फ्रांस जल रहा है। कई शहरों में दंगे हो रहे हैं, पुलिस स्टेशनों पर हमला, जमकर आगजनी और लोगों को मारा जा रहा है। इसी बीच यह भी राष्ट्रपति मैक्रों की ओर से कहा गया कि अभिभावकों द्वारा टिकटॉक एवं वीडियो गेम की आदतों पर नियंत्रण न करने के कारण ये सब हो रहा है, अभिभावकों को अपने बच्चों पर नियंत्रण रखना चाहिए। हिंसा वाले वीडियो साझा करने के कारण दंगे और भड़क रहे हैं। मगर मैक्रों उस समस्या पर बात नहीं कर रहे, जिसके कारण हिंसा हो रही है। यह हिंसा क्या वास्तव में टिकटॉक प्रयोग करने वाले बच्चे कर रहे हैं या प्रवृत्ति में यह कुछ और है।
यह हिंसा शरणार्थी कर रहे हैं परन्तु कौन शरणार्थी? अभी कुछ ही दिन पहले एक महिला का वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें एक अफ्रीकी शरणार्थी एक श्वेत महिला और उसकी पोती पर हमला कर देता है। अब एक ऐसे मुस्लिम युवक की मृत्यु पर दंगे फैले हुए हैं, जिसने पुलिस के प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया था और भागने लगा था, इस पर जब गोली चलाई गयी तो उसकी मौत हो गयी। इस घटना के बाद उन्हीं लोगों ने फ्रांस में पेरिस में आगजनी और लूट मार शुरू कर दी। यह और भी बड़ा दुर्भाग्य है कि जिस शहर का नाम कला के लिए था अर्थात पेरिस, जो कला की विभिन्न जीवंत अभिव्यक्तियों के लिए था या फिर कहें कि वह तो स्वयं कला का ही प्रतिरूप था, वह धू-धू करके जल रहा है। क्या कारण है कि शरणार्थियों को शरण देने वाला फ्रांस इन दिनों उस हिंसा का सामना कर रहा है, जो वही लोग वहां पर रहे हैं, जिन्हें उसने विवश जानकर अपने यहाँ शरण दी, अपने नागरिकों के अधिकारों को उन्हें प्रदान किया और अपने देश के संसाधनों का उतना ही प्रयोग करने दिया, जितना उसके नागरिक किया करते हैं।
मगर फिर भी एक युवक की मृत्यु के बाद दंगे भड़क रहे हैं, स्टोर्स को ऐसे लूटा जा रहा है, जिसकी कल्पना ही किसी ने नहीं की होगी। एक दो नहीं बल्कि सोशल मीडिया ऐसे तमाम वीडियो से भरा पड़ा है, जिसमें फ्रांस की छाती पर बने हुए छाले दिखाई दे रहे हैं।
मगर एक जो सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न सामने निकलकर आता है वह यह कि आखिर इन शरणार्थियों के पास, जो अपना सबकुछ छोड़कर एक बेहतर भविष्य की तलाश में आते हैं और जिनके लिए कभी फ्रांस ने यह कहते हुए बाहें पसार दी थीं कि वह खतरा नहीं हैं, उन्हीं पीड़ितों, शोषितों के पास पत्थर, और हथियार कैसे आ जाते हैं?
आखिर कैसे उनके हाथों में एके47 जैसे हथियार आ जाते हैं? क्यों उनके भीतर यह दुस्साहस आ जाता है कि जिसने उन्हें शरण दी, उसी शहर को बर्बाद कर दिया जाए? कैसे आखिर यह कृतघ्नता का भाव उनके दिल में आ जाता है? ऐसा नहीं है कि पहली बार ऐसा हो रहा होगा? यदि देखा जाए तो यह संयोग एक दो बार और दोहराया जा चुका है।
यूरोप में एक नहीं कई घटनाएं ऐसी हो रही हैं, जिनमें इस्लामी मूल के शरणार्थियों द्वारा अपराध किए जा रहे हैं या कहें लड़कियों पर हमले किए जा रहे हैं। ऐसी घटनाएं दैनिक स्तर पर सामने आ रही हैं, परन्तु फिर भी लोग उस दुस्साहस के विषय में बात नहीं कर रहे हैं, जो कथित शरणार्थियों में दिख रहा है। या फिर जो समस्या है उसे कोई पहचानना ही नहीं चाहता है? फ्रांस में चल रहे दंगों के बीच एक ट्वीट पोलैंड के प्रधानमंत्री माटुस्ज़ मोआविएकी का आया है, जिसमें उन्होंने जलते हुए फ्रांस और शांतिपूर्ण पोलैंड की तुलना की है। उन्होंने लिखा है कि हमारी योजना एक सुरक्षित यूरोप और नागरिकों की रक्षा की है। यह वह मूल्य हैं, जिनके कारण सब कुछ आरम्भ होता है।
अब इन दंगों को लेकर एक नया ही विमर्श आरम्भ किया जा रहा है जिसमें दंगा करने वालों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हुए फ्रांस से यह आशा की जा रही है कि वह रेसिज्म के प्रति अपनी नीति को ठीक करेगा? संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी एक वक्तव्य में फ्रांस से यह कहा गया कि वह नीतिगत निर्णयों में रेसिज्म की गहरी समस्याओं की ओर ध्यान दें!
फ्रांस की पुलिस के प्रशिक्षण की ओर प्रश्न उठाए जा रहे हैं। यहाँ तक कि यह तक विश्लेषण हो रहे हैं कि रेसिज्म के जाल में फंसा हुआ केवल अमेरिका ही नहीं है, बल्कि फ्रांस भी है। मगर न ही समस्या पर बात हो रही है, और न ही इस मूलभूत प्रश्न पर कि अंतत: यह दुस्साहस कहाँ से आता है कि वह स्वयं को शरण देने वालों को ही जला डालें?
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