कन्वर्जन को लेकर हिंदू समाज में जागरूकता तो आई है, लेकिन यह सर्वव्यापी नहीं है। कांग्रेस और उसके जैसी सोच वाले दल एकमुश्त ‘सेकुलर’ वोटों के लिए हिंदू संस्कृति के विनाश के षड्यंत्रों को पोसते हैं। इनका फार्मूला है-हिंदू वोट बांटो और ‘अल्पसंख्यक’ वोट इकट्ठे करो
कर्नाटक में सत्ता में लौटते ही कांग्रेस ने पहला प्रहार कन्वर्जन रोकथाम कानून पर किया है। यानी जिन मिशनरियों के समर्थन से कुर्सी मिली है, उसके नमक का कर्ज चुकाया जा रहा है। आज देश के कई राज्यों में कठोर कन्वर्जन विरोधी कानून हैं, जिनमें लालच देकर या जबरन कन्वर्जन करने पर 3 से 10 वर्ष कैद और जुर्माने का प्रावधान है। संविधान व्यक्ति को स्वेच्छा से उपासना पद्धति अपनाने, बदलने का अधिकार देता है, लेकिन किसी को इसे बदलने के लिए छल-बल प्रयोग करने का अधिकार नहीं है। ओडिशा, मध्य प्रदेश, हिमाचल, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश में इसके लिए कानून है। गुजरात में कन्वर्जन से पहले प्रशासन को सूचित करना और कन्वर्ट होने वाले की इच्छा जरूरी है। छत्तीसगढ़ में भी जिला मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी अनिवार्य है।
कर्नाटक में 30 सितंबर, 2022 को धार्मिक स्वतंत्रता अधिकार अधिनियम बनाया गया था, जिसमें गलत बयान, कपटपूर्ण तरीके से या जबरन कन्वर्जन करने पर 3 से 5 वर्ष कैद व 25 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया था। पीड़ित के नाबालिग, महिला, अनुसूचित जाति या जनजाति का होने पर सजा 3 से 10 वर्ष और जुर्माना 50 हजार तक था। लेकिन इस कानून को नई बनी कांग्रेस सरकार ने रद्द करने का फैसला किया है।
हिंदू समाज का सुरक्षा घेरा हटाया
इन कानूनों के कितनी आवश्यकता है, इसके प्रमाण और आंकड़े हर तरफ से सामने आ रहे हैं। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में कन्वर्जन विरोधी कानून के तहत 2021 से 30 अप्रैल, 2023 तक 427 मामले दर्ज हुए और 833 गिरफ्तारियां हुई हैं। जबरन कन्वर्जन के 185 मामले सामने आए हैं। नाबालिगों के कन्वर्जन के 65 मामले दर्ज हुए हैं, जिनमें सर्वाधिक बरेली के हैं, जहां दिव्यांग बच्चों का कन्वर्जन कराने वाले गिरोह का खुलासा हुआ है।
उत्तराखंड के देहरादून में डोईवाला क्षेत्र के अरमान अंसारी को हिंदू लड़की पर इस्लाम कबूलने का दबाव बनाने के लिए गिरफ्तार किया गया। 17 जून को महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव में कंप्यूटर प्रशिक्षण और करियर काउंसिलिंग के नाम पर मुस्लिम बनाने की कोशिश उजागर हुई। 11 जून को महाराज सयाजी साइंस आर्ट्स एंड कॉमर्स कॉलेज में करियर काउंसिलिंग के लिए सैकड़ों छात्र-छात्राओं और एनसीसी कैडेट्स को बुलाया गया था। इनमें मुस्लिम नाममात्र के थे। आयोजन स्थल पर हर तरफ इस्लाम की तारीफ करते बैनर-पोस्टर लगे थे। ढेरों मौलाना कुरान की आयतों का पाठ कर रहे थे और इस्लाम को हिंदू दर्शन-परंपरा से ‘श्रेष्ठ’ बता रहे थे।
सिर्फजून में ही देश भर में कन्वर्जन के कई मामले आए हैं। मध्य प्रदेश के दमोह जिले के गंगा-जमुना विद्यालय में हिंदू बच्चियों को हिजाब पहनने पर मजबूर किया जा रहा था। स्कूल से मस्जिद में जाने के लिए गुप्त रास्ता भी बनाया गया था। स्कूल की दीवारों पर आयतें व शिक्षकों के लॉकर में पाठ्यक्रम से बाहर का इस्लामी साहित्य मिला। कई शिक्षिकाओं के इस्लाम कबूलने की बात भी सामने आई। दमोह के ही ईसाई शैक्षिक संस्थान ‘आधारशिला’ में हिंदू बच्ची के यौन शोषण का मामला सामने आया। राट्रीय अधिकार बाल संरक्षण आयोग जब जांच करने पहुंचा तो छात्रावास में रहने वाले हिंदू बच्चों के पास बाइबिल की प्रतियां मिलीं। पूछताछ में पता चला कि ब्रेनवॉश की गई बच्चियांअपने घर नहीं जाना चाहतीं।
देश में छोटे बच्चों, यहां तक कि दुधमुंहे बच्चों के कन्वर्जन के मामले भी सामने आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ के दुर्ग की उरला बस्ती में छोटी हिंदू बच्चियों का ब्रेनवाश कर ईसाई बनने के लिए फुसलातीं दो महिलाओं को मोहल्ले की महिलाओं ने पकड़ा तो बवाल हुआ। 17 जून को मध्य प्रदेश के अनूपपुर में जनजातीय लोगों, राहुल सिंह गोंड और चंद्रभान सिंह गोंड ने पुलिस से शिकायत कि जीवन प्रकाश नामक मिशनरी व्यक्ति ने उन्हें ईसाई बनने के लिए प्रतिमाह 10 हजार रुपये, परिवार का मुफ्त इलाज, बच्ची की मुफ्त पढ़ाई और शादियों का खर्चा देने का लालच दिया। साथ ही कहा कि ईसाई नहीं बनोगे तो परिवार पर तरह-तरह की परेशानियां आती रहेंगी। इसके बाद दोनों थाने पहुंचे तब मामला खुला। दुर्ग के ही मोहननगर थाना क्षेत्र में 18 जून को हिंदू बच्चियों को परीक्षा में पास होने के लिए यीशु प्रार्थना सिखाए जाने की बात सामने आई।
14 जून को उत्तराखंड के देहरादून में डोईवाला क्षेत्र के अरमान अंसारी को हिंदू लड़की पर इस्लाम कबूलने का दबाव बनाने के लिए गिरफ्तार किया गया। 17 जून को महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव में कंप्यूटर प्रशिक्षण और करियर काउंसिलिंग के नाम पर मुस्लिम बनाने की कोशिश उजागर हुई। 11 जून को महाराज सयाजी साइंस आर्ट्स एंड कॉमर्स कॉलेज में करियर काउंसिलिंग के लिए सैकड़ों छात्र-छात्राओं और एनसीसी कैडेट्स को बुलाया गया था। इनमें मुस्लिम नाममात्र के थे। आयोजन स्थल पर हर तरफ इस्लाम की तारीफ करते बैनर-पोस्टर लगे थे। ढेरों मौलाना कुरान की आयतों का पाठ कर रहे थे और इस्लाम को हिंदू दर्शन-परंपरा से ‘श्रेष्ठ’ बता रहे थे।
विरोध शुरू हुआ और पुलिस ने 15 आयोजकों के खिलाफ भादंसं की धारा 295,153अ, 298, 34 के तहत मामला दर्ज किया। कॉलेज के प्रिंसिपल को निलंबित कर दिया गया। 17 जून को महाराष्ट्र के ठाणे में सनसनीखेज मामला सामने आया। 12 जून को दो मुसलमानों ने 13 साल की बच्ची को बुर्का, आभूषण, कपड़े और कुछ पैसे दिए और साथ भागने को कहा। बच्ची के इनकार करने पर दोनों ने नकली रिवाल्वर दिखाकर उन्हें इस्लाम कबूलने के लिए धमकाया और छेड़छाड़ भी की। पुलिस ने दोनों आरोपियों को हिरासत में लेने की बात कही है।
राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस के मंदिर भ्रमण अभियान को कुछ मीडियाकर्मी कांग्रेस का ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ बता रहे हैं, पर वह हिंदुओं को बरगलाए रखने के एक दांव से अधिक कुछ नजर नहीं आता।
जून में ही दिल्ली के तुर्कमान गेट कन्वर्जन मामले में मोहम्मद कलीम की गिरफ्तारी से सामने आया कि कैसे व्हाट्सअप समूहों का इस्तेमाल कन्वर्जन के लिए हो रहा है। इसके पहले आनलाइन गेम के जरिए बच्चों को मुसलमान बनाने के षड्यंत्र का भंडाफोड़ हुआ था। इसे तीन चरणों में किया जाता था। पहला, बच्चों के साथ आनलाइन गेम खेलना, दूसरा मित्रता करके एक एप के जरिए उनसे बातचीत (चैट) करना और भरोसा जीतने के बाद तीसरे चरण में उन्हें इस्लाम की खूबियां गिनाकर मुसलमान होने के लिए फुसलाना।
मारीच नीति
कन्वर्जन को लेकर हिंदू समाज में जागरूकता तो आई है, लेकिन यह सर्वव्यापी नहीं है। कांग्रेस और उसके जैसी सोच वाले दलों द्वारा एकमुश्त ‘सेकुलर’ वोटों के लिए हिंदू संस्कृति के विनाश के षड्यंत्रों को पोसा जाता है। इसीलिए कांग्रेस के आजीवन ‘खलीफा’ राहुल गांधी अपने को हिंदू दिखाने के लिए कैमरा और मीडिया केंद्रित आयोजन करते हैं, लेकिन हिंदू हित के वास्तविक मुद्दों पर षड्यंत्रों का हिस्सा बनकर खड़े होते हैं।
राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस, आजकल जो मंदिर भ्रमण अभियान कर रही है, जिसे कुछ मीडियाकर्मियों द्वारा कांग्रेस का ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ कहा जा रहा है, वह हिंदुओं को बरगलाए रखने के एक दांव से अधिक कुछ नजर नहीं आता। अन्यथा चुनाव जीतने के तुरंत बाद कर्नाटक में कांग्रेस सरकार कन्वर्जन विरोधी कानून को रद्द करने का फैसला नहीं लेती। दरअसल, कांग्रेस का तथाकथित सॉफ्ट हिंदुत्व एक नया विमर्श गढ़ने का प्रयास है कि वास्तविक हिंदुत्व तिलक लगाना व भाषणों में (कांग्रेस के राजकुमार व राजकुमारी द्वारा) रामायण-महाभारत जिक्र करना है और हिंदू अस्तित्व का मुद्दा ‘हार्डलाइन’ हिंदुत्व है, जो सांप्रदायिक है, संविधान विरोधी है, आदि।
स्वाधीनता के बाद नेहरू और फिर नेहरूवाद की छाया में चली कांग्रेस ने खुद को बेधड़क इफ्तार पार्टी वाली पार्टी के रूप में गढ़ा। उसके लिए गोहत्या पर रोक की हिंदुओं की मांग नाजायज, कन्वर्जन पर प्रबुद्धजनों की चेतावनियां सांप्रदायिक, घटती हिंदू जनसंख्या के आंकड़े बेकार की बात, कश्मीर से केरल तक हिंदू उत्पीड़न ‘प्रोपेगेंडा’ और हर शहर के ‘संवेदनशील इलाकों’ से हिंदुओं का पलायन अदृष्टिगोचर रहा है, जबकि बांग्लादेशी घुसपैठियों में कांग्रेस के ‘शाही खानदान’ के भविष्य के पक्के वोटर देखे जाते रहे। ‘अल्पसंख्यक’ वोट पर लार टपकाती दूसरी सियासी पार्टियों ने भी इस रास्ते का अनुसरण किया।
हिंदू विरोधी तंत्र को समझकर हिंदू समाज को जमीनी स्तर पर जाग्रत करने की आवश्यकता है। कन्वर्जन विरोधी कानून हटाना सिर्फ कर्नाटक का मामला नहीं है, हिंदू समाज के भविष्य का प्रश्न है।
हिंदू विनाश का एजेंडा
संक्षेप में इसका फार्मूला है, हिंदू वोट बांटो और ‘अल्पसंख्यक’ वोट इकट्ठे करो। अब कांग्रेस और समूचा ‘सेकुलर’ इकोसिस्टम प्रतीकों की नई रणनीति बना रहा है। हिंदुत्व जागरण के दौर में उसने रोजा-इफ्तार वाले मीडिया फोटो आयोजनों से दूरी बनाई है और रामनामी चादर, तिलक, आरती, मंदिर पर्यटन को अपनी मीडिया नीति में जोड़ा है। इसके साथ हिंदू समाज में दरार डालने का काम तेज कर दिया है। इसलिए मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ बयान देते हैं, ‘‘जो आदिवासियों से (उन को) हिंदू लिखवाएगा उसे जेल में डाल देंगे।’’ राहुल गांधी ने पिछले आम चुनाव में शहडोल लोकसभा की एक चुनावी रैली में बयान दिया था, ‘‘नरेंद्र मोदी ने कानून बनाया है, जिसमें आदिवासी की जमीन छीनी जा सकेगी। गोली मारी जा सकेगी।’’
हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र नेता रोहित वेमुला की दुर्भाग्यपूर्ण आत्महत्या का मामला याद करें। वह एएसए नामक छात्र संगठन के लिए काम करता था। अंग्रेजी में लिखे सुसाइड नोट में उसने लिखा था, ‘‘मैं इस तरह का पत्र पहली बार लिख रहा हूं। मेरा पहला और अंतिम पत्र। शायद मैं गलत था। गलत था संसार को समझने में, प्यार, दर्द, जिंदगी और मौत को समझाने में। कोई जल्दी नहीं थी, पर मैं हमेशा जल्दी में था। कुछ लोगों के लिए जिंदगी अपने आप में एक अभिशाप होती है। मेरा जन्म ही मेरी एक घातक दुर्घटना है। मैं बचपन के अकेलेपन से कभी नहीं उबर सकता।
मैं अप्रशंसित (अनएप्रिशियेटेड चाइल्ड) बच्चा था। इस समय दुखी नहीं हूं, ‘हर्ट’ नहीं हूं। मैं बस खाली हूं। खुद से बेपरवाह। यह दयनीय है, इसलिए मैं यह (आत्महत्या) कर रहा हूं। मेरे जाने के बाद लोग मुझे स्वार्थी या कायर कहेंगे। मुझे उसकी परवाह नहीं है। मैं मृत्यु के बाद की कहानियों, आत्मा वगैरह में विश्वास नहीं करता। इतना जानता हूं कि मैं सितारों की यात्रा करूंगा, दूसरी दुनियाओं के बारे में जानूंगा। मेरी आत्महत्या के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है। किसी ने इसके लिए मुझे उकसाया नहीं है, न तो अपने शब्दों से, न ही अपने किसी काम से। यह मेरा फैसला है और मैं इसके लिए उत्तरदायी हूं।’’
हर वह संगठन जो हिंदू पहचान को मिटाने में लगा है, जो अपने कार्यक्रमों, यूट्यूब चैनलों और सोशल मीडिया अकाउंट से रात-दिन दुष्प्रचार कर रहा है कि ‘एससी, एसटी, ओबीसी हिंदू नहीं हैं। मुसलमान व दलित का डीएनए एक है, ऐसे लोगों व संगठनों को कांग्रेस व ऐसे अन्य दलों का समर्थन है। इसीलिए ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’, ‘भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी’ के नारों के बीच राहुल गांधी समर्थन देने जेएनयू पहुंच जाते हैं।
रोहित का पत्र मार्मिक है। ऐसे युवा जो अवसाद में हैं, जिंदगी के भावनात्मक उतार-चढ़ावों में उलझकर हताश हो रहे हैं, उनकी पीड़ा को पत्र का एक-एक शब्द व्यक्त कर रहा है। इसमें उन उपायों, सहायता की झलक भी है, जिसकी ऐसे युवकों-किशोरों को आवश्यकता है। किंतु इन बातों को दरकिनार कर, मानवता को भुलाकर, बेचारे रोहित को हिंदू विरोधी राजनीति का मोहरा बनाया गया। कांग्रेस और उसके जैसे कथित सेकुलर दल, कम्युनिस्ट लेखक आदि इसे हिंदू संगठनों और हिंदुत्व द्वारा की गई हत्या बताते रहे। आज भी रोहित पर लिखी गई इसी आशय की किताबें बाजार में बिक रही हैं। ब्लॉग व सोशल मीडिया पोस्ट लिखे जा रहे हैं।
ऊपर से नीचे तक साठगांठ
इसी रणनीति के तहत, हर वह संगठन जो हिंदू पहचान को मिटाने में लगा है, जो अपने कार्यक्रमों, यूट्यूब चैनलों और सोशल मीडिया अकाउंट से रात-दिन दुष्प्रचार कर रहा है कि ‘एससी, एसटी, ओबीसी हिंदू नहीं हैं। मुसलमान व दलित का डीएनए एक है, ऐसे लोगों व संगठनों को कांग्रेस व ऐसे अन्य दलों का समर्थन है। इसीलिए ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’, ‘भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी’ के नारों के बीच राहुल गांधी समर्थन देने जेएनयू पहुंच जाते हैं।
आम आदमी पार्टी, वामपंथी दल भी होड़ लगाकर वहां पहुंचने लगते हैं। फिर वामपंथी छात्र नेता कन्हैया कुमार लोकसभा चुनाव लड़ता है, हारता है और अंतत: कांग्रेस का ‘सम्मानित’ सदस्य बन जाता है। इस पूरे गठबंधन, हिंदू विरोधी तंत्र को समझकर हिंदू समाज को जमीनी स्तर पर जाग्रत करने की आवश्यकता है। कन्वर्जन विरोधी कानून हटाना सिर्फ कर्नाटक का मामला नहीं है, हिंदू समाज के भविष्य का प्रश्न है।
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