कालिंद, कालिंदी और कालिंदम्

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हरि गुप्ता

औरंगजेब के काल में दिल्ली में पेशे से चिकित्सक फ्रांसीसी यात्री बर्नियर आया था। उसने अपने यात्रा संस्मरण मे लिखा है, ‘‘मैंने दुनिया की अनेक नदियों के किनारे उगने वाले तरबूज खाए। यहां तक कि भारत में भी अनेक नदियों के किनारे वाले, चाहे वह दक्षिण की नदी हो या पश्चिम की। लेकिन जो मिठास, स्वाद दिल्ली में यमुना के किनारे उत्पन्न तरबूजों में है वह मुझे कहीं नहीं मिला।

तरबूज को संस्कृत में कालिंदम् कहते हैं। यह नाम इसे कालिंदी नदी के किनारे बहुतायत में होने के कारण मिला है। अब, कालिंदी कौन-सी नदी है? तो कालिंदी यमुना का परंपरागत नाम है। जो इसे हिमालय के कालिंद पर्वत से निकलने के कारण मिला है। संस्कृत भाषा की यही विलक्षणता है कि शब्दों में कुछ वर्णों के भेद से समुच्चारित, लेकिन क्रमिक भिन्नार्थक शब्द एवं असंख्य नाम हमें मिल जाते हैं। बात तरबूज फल की करें तो यह भी अपने आप में विलक्षण फल है। गर्मी के मौसम में इससे उत्तम कोई फल हो ही नहीं सकता।

औरंगजेब के काल में दिल्ली में पेशे से चिकित्सक फ्रांसीसी यात्री बर्नियर आया था। उसने अपने यात्रा संस्मरण मे लिखा है, ‘‘मैंने दुनिया की अनेक नदियों के किनारे उगने वाले तरबूज खाए। यहां तक कि भारत में भी अनेक नदियों के किनारे वाले, चाहे वह दक्षिण की नदी हो या पश्चिम की। लेकिन जो मिठास, स्वाद दिल्ली में यमुना के किनारे उत्पन्न तरबूजों में है वह मुझे कहीं नहीं मिला। मैंने दिल्ली की धूल भरी गर्मी में प्रत्येक चौक-चौराहे पर बड़े-बड़े पौष्टिक तरबूजों को करीने से सजा हुआ पाया है।

जितना गुणकारी तरबूज होता है उतने ही गुणकारी इसके बीज होते हैं। तरबूज में बीज का समान वितरण भी इसी बात का सूचक है। तरबूज के बीजों का चबाकर सेवन किया जा सकता है या भूनकर भी खाया जा सकता है। तरबूज के बीज पोटैशियम, मैग्नीशियम, जिंक जैसे समृद्ध खनिजों का स्रोत होते हैं। तरबूज के बीज हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मस्तिष्क रोग एवं प्रजनन संबंधी रोगों में बेहद गुणकारी हैं। बीजों का रेशा आंतों को भी साफ रखता है। ऐसे में तरबूज के साथ इसके बीजों को भी चबाकर खाना चाहिए।

उस समय की दिल्ली का वर्णन करते हुए बर्नियर आगे लिखता है- ‘‘बादशाह मुसलमान है, लेकिन अधिकांश प्रजा हिंदू है, जो मांस भक्षण नहीं करती। मैं मांस भक्षण के लिए मुसलमान बादशाह द्वारा बसाए हुए एक नगर में गया, जहां अधिकांश लोग मुसलमान हैं। मैंने देखा वहां गंदगी के कारण बुरा हाल था। मांस से दुर्गंध आ रही थी। जैसा स्वच्छ मांस यूरोप में मिलता है, मुझे वैसा मांस नहीं मिला। ऐसे में मैंने मांस भक्षण का अपना संकल्प कुछ दिन के लिए त्याग दिया। मैंने केवल तरबूज का ही सेवन किया। मेरा स्वास्थ्य उत्तम हो गया। मेरी यात्रा से जनित दीर्घकालीन थकान छूमंतर हो गई।’’

तरबूज बेहद बलवर्धक एवं वात, पित्त, कफ नाशक फल है। मूत्र संबंधी, रक्त विकार, फैटी लीवर जैसे रोगों में यह रामबाण असर करता है। प्राकृतिक चिकित्सा में असाध्य पेट या चर्म रोगों से पीड़ित रोगियों को 21 दिन का तरबूज कल्प कराया जाता है, जिसमें सुबह, दोपहर, शाम केवल तरबूज खिलाया जाता है। सीमित मात्रा में नापतोल कर।

बेहद गुणकारी होता है यह तरबूज कल्प। जितना गुणकारी तरबूज होता है उतने ही गुणकारी इसके बीज होते हैं। तरबूज में बीज का समान वितरण भी इसी बात का सूचक है। तरबूज के बीजों का चबाकर सेवन किया जा सकता है या भूनकर भी खाया जा सकता है। तरबूज के बीज पोटैशियम, मैग्नीशियम, जिंक जैसे समृद्ध खनिजों का स्रोत होते हैं। तरबूज के बीज हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मस्तिष्क रोग एवं प्रजनन संबंधी रोगों में बेहद गुणकारी हैं। बीजों का रेशा आंतों को भी साफ रखता है। ऐसे में तरबूज के साथ इसके बीजों को भी चबाकर खाना चाहिए।

ऋतु चक्र में प्रकृति हमारे शरीर की जरूरत के हिसाब से भिन्न-भिन्न फल हमें देती रहती है। बस हमें उन्हें उपयोग में लेना आना चाहिए। हम ऐसा करेंगे तो शारीरिक व्याधियों और वैद्य-डॉक्टरों से बचे रहेंगे।

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