आज 28 जून है और आज ही के दिन एक वर्ष हो गया है उस घटना को जिसे कोई नहीं भूल सका है। 28 जून 2022, जब पूरा विश्व एक वीडियो से दहल उठा था, और वह वीडियो था एक जिंदा आदमी की हत्या का। उसी की दुकान में घुसकर उसे खंजर से जिबह करने का। और फिर यह बताने का कि वह ऐसा ही करेंगे। यह एक तालिबानी घटना थी, जिसने पूरे देश को चौंका दिया था और आज तक लोग उस घटना के सदमे से बाहर नहीं निकल पाए हैं।
28 जून 2022, उदयपुर का मालदास स्ट्रीट बाजार और तंग गलियों में बनी दर्जी कन्हैयालाल की दुकान। वह कपड़े सीने का काम करते थे। दिन भर लोगों से आबाद रहती थी गली। मगर 28 जून को वह गली जो बर्बाद हुई, आज तक सुनसान पड़ी है। उस दिन आखिर क्या हुआ था ऐसा? क्या हत्याओं के चलते ऐसे ही गली मोहल्ले छोड़ दिए जाते हैं? क्या बाजार यूं ही सुनसान हो जाते हैं?
नहीं! ऐसा नहीं है! कन्हैया लाल की हत्या के बाद बाजार इसलिए सूने हो गए क्योंकि विश्वास ही जैसे शायद उठ गया हो, कि दोपहर में आकर कोई गला उतार सकता है। इसने ग्राहक और दुकानदार के आपसी रिश्तों को तार-तार कर दिया। दैनिक भास्कर ने अपनी ग्राउंड रिपोर्टिंग में बताया कि कैसे बाजार सूने पड़े हुए हैं। कैसे रौनक ही चली गयी है।
कन्हैयालाल का दोष क्या था? कन्हैयालाल ने ऐसा क्या कर दिया था जो उनकी इस प्रकार हत्या हुई? क्या हुआ था ऐसा कि रियाज़ और गौस इस सीमा तक खफा हुए कि उनकी गर्दन काट दी? दरअसल उन दिनों भाजपा नेता नुपुर शर्मा की एक टिप्पणी को लेकर विवाद चल रहा था। हालांकि नुपुर शर्मा ने माफी मांग ली थी और उन्हें भाजपा ने भी निष्कासित कर दिया था। मगर फिर भी उनके विरुद्ध “सर तन से जुदा” के नारे लगे थे और उसी दौरान कुछ लोगों ने उनका समर्थन किया था। कन्हैया लाल के फोन से भी ऐसा ही कुछ हुआ था, जिसके विषय में कन्हैया लाल ने बार-बार यह कहा कि यह उनके बेटे ने किया है और उन्हें तो पता भी नहीं है। एक नहीं बल्कि दो-दो बार कथित शान्ति बैठक हुई और उनमें भी कन्हैया लाल ने यही कहा। इसी बीच उनके खिलाफ उनके ही पड़ोसी ने एफआईआर दर्ज करा दी थी। पुलिस ने उन्हें हिरासत में भी लिया। उन्होंने पुलिस से भी वही कहा, जो उन्होंने रियाज़ और गौस से कहा था। और फिर उन्हें कोर्ट में भी प्रस्तुत किया गया, जहां से उन्हें जमानत मिल गयी थी।
मगर जब वह घर पहुंचे तो उन्हें धमकियां मिलनी आरम्भ हो गईं। कन्हैया लाल ने अपने पड़ोसी नाजिम से भी कहा कि वह उसके बारे में नहीं जानते हैं। फिर उसी क्षेत्र के 7-8 लोगों के साथ एक मीटिंग रखी गयी, जिसमें खुलकर बात हुई और यह आश्वासन दिया गया कि अब उन्हें धमकी नहीं मिलेगी। मगर उन्हें धमकियां मिलती रहीं। इसे लेकर उन्होंने पुलिस से शिकायत की। पुलिस वालों के माध्यम से एक बार फिर समझौता हुआ और फिर से कन्हैयालाल को यह आश्वासन दिया गया कि कुछ नहीं होगा।
कन्हैयालाल निश्चिन्त थे और फिर रोज की तरह दुकान पर जाने लगे। मगर उन्हें नहीं पता था कि यह खोखले वादे हैं और उनके साथ वह होने वाला है, जो उन्होंने सोचा नहीं था। फिर 28 जून 2022 को रियाज़ और गौस एक बार फिर से उनकी दुकान पर आए! नाप लेने के बहाने उनकी हत्या की और गली में उनका गला रेत दिया।
हत्या का लाइव वीडियो भी इन हत्यारों ने यह कहते हुए साझा किया था कि जो भी उनके मजहब के बारे में ऐसे पोस्ट डालेगा, उनका यही अंजाम होगा। उस दिन कन्हैयालाल की ही नहीं बल्कि उस भरोसे की भी हत्या हुई थी, जिसके बहाने उन्हें आशान्वित किया गया था कि उनके साथ कुछ गलत नहीं होगा! क्या एक पूरी बिरादरी एक कन्हैयालाल की गर्दन के पीछे पड़ गयी थी या फिर और कुछ था? क्या यह उन दिनों खुद को मजहब का सबसे बड़ा सिपाही साबित करने की लड़ाई थी कि कौन कैसे किसे मारता है? यह दुर्भाग्य ही है कि कन्हैयालाल की हत्या जिस मानसिकता ने की, उसकी निंदा आज तक खुलकर नहीं होती है। और इसे साधारण क़ानून व्यवस्था का मामला बताकर कहीं न कहीं पल्ला झाड़ लिया जाता है।
आज जहां बाजार में गलियाँ सूनी हैं तो वहीं कन्हैयालाल के परिवार का एक प्रण भी प्रणम्य है। और वह प्रण है कि आरोपियों को फांसी मिलने के बाद ही कन्हैयालाल की अस्थियों का विसर्जन करेंगे। आरोपियों को फांसी न होने तक बाल न कटवाने और जूते न पहनने का प्रण!
कल एक कार्यक्रम में कन्हैयालाल के बेटे यश ने इस बात को दोहराया कि जब तक उनके पिता को न्याय नहीं मिलेगा, तब तक वह बाल नहीं कटवाएँगे!
यह भावुक करने वाला ही क्षण होता है कि जहाँ पर बेटा और परिवार इतनी बड़ी प्रतिज्ञा ले ले। यह प्रतिज्ञा अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि जब तक ऐसी इच्छा शक्ति रहेगी, तब तक न्याय की आस जीवित रहेगी।
कन्हैयालाल की हत्या के विषय में भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने भी ट्वीट करते हुए लिखा कि आप सबके सहयोग से परिवारसंभल तो गया, पर न्याय नहीं मिला है. कन्हैया लाल जी के परिवार का संकल्प है कि जब तक उनके हत्यारें आतंकियों को फाँसी नहीं मिलेगी तब तक अस्थि विसर्जन नहीं करेंगे। उनके बेटे ने नंगे पैर रहने का संकल्प भी किया हुआ है।”
कपिल मिश्रा ने पिछले वर्ष एक अभियान चलाकर जन सहयोग से उनकी पत्नी के खाते में एक करोड़ रूपए जमा किए थे। यह कृतज्ञ एवं स्तब्ध समाज की ओर से अपने ऐसे बंधु के प्रति श्रद्धांजलि थी, जिसका गला मात्र एक झूठी सनक के लिए काट लिया गया था।
आज जब कन्हैयालाल की इस जघन्य हत्या को एक वर्ष हो गया है, तब आवश्यकता है परिवार की पीड़ा, समाज की पीड़ा और समाज के आपसी विश्वास की पीड़ा के विमर्श को बनाने का, और उस असहिष्णुता के विषय में बात करने का जो “सर तन से जुदा” के नारे देते-देते अपनी सनक, अपनी जिद में परिवार को नष्ट कर जाती है, समाज को नष्ट कर जाती है और उस भरोसे को नष्ट कर जाती है, जो उनकी बिरादरी बार-बार बहुसंख्यक समाज को देती है।
वहीं इसी बीच इस घटना पर फिल्म बनाने की भी घोषणा हो चुकी है और 28 जून को ही उदयपुर का दौरा करेंगी फिल्म की टीम। यह आशा की जानी चाहिए, कि यह फिल्म उस जिद, उस सनक पर बात करे कि कैसे “सर तन से जुदा” करने की असहिष्णुता इस सीमा तक बढ़ जाती है कि सर वाकई कुछ लोग तन से जुदा कर ही देते हैं!
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