भविष्यवाणी का भी स्मरण कराता है कि ‘विभाजन एक अस्थायी व्यवस्था है। भारत की अखंडता ही भारत को अपना उचित सम्मान व स्थान दिलाएगी। यही भारत की नियति है।’

विभाजन की ब्रिटिश चाल

भारत छोड़ने से पूर्व भारत को विभाजित करना तथा अप्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भारत पर अपने अधिकार की तलवार लटकाये रखना इंग्लैंड की रणनीति थी। सन्Þ1946 के सितंबर माह में नेहरू को प्रधानमंत्री बना अंतरिम सरकार का गठन किया गया। मुस्लिम लीग इस सरकार में शामिल हुई। पाकिस्तान की मांग को लेकर इस सरकार द्वारा उसे समर्थन प्राप्त कराने के लिए यह उनकी सोची-समझी चाल थी। 2 महीने बाद ही 6 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा गठित की गई। जिस देश का अपना कोई लिखित संविधान नहीं है, उसी देश से मुक्ति पाने के लिए भारत को अपना संविधान लिखने की चुनौती को स्वीकार करना पड़ा।

जून 1948 तक अपनी सत्ता का हस्तांतरण करने की ब्रिटिश सरकार की योजना थी। परंतु उनकी अपनी अंदरूनी कठिनाइयों एवं भारत में बने हुए मुस्लिम लीग के दबाव तथा जिन्ना द्वारा घोषित सीधी कार्रवाई से फैल रही अराजकता को देखते हुए उन्होंने अपनी योजना बदल दी। उनके द्वारा अब 1947 की 14-15 अगस्त की मध्य रात्रि में भारत एवं पाकिस्तान को एक साथ सत्ता हस्तांतरण करने की घोषणा कर दी गई। ब्रिटेन सरकार की सुविधा के अनुसार बनाये गये संविधान को भारत सरकार के अनुकूल बनाने की योजना पर काम प्रारंभ किया गया। माउंटबेटन के नेतृत्व में यह प्रक्रिया चलने लगी जिसमें उसकी पत्नी एवं बेटी की भूमिका भी महत्वपूर्ण थी। उन दोनों ने नेहरू को रिझाए रखने का काम बखूबी निभाया और माउंटबेटन ने भारत का विभाजन करा लिया।

अंग्रेजों ने स्वयं की कमजोरी को छिपाने एवं अपनी साख को बचाने के लिए कांग्रेस को हिंदुओं की एवं मुस्लिम लीग को मुसलमानों की पार्टी के रूप में सत्ता का भागीदार बनाये जाने की चाल चली। हमने उनकी इस कुटिल चाल का ही परिणाम भारत विभाजन की त्रासदी के रूप में भोगा है। आज भी भोग रहे हैं।

Topics: भारतीय कांग्रेसकदम-कदम बढ़ाये जाखुशी के गीत गाये जाराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघये जिंदगी है कौम कीRashtriya Swayamsevak Sanghतू कौम पे लुटाये जाआजाद हिंद फौजविभाजन की ब्रिटिश चालAzad Hind Faujnon-violence is the ultimate religionSecond World WarRash Behari Bose and other Indian freedom fightersद्वितीय विश्व युद्धIndian Congressअहिंसा परमोधर्म:British move of partitionरासबिहारी बोस तथा अन्य भारतीय स्वाधीनता सेनानीGenerals of freedom struggle
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