देवरिया ताल की यात्रा के लिए पहले ऋषिकेश और ऊखीमठ में रात्रि विश्राम किया जा सकता है। यहां पर हर जगह सस्ते में होटल मिल जाते हैं और हर प्रकार के सड़क वाहन यहां के लिए उपलब्ध रहते हैं। इस ताल के बारे में कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद पाण्डवों से यहीं पर यक्ष ने प्रश्न पूछे थे।
बहुत दिनों से परिवार किसी बर्फीर्ली पहाड़ी जगह पर घूमने जाना चाहता था। अन्तत: हम लोगों ने केदारनाथ के पास देवरिया ताल नामक जगह की यात्रा पर जाने का निर्णय लिया। कम ही लोगों ने देवरिया ताल का नाम सुना होगा परन्तु वहां जाने का जो रोमांच है, वह यात्रा को विशेष बनाता है। देवरिया ताल की यात्रा के लिए पहले ऋषिकेश और ऊखीमठ में रात्रि विश्राम किया जा सकता है। यहां पर हर जगह सस्ते में होटल मिल जाते हैं और हर प्रकार के सड़क वाहन यहां के लिए उपलब्ध रहते हैं। इस ताल के बारे में कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद पाण्डवों से यहीं पर यक्ष ने प्रश्न पूछे थे।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से सुबह घर से निकलें तो शाम होते-होते ऋषिकेश के तपोवन पहुंच जाते हैं। अगले दिन सुबह निकलकर पहाड़ी रास्तों की दुरूहता और पहाड़ों के सौन्दर्य का आनंद लेते हुए सफर बढ़ता है।
देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग होते हुए हम ऊखीमठ पहुंच गये। ऊखीमठ पार करने के बाद सारी गांव पहुंचते-पहुंचते अन्धेरा छाने लगा। हमने कुछ कपड़े रखकर खच्चर पर सवारी की तैयारी कर ही ली। हम लोग डरे हुए थे, क्योंकि पहाड़ी रास्ते पर घुप्प अंधेरा था। और कोई रास्ता न देखकर सब खच्चरों पर सवार हो गये और चढ़ाई शुरू कर दी।
लगभग दो घण्टे की रोमांचक चढ़ाई के बाद हम देवरिया ताल पहुंचे। उस समय रात के नौ बज रहे थे। अन्धेरे के कारण कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। गर्म कपड़े ले जाना भूल जाने के कारण हमने कांपते हुए रात बिताई। सुबह की पहली रोशनी जब कैम्प पर पड़ी तो नींद खुल गई। जहां हमारा टेंट लगा था, उससे बिल्कुल सटा गहराई में बहुत बड़ा तालाब था। सामने बर्फ की ऊंची चोटियां सीना ताने खड़ी थीं।
तालाब में बर्फीले पहाड़ों का प्रतिबिम्ब इतना सुन्दर लग रहा था कि मुंह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे। वहां प्राकृतिक सुन्दरता को अपनी आंखों में भर ही रहे थे कि चोटियों पर सूरज की पहली किरण पड़ी। जहां-जहां सूरज की किरणें पड़ रही थीं, वहां-वहां पहाड़ों का रंग सुनहरा होता जा रहा था। लगता था, कि हम सब सोने के पहाड़ के आगे खड़े हैं।
हम लोग कुछ देर तक देवरिया ताल के चारों तरफ घूमते रहे, फिर वहां से वापस चल पड़े। रात में हमने ऊखीमठ में एक गेस्ट हाउस को अपना ठिकाना बनाया।
अगले दिन सुबह नींद खुली तो ठीक सामने बर्फ की चोटियों पर सूरज की किरणें पड़ रही थीं और लगता था कि सूर्य भगवान ने सामने सोने का पहाड़ रख दिया हो।
ऊखीमठ के बारे में कहा जाता है कि जब सर्दियों में बाबा केदारनाथ के पट बन्द हो जाते हैं तो उनका निवास ऊखीमठ हो जाता है। बाणासुर की पुत्री उषा और भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध का विवाह इसी स्थल पर हुआ था। भगवान ओंकारेश्वर का प्रसिद्ध मन्दिर ऊखीमठ में ही है। देवरिया ताल की यात्रा में रोमांच भी था, अध्यात्म भी था और प्रकृति की नैसर्गिक छटा भी थी, जो सैलानियों को बार-बार यहां बुलाएगी।
(यायावर, साहित्यकार और फोटोग्राफर हैं)
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