एक समाचार के अनुसार यहां के छतरपुर थाना क्षेत्र के कई गांवों में कुछ ऐसे दलाल सक्रिय हैं, जो इस तरह की ‘शादियां’ करा रहे हैं। लेकिन इसका जो स्वरूप सामने आया है, उसे देखकर लोगों का मानना है कि यह विवाह नहीं, मानव तस्करी है।
आज तक आपने गरीबी और अशिक्षा के कारण आने वाली कई व्याधियों को सुना और देखा भी होगा। लेकिन शायद यह नहीं सुना होगा कि कुछ लोग गरीब लड़कियों का ‘विवाह’ स्टांप पेपर पर कराते हैं। इस ‘विवाह’ में केवल लड़की के बारे में पता होता है। दूल्हा कौन है, किस जाति, मजहब का है, कहां का रहने वाला है आदि जानकारियां वधू पक्ष को बिल्कुल नहीं होती। यह सब काम गरीब लड़कियों के माता-पिता को कुछ राशि देकर किया जाता है।
कहा जा रहा है कि कथित विवाह के बाद लड़की को राजस्थान भेज दिया जाता है। झारखंड के पलामू जिले में ऐसी अनेक घटनाएं हुई हैं। एक समाचार के अनुसार यहां के छतरपुर थाना क्षेत्र के कई गांवों में कुछ ऐसे दलाल सक्रिय हैं, जो इस तरह की ‘शादियां’ करा रहे हैं। लेकिन इसका जो स्वरूप सामने आया है, उसे देखकर लोगों का मानना है कि यह विवाह नहीं, मानव तस्करी है।
15 जून को छतरपुर थाने में इसी तरह का एक मामला पहुंचा। कुछ महिलाओं ने सुनीता देवी और उसके पति संजय कुमार भुइंया को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया। आरोप है कि इन दोनों ने इटकदाग गांव के रामावतार भुइंया की बेटी बिंदी कुमारी और चराई गांव के शिवनारायण भुइंया की बेटी बबीता कुमारी का विवाह 500 रु. के स्टांप पेपर पर कराया है।
अब पुलिस इन दोनों से पूछताछ कर रही है। पूछताछ के दौरान सुनीता देवी और संजय कुमार भुइंया ने स्वीकार किया कि शादी कराने के बदले में उन्हें कुछ रुपए मिलते हैं। इसके बाद पुलिस ने कथित शादी करा कर ले जाई गईं कुछ लड़कियों से मोबाइल पर बात कर उनका हालचाल जाना। थाना प्रभारी शेखर कुमार के अनुसार इस मामले में अभी तक किसी प्रकार की कोई लिखित शिकायत नहीं मिली है। अगर कोई शिकायत मिलती है तो उचित कार्रवाई की जाएगी।
‘‘झारखंड की युवतियों की तस्करी बड़े पैमाने पर ‘सेक्स वर्कर’ के रूप में होती है। इसके साथ ही शादी के नाम पर भी इनकी तस्करी की जाती है। इन्हें पारो या दासी के नाम से पुकारा जाता है’’
— बैद्यनाथ कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता
भले ही पुलिस शिकायत न मिलने की बात कह रही हो, लेकिन मानव तस्करी के विरुद्ध कार्य करने वाले समाजसेवी बैद्यनाथ कुमार का मानना है कि झारखंड में मानव तस्कर बहुत ही अंदर तक पैठ बना चुके हैं। वे कहते हैं, ‘‘झारखंड की युवतियों की तस्करी बड़े पैमाने पर ‘सेक्स वर्कर’ के रूप में होती है। इसके साथ ही शादी के नाम पर भी इनकी तस्करी की जाती है। इन्हें पारो या दासी के नाम से पुकारा जाता है।’’ उन्होंने यह भी बताया,‘‘कोविड के दौरान मानव तस्करों के चंगुल से कई लड़कियों को बचाया गया था, लेकिन उसके बाद हालात फिर से खराब हो गए हैं।’’
इसकी पुष्टि जयपुर की एक घटना से होती है। इसी वर्ष फरवरी महीने में झारखंड की एक नाबालिग और बेहद ही गरीब बच्ची ने जयपुर के माणक चौक थाने पहुंचकर पुलिस को अपनी पीड़ा बताई थी। उसके अनुसार एक सब्जी बेचने वाली महिला उसे जयपुर लेकर आई थी। उस महिला ने उसके घर वालों से कहा था कि लड़की का विवाह एक अच्छे घर में हो जाएगा और बदले में 55,000 रु. भी मिलेंगे।
गरीबी से त्रस्त परिवार वालों को महिला की बात ठीक लगी और उन लोगों ने अपनी बेटी को उसके साथ राजस्थान भेज दिया। यहां उस महिला ने उस लड़की को एक गिरोह के हाथ बेच दिया और पैसे लेकर झारखंड लौट गई। बाद में गिरोह के सदस्य उस लड़की का यौन शोषण करने लगे। एक दिन किसी तरह वह लड़की उनके चंगुल से निकली और नजदीकी माणक चौक थाने पहुंची। पुलिस ने लड़की का बयान दर्ज कर कार्रवाई शुरू की तब इस मामले की जानकारी लड़की के घर वालों को हुई।
2022 के आकड़ों के अनुसार झारखंड में सबसे ज्यादा 122 बच्चे जमशेदपुर जिले से लापता हुए थे। जबकि गुमला जिले से 52, लोहरदगा से 36, चाईबासा से 39, रांची से 29 और पलामू से 46 बच्चे लापता हुए थे। इस तरह पूरे राज्य से 694 नाबालिग लापता हुए। इसमें 262 लड़के और 432 लड़कियां थीं। 560 बच्चों को बरामद किया गया है, जबकि 134 बच्चों का अभी तक कुछ पता नहीं चला है।
ऐसा ही एक मामला गिरिडीह जिले से भी आया है। जून महीने में ही गिरिडीह पुलिस ने राजस्थान के पांच युवकों समेत कुल छह लोगों को एक मंदिर से गिरफ्तार किया। इन पर आरोप है कि ये लोग एक नाबालिग लड़की का विवाह राजस्थान के एक अधेड़ व्यक्ति से करा रहे थे। किसी ने प्रशासन को इसकी जानकारी दे दी और पुलिस ने तत्काल कार्रवाई कर उसरी फॉल के पास एक मंदिर में छिपे इस गिरोह को धर दबोचा। बताया जा रहा है कि इस कथित विवाह के लिए नाबालिग लड़की के परिवार वालों को 1,00,000 रु. देने की बात हुई थी। 60,000 रु. नकद दे भी दिए गए थे। पुलिस ने गिरोह को शादी के सामान और रुपयों के साथ गिरफ्तार किया है।
आंकड़े भी बताते हैं कि झारखंड से लगातार लड़कियां बाहर ले जाई जा रही हैं। दलाल किस्म के लोग बड़े शहरों में नौकरी दिलाने के नाम पर गरीब परिवार की बच्चियों को बहला-फुसलाकर ले जाते हैं। ये लोग उनके घर वालों को आश्वासन देते हैं कि लड़की की नौकरी लगने से आमदनी बढ़ेगी।
इस लालच में घर वाले भी अपनी लड़की को इनके साथ भेज देते हैं। ऐसी लड़कियों को कई बार अपनी जान देकर कीमत चुकानी पड़ती है। एक ऐसा ही मामला सिमडेगा जिले में सामने आया। यहां की एक16 वर्षीया किशोरी नई दिल्ली के राजौरी गार्डन में एक ईसाई परिवार में घरेलू नौकरानी का काम करती थी। गत दो जून को राजौरी गार्डन में उस किशोरी की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु का कारण पता नहीं चला। शायद यह पता भी नहीं चलेगा, क्योंकि उसके घर वाले इतने गरीब हैं कि वे इसके लिए दौड़-भाग नहीं कर सकते।
पुलिस के आंकड़ों के अनुसार झारखंड से प्रतिवर्ष 400-500 नाबालिग बच्चे लापता हो जाते हैं। इनमें से लगभग 100 बच्चे नहीं मिल पाते है। एनसीआरबी के 2021 के आंकड़ों के अनुसार 123 बच्चों का बलपूर्वक काम कराने के लिए अपहरण किया गया था, जबकि चार का शारीरिक शोषण और वेश्यावृत्ति के लिए। वहीं 108 बच्चों का घरेलू काम के लिए और नौ बच्चों को बलपूर्वक शादी के लिए अगवा किया गया।
इसलिए यह पता भी नहीं चलेगा कि उसकी हत्या हुई या उसने आत्महत्या की है। मृतका कुरडेग प्रखंड की हेठमा पंचायत के भिजरीबारी गांव की रहने वाली थी। कहा जा रहा है कि उसे सेमरबेड़ा गांव का निवासी अजय लकड़ा बहला-फुसला कर दिल्ली ले गया और उसे बेच दिया। एक रपट के अनुसार 2015-2022 तक झारखंड से 4,765 नाबालिग बच्चे गायब हुए हैं। इनमें लड़के और लड़कियां भी शामिल हैं। पुलिस के पास इनकी शिकायत भी पहुंची थी। इस कारण 3,997 बच्चे बरामद भी किए गए हैं, लेकिन अभी भी 768 का कोई अता-पता नहीं है। इन मामलों में सैकड़ों लोगों की गिरफ्तारी हुई है। इसके बाद भी मानव तस्करी रुकने का नाम नहीं ले रही।
ताजा मामला मई महीने का ही है। बेंगलुरु से 11 नाबालिग लड़कियों को बचाकर 12 मई को रांची लाया गया था। ये सब साहिबगंज और पाकुड़ की पहाड़िया जनजाति से संबंध रखती हैं। इन नाबालिगों में छह लड़कियों की उम्र 14 साल, चार की उम्र 15 साल और एक की उम्र 17 साल है। अधिकारियों के अनुसार बेंगलुरु में लगभग 25 महिलाओं को देखा गया, जिनमें से 11 नाबालिग थीं। इसलिए पहले उन्हें बचााया गया। इन लड़कियों का कहना है कि उन्हें नौकरी का लालच देकर बेंगलुरु ले जाया गया था।
अंत में यह कह सकते हैं कि झारखंड के गरीब परिवारों की बेटियों को एक षड्यंत्र के तहत निशाना बनाया जा रहा है। बहाना यही होता है कि नौकरी लगा दी जाएगी या फिर विवाह हो जाएगा। लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं। ये गरीब लड़कियां बदमाशों के चंगुल में आते ही नारकीय जिंदगी जीने को मजबूर हो जाती हैं। ये कहीं किसी घर में नौकरानी बना कर रखी जाती हैं। इन्हें किसी बाहरी व्यक्ति से बात भी नहीं करने दी जाती। इसके साथ ही बहुत सी लड़कियां यौन शोषण का शिकार बन जाती हैं। चूंकि इन्हें लाने वाले दलालों के पीछे बड़े और प्रभावशाली लोगों का हाथ होता है इसलिए इनका कुछ बिगड़ता नहीं है।
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