प्रधानमंत्री की इस बार की अमेरिका यात्रा अपने आप में एक ऐसा अध्याय है, जो इतिहास के सबसे विशिष्ट पन्नों में दर्ज होगा। क्या कोई भी यह अपेक्षा अथवा कल्पना कर सकता था कि एक महाशक्ति भारत को प्रसन्न करने का गंभीर तौर पर प्रयास करेगी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की विदेश यात्राएं, उनके भाषण और बाकी सारी बातों को जिसने भी गौर से देखा-सुना है, उसे वैसी ही प्रसन्नता और गर्व का अनुभव हुआ होगा, जैसा 2014 से लगातार होता आ रहा है। फिर भी, प्रधानमंत्री की इस बार की अमेरिका यात्रा अपने आप में एक ऐसा अध्याय है, जो इतिहास के सबसे विशिष्ट पन्नों में दर्ज होगा। क्या कोई भी यह अपेक्षा अथवा कल्पना कर सकता था कि एक महाशक्ति भारत को प्रसन्न करने का गंभीर तौर पर प्रयास करेगी?
किसी ने नहीं कहा था कि भारतीय प्रधानमंत्री के अमेरिका आगमन को जमीनी स्तर से बहुत ऊपर, आसमानी स्तर पर, भव्य संकेतों से चिह्नित किया जाए। लेकिन उन्होंने किया। प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की तस्वीरों से सजे एक बैनर को न्यूयॉर्क में हडसन नदी के ऊपर विमान से लहराया गया। 20 जून को जैसे ही भारतीय प्रधानमंत्री ने अमेरिका में कदम रखा, एक बैनर का अनावरण हुआ, जिस पर अंकित था-‘ऐतिहासिक राजकीय यात्रा।’
किसी ने नहीं कहा था कि भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के उपलक्ष्य में भारत के राष्ट्रीय ध्वज को अमेरिका के स्मारकों और झरनों जैसे आकर्षण केंद्रों पर प्रदर्शित किया जाए। लेकिन उन्होंने ऐसा किया। प्रोटोकॉल यह होता है कि संसद सदस्यों को भारतीय प्रधानमंत्री से तब तक हाथ नहीं मिलाना चाहिए, जब तक प्रधानमंत्री खुद आगे न आएं। लेकिन अमेरिकी सांसदों ने इस प्रोटोकॉल की परवाह नहीं की। वे प्रधानमंत्री मोदी से मिलकर बेहद रोमांचित दिखे।
कुछ तो मोदी के हाथों तक पहुंचने के लिए ज्यादा ही प्रयास करते नजर आए। कुछ अमेरिकी सांसद प्रधानमंत्री का आटोग्राफ लेने के लिए कतार में खड़े हो गए। बहुत सारे कैमरों की नजर हर व्यक्ति की हर गतिविधि पर थी। इसके बावजूद, कुछ अमेरिकी राजनेताओं ने नरेंद्र मोदी के साथ अपने फोन पर सेल्फी लेने की कोशिश और मांग की। यह भी प्रोटोकॉल के प्रतिकूल था, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। क्या किसी ने इसकी कल्पना की थी?
प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा सिर्फ उत्साह व सम्मान का चरम मेला नहीं थी। जिसे अमेरिका-भारत संबंधों का नया युग कहा गया, उसमें न केवल साझेदारी मजबूत हुईहै, बल्कि कई समझौते भी हुए।
मंच पर भारत का राष्ट्रगान गाने वाली अमेरिकी महिला ने नरेंद्र मोदी के चरण स्पर्श किए। भारतीय परंपराओं के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी को सम्मान देना अपने आप में एक गहरा और अद्भुत संकेत था। अमेरिकी कांग्रेस में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के दौरान ‘मोदी-मोदी’ के नारे इस प्रकार लगे, जैसे वह भारत में किसी जनसभा को संबोधित कर रहे हों।
अभी तक के दोनों देशों के पिछले सभी शिखर सम्मेलनों से विपरीत, इस बार अमेरिका ने खुद कहा कि वह मानवाधिकारों पर भारत को व्याख्यान नहीं देगा। वह जानता था कि भारत बिना कुछ कहे बहुत कुछ जवाब दे सकता है। आज भारत वह देश है, जिस पर दुनिया का ध्यान केंद्रित है। अमेरिकी संसद से प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया को बताया कि उनकी दो अमेरिका यात्राओं के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था 10वें से 5वें स्थान पर आ गई है और जल्द ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी।
यह किसी तरह की खुशामद नहीं थी, न भारत किसी गुट के नजदीक है, न परे। अमेरिका को पता है कि हम अमेरिकी प्रतिबंधों को चुनौती देकर रूस से तेल एवं गैस खरीद रहे हैं। इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर भारत अमेरिका के साथ नहीं खड़ा है। भारत रूस से एस-400 मिसाइलें भी खरीद रहा है। भारत के दोनों देशों के साथ संबंध पूरी तरह स्वतंत्र हैं।
प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा सिर्फ उत्साह और सम्मान का चरम मेला नहीं थी। इसमें गंभीर व्यवसाय भी निहित था। जिसे अमेरिका-भारत संबंधों का नया युग कहा गया, उसमें बाइडन और मोदी ने न केवल साझेदारी को मजबूत किया है, बल्कि कई प्रमुख समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इस राजकीय यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने बाइडन के साथ चर्चा की, अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित किया और प्रमुख अमेरिकी व भारतीय व्यापारिक नेताओं से मिले।
प्रधानमंत्री मोदी ने लुक ईस्ट पॉलिसी को एक्ट ईस्ट एशिया पॉलिसी में बदल दिया और एक्ट फॉर ईस्ट और एक्ट वेस्ट एशिया नीतियों को जोड़ा।
व्हाइट हाउस के एक बयान में दोनों देशों ने सेमीकंडक्टर विनिर्माण, महत्वपूर्ण खनिज, प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष व रक्षा सहयोग तथा बिक्री पर समझौतों की घोषणा की, जिसमें जेट इंजन, समुद्री सहयोग, ड्रोन सौदे शामिल हैं। न्यूयार्क में ट्विटर के सीईओ एलन मस्क ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की और कहा कि भारत में किसी भी अन्य बड़े देश की तुलना में अधिक संभावनाएं हैं। प्रधानमंत्री ने भारत में सेमीकंडक्टर विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए अमेरिकी चिप निर्माता माइक्रोन टेक्नोलॉजी को आमंत्रित किया है।
भारत 2026 तक 64 बिलियन डॉलर के अनुमानित सेमीकंडक्टर बाजार मूल्य के साथ इलेक्ट्रॉनिक्स व सेमीकंडक्टर के लिए एक गंतव्य के रूप में खुद को स्थापित कर रहा है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में गुजरात में चिप परीक्षण संयंत्र के लिए माइक्रोन की 2.7 बिलियन डॉलर की योजना को मंजूरी दी थी। मोदी ने भारत के विमानन, नवीकरणीय ऊर्जा और सेमीकंडक्टर क्षेत्रों में बड़ी भूमिका निभाने के लिए जनरल इलेक्ट्रिक और अप्लाइड मैटेरियल्स को भी निमंत्रण दिया।
प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के दौरान भारत ने जनरल एटॉमिक्स एयरोनॉटिकल सिस्टम्स से 31 एमक्यू-9बी प्रीडेटर ड्रोन के लिए सौदा सुरक्षित किया है, जिससे सशस्त्र बलों की खुफिया, निगरानी और टोही (आईएसआर) क्षमता बढ़ेगी। ड्रोन भारत में असेंबल होंगे, जिसकी अनुमानित लागत 3 अरब डॉलर होगी। साथ ही, भारत आर्टेमिस समझौते का 27वां हस्ताक्षरकर्ता बन गया है, जो अमेरिका के नेतृत्व वाली पहल है। इसका उद्देश्य 2025 तक मनुष्य को चंद्रमा पर भेजना, वापस लाना और मंगल ग्रह पर अन्वेषण का विस्तार करना है।
इस समझौते का उद्देश्य बाहरी अंतरिक्ष की खोज में भारत-अमेरिका के बीच सहयोग बढ़ाना है। यह समझौता चंद्रमा पर स्थायी उपस्थिति के लक्ष्य के साथ, नासा के आर्टेमिस कार्यक्रम में भाग लेने वाले देशों के बीच सहयोग के लिए व्यावहारिक ढांचा प्रदान करता है। उधर, अमेरिका बेंगलुरु व अहमदाबाद में नए वाणिज्य दूतावास खोलने की योजना बना रहा है, जिसका लक्ष्य दोनों देशों के लोगों के बीच संबंधों को मजबूत करना है। वहीं, सिएटल में भारत का लंबे समय से प्रतीक्षित वाणिज्य दूतावास जल्द स्थापित किया जाएगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने 21 जून को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के उत्तरी लॉन क्षेत्र में अपने योग कौशल का प्रदर्शन किया। राजनयिकों, नीति निमार्ताओं व भारतीय अमेरिकी समुदाय को संबोधित करते हुए उन्होंने योग की सार्वभौमिकता पर प्रकाश डाला और सभी से दोस्ती को बढ़ावा देने, एक स्थायी भविष्य बनाने तथा अपने व दूसरों के प्रति दयालुता को बढ़ावा देने के लिए योग की शक्ति का उपयोग करने का आग्रह किया। उन्होंने बहुत स्पष्ट तौर पर यह भी स्थापित कर दिया कि वह न केवल भारत, बल्कि भारत की विश्व दृष्टि का भी नेतृत्व कर रहे हैं। आज वैश्विक दक्षिण भारत को एक विश्वसनीय विकास भागीदार के रूप में देखता है। भारत की दूसरी छवि एक आर्थिक सहयोगी की है। आज भारत वह है, जो जबरदस्ती, प्रलोभन और झूठी कहानियों से न प्रभावित होता है, न किसी को प्रभावित करने की कोशिश करता है। भारत महत्वपूर्ण और वास्तविक आर्थिक प्रभाव पैदा कर रहा है और विश्व स्तर पर इसे मान्यता मिली है।
भारतीय विदेश नीति या विश्व में भारत की बढ़ती छाप की कहानी 2014 से शुरू होती है। जुलाई 2014 में वियतनाम में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में पश्चिमी देशों के विदेश नीति विशेषज्ञों के एक समूह ने प्रश्न किया कि मोदी के तहत भारत की विदेश नीति की प्रकृति क्या होगी? तब विदेश सचिव रहे एस. जयशंकर ने भाजपा के घोषणापत्र के अनुसार कहा था, ‘‘भारतीय विदेश नीति अपने सुरक्षा हितों को मजबूत करते हुए आर्थिक विकास में सहायता करने और अपनी वैश्विक स्थिति को बढ़ाने के लिए प्रमुख राज्यों के साथ संबंध सुधारने का प्रयास करेगी।’’ जयशंकर कहते हैं कि वही समूह 2017 में मास्को में एक अन्य अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में जब उनसे मिला, तो उन्होंने ‘प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रमुख शक्तियों को चतुराई से संभालने और उनके साथ संबंधों के स्तर को उल्लेखनीय रूप से बढ़ाने’ की प्रशंसा की।
2017 से अब तक छह वर्ष हो चुके हैं। मोदी की विदेश नीति की विशेषताएं अब शोध प्रबंधों का विषय हो चुकी हैं। संभवत: पहली बार, मोदी सरकार ने विदेश नीति को राष्ट्र हित के एक साधन में परिवर्तित कर दिया है। उन्होंने साहसपूर्ण कदम उठा कर धुर विरोधी देशों के बीच भी यह स्थापित कर दिया है कि भारत के साथ संबंध पारस्परिक लाभ के लिए हैं, न कि किसी प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ। इस्राइल और अरब देशों के साथ एक साथ गहरे संबंध स्थापित करने वाले मोदी ऐसे पहले विश्व नेता थे, जिनकी नीति पर किसी को संदेह नहीं था। नीति आम समृद्धि और सुरक्षा के स्पष्ट उद्देश्यों से जुड़ी हुई थी।
अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया के साथ भारत इंडो-पैसिफिक क्वाड में शामिल है। भारत ने इस क्षेत्र के लिए एक सामान्य नियम-आधारित व्यवस्था की मांग की है, जिसमें समानता के आधार पर इस भौगोलिक क्षेत्र के सभी देशों को शामिल किया जाएगा। साथ ही, मोदी सरकार ने रूस, आरआईसी और ब्रिक्स के साथ भी बैठकें जारी रखी हैं। रूस के साथ अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों से घनिष्ठ संबंध स्थापित किए जा रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी) के संचालन के लिए प्रयास जारी हैं। ईरान के साथ भारत ने चाबहार परियोजना शुरू कर दी है। रूस द्वारा सितंबर 2019 के पूर्वी आर्थिक मंच में मुख्य अतिथि के रूप में प्रधानमंत्री मोदी को निमंत्रण उसकी सुदूर पूर्वी आर्थिक रणनीति में भारत को शामिल करने की इच्छा को दर्शाता है। पुतिन की हालिया भारत यात्रा के दौरान, रूस हिंद और प्रशांत महासागरों पर परामर्श करने के लिए सहमत हुआ। यह परस्पर समझ-बूझ का अनूठा उदाहरण है।
आज वैश्विक दक्षिण भारत को एक विश्वसनीय विकास भागीदार के रूप में देखता है। भारत की दूसरी छवि एक आर्थिक सहयोगी की है। आज भारत वह है, जो जबरदस्ती, प्रलोभन और झूठी कहानियों से न प्रभावित होता है, न किसी को प्रभावित करने की कोशिश करता है। भारत महत्वपूर्ण और वास्तविक आर्थिक प्रभाव पैदा कर रहा है और विश्व स्तर पर इसे मान्यता मिली है।
प्रधानमंत्री मोदी ने लुक ईस्ट पॉलिसी को एक्ट ईस्ट एशिया पॉलिसी में बदल दिया और एक्ट फॉर ईस्ट और एक्ट वेस्ट एशिया नीतियों को जोड़ा। सऊदी अरब, इज्राइल, यूएई और ईरान के साथ जटिल संबंधों का उनका प्रबंधन संभवत: उनके अतिरिक्त किसी अति विशिष्ट राजनयिक के भी वश की बात नहीं थी। मोदी की कूटनीति ने यह भी स्थापित किया है कि कुछ लोगों के विचारों को नहीं, बल्कि कई लोगों की आवाज को विश्व में महत्व मिलना चाहिए। मोदी कूटनीति किसी शक्ति के आधिपत्य को भी स्वीकार नहीं करती। आज भारत के संबंध उन देशों के साथ भी विकसित स्थिति में हैं, जिन पर पहले कम ध्यान दिया जाता था।
प्रधानमंत्री मोदी मंगोलिया की यात्रा करने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं। वे 2015 में व्यापक साझेदारी को बढ़ाकर रणनीतिक साझेदारी के स्तर पर ले गए हैं। 2016 में उन्होंने वियतनाम के साथ संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक बढ़ाया। 2017 में इस्राइल की ऐतिहासिक यात्रा की, जो किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा इस देश की पहली यात्रा थी। मोदी 1986 के बाद से कनाडा और यूएई की यात्रा करने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं। पड़ोसियों के साथ बेहतर संबंध बनाने के प्रयासों को भी तेज करते हुए बांग्लादेश के साथ भूमि सीमा समझौता हुआ।
महत्वपूर्ण यह भी है कि मोदी ने विदेश नीति को घरेलू आर्थिक हितों के साथ व्यावहारिक रूप से एकीकृत करने का प्रयास किया है। आज भारत एफडीआई को आमंत्रित करता है और ‘मेक इन इंडिया’, ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान भी चलाता है। एक विशुद्ध व्यावहारिकता पर आधारित नीति, जो परस्पर निर्भरता को परस्पर ताकत बना लेती है। वर्तमान में भारत के 50 से अधिक देशों के साथ व्यापार समझौते हैं। आर्थिक विकास के लिए विदेश नीति के तालमेल से भारत की अर्थव्यवस्था में स्पष्ट सुधार हो रहा है। विदेशों में प्रभाव विकसित करने के लिए प्रवासी भारतीयों का बढ़-चढ़कर उपयोग करता है, जिसके परिणामस्वरूप मेजबान देशों में प्रभावशाली राजनीतिक तत्वों के समक्ष प्रवासी भारतीयों का कद बढ़ जाता है।
सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट हवाई हमले के उदाहरण के रूप में पाकिस्तान को उसकी शरारतों के लिए दंडित कर, मोदी की कूटनीति-रक्षानीति ने न केवल उसके परमाणु खतरे का हौवा खारिज कर दिया, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि भारत ने उस रणनीतिक संयम की स्थिति को प्राप्त कर लिया है, जिसके कारण अतीत में भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा स्थिति बाधित बनी रहती थी।
इतना सब होने के बावजूद, भारत की विदेश नीति के उद्देश्य या लक्ष्य जरा भी नहीं बदले हैं। हालांकि उन्हीं लक्ष्यों को प्राप्त करने की प्रक्रिया बड़े पैमाने पर बदल गई है। प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति के दायरे में पूरा विश्व समाहित है। भारत एक ऊर्जापूर्ण और सकारात्मक नीति पर चल रहा है और शक्तियों की प्रतिद्वंद्विता से दूर रहते हुए अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रयास में अधिक मुखर और अधिक सक्रिय है।
आज विश्व में बहुत सारे लघु समूह हैं। क्वाड में भारत केंद्रीय भूमिका में है, लेकिन रूस के साथ वह अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों से समन्वय कर रहा है। भारत आरआईसी फोरम (रूस, भारत, चीन) और ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के सम्मेलनों में रूस और चीन के साथ समान स्तर पर बैठता है। अब भारत की प्रत्येक लघु समूह में प्रभावशाली भूमिका है।
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