गत दिनों लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में दिव्य प्रेम सेवा मिशन न्यास द्वारा एक गोष्ठी आयोजित की गई। इसका विषय था- छत्रपति शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का वर्तमान परिस्थिति में युवाओं पर प्रभाव।
मां की प्रेरणा से राष्ट्र रक्षा का संकल्प लिया और देश का भविष्य बनाना अपना भविष्य बनाने से कहीं ज्यादा आवश्यक माना। उन्होंने कहा कि शिवाजी अपने बाल जीवन में ऐसे खेल खेलते थे जिससे देश में धर्म की स्थापना को बल मिलता था। शिवाजी का युद्ध कौशल बहुत अच्छा था और वे अपनी छोटी सेना से बड़ी-बड़ी सेनाओं को डराते थे।
गोष्ठी के मुख्य वक्ता और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्री सुनील आंबेकर ने कहा कि अगर छत्रपति शिवाजी महाराज नहीं होते तो क्या होता, इसकी कल्पना करनी चाहिए। उन्होंने वर्षों तक भारत को विदेशी आक्रांताओं से सुरक्षित रखा।
उन्होंने अपनी मां की प्रेरणा से राष्ट्र रक्षा का संकल्प लिया और देश का भविष्य बनाना अपना भविष्य बनाने से कहीं ज्यादा आवश्यक माना। उन्होंने कहा कि शिवाजी अपने बाल जीवन में ऐसे खेल खेलते थे जिससे देश में धर्म की स्थापना को बल मिलता था। शिवाजी का युद्ध कौशल बहुत अच्छा था और वे अपनी छोटी सेना से बड़ी-बड़ी सेनाओं को डराते थे।
लोगों की सलाह से शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया गया, ताकि उन्हें एक राजा के रूप में माना जाए। गोष्ठी की अध्यक्षता गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति राजेश सिंह ने की। मुख्य अतिथि थे उत्तर प्रदेश सरकार के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह।
भारतीय संस्कृति की प्राचीनता पर गोष्ठी
गत दिनों जून को कोलकाता में भारतीय संस्कृति संसद एवं भारतीय विद्या मंदिर के तत्वावधान में ‘भारतीय शास्त्रों के आधार पर भारत की प्राचीनता का विवेचन’ विषय पर एक गोष्ठी आयोजित हुई। वास्तव में यह गोष्ठी रूपा भाटी के अध्ययन को केंद्र में रखकर हुई। गोष्ठी में रूपा भाटी ने विभिन्न शास्त्रों के साक्ष्य देकर भारतीय इतिहास को 1,72,000 वर्ष से भी पूर्व का सिद्ध किया।
भाषा वैज्ञानिक, लोकस्मृति, भूतत्व तथा मिथक शास्त्रों के हवाले से श्रीमती भाटी ने कहा कि वेदों तथा उसके बाद के ग्रंथों में वर्णित खगोलीय दशाओं के अध्ययन को भौगोलिक साक्ष्यों के साथ मिलाकर देखने से पता चलता है कि भारतीय संस्कृति बहुत ही पुरानी है।
इस संबंध में उन्होंने सरस्वती नदी की ऐतिहासिकता तथा उसकी धारा के विलुप्त होने के परिप्रेक्ष्य में भारतीय संस्कृति की पुरातात्विकता को रेखांकित किया। गोष्ठी की अध्यक्षता की भक्ति वेदांत इंस्टीट्यूट, कोलकाता के अध्यक्ष भक्ति स्वरूप व्रजापति महाराज ने।
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