आपातकाल के दौरान सत्ता का क्रूर चेहरा सामने आया। सत्याग्रहियों को जेल में ठूंस दिया गया। कई तरह की यातनाएं दी गईं। गभर्वती महिलाओं तक को बेड़ियों में रखा गया। दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद प्रोफेसर ओमप्रकाश कोहली के साथ अपमानजनक व्यवहार किया गया। कैदियों को नाभि में कीड़े बांध दिए जाते थे। कैंडिल से भी जलाया गया। स्वतंत्र भारत में जनता को इस बर्बरता की उम्मीद नहीं थी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी बताते हैं कि सामान्यतः जो टॉर्चर हुआ, अधिकतर टॉर्चर पुलिस लॉकअप में हुआ वो स्वयंसेवकों पर ही हुआ। इसके दो कारण हैं। एक – भूमिगत काम में सक्रिय स्वयंसेवक अधिक थे, इसलिए वही पकड़े गए। दूसरा – उनको लगता था कि इनसे बहुत जल्दी हम बुलवाएंगे। उदाहरण के लिए, अंडरग्राउंड लिटरेचर छपता था, पूछते थे – कहां छपता है। तो स्वयंसेवक बोलता नहीं था। टॉर्चर करने के बाद भी स्वयंसेवक के मुंह से शब्द नहीं निकलते थे। इसलिए उनका अधिक टॉर्चर हुआ।
लोकतंत्र, प्रजातंत्र के अंतर्गत ही अपने को संघर्ष करना चाहिए। संविधानात्मक ढंग से ही करना चाहिए। बंदूक उठा कर क्रान्ति नहीं करनी है। शस्त्र उठाकर, संघर्ष करके आपातकाल का विरोध करना गलत है। ऐसा समिति का स्पष्ट अभिप्राय था। लोगों को हिंसा के मार्ग पर नहीं लाना, यह स्पष्ट निर्देशित था। सत्याग्रह यानि कैसे…तो किसी भी सड़क के चौराहे पर या किसी जगह पर, बस स्टैंड पर, रेलवे स्टेशन पर, जितनी संख्या में हो सके उतनी संख्या में लोग आना। आपातकाल के विरोध में नारे लगाना, अपनी डिमांड के नारे लगाना। पुलिस आएगी पकड़ेगी, लेकर जाएंगे। सत्याग्रह करना, और यथासंभव साहित्य पर्चे लोगों को देना, क्योंकि कोई और रास्ता नहीं था। इसलिए सत्याग्रह के लिए जाते समय जेब में, थैली में पर्चे रखो, सबको दो। इस आपातकाल को जनता ने स्वीकार नहीं किया है, यह लोकतंत्र के विरुद्ध है। लोकतंत्र का दमन हो गया है। इसलिए इसके विरुद्ध आवाज उठाना, समाज मरा नहीं है, ऐसा दिखाना, सत्याग्रह का यह बहुत बड़ा एक उद्देश्य था। जगह जगह पर लगभग 49 हजार से अधिक सत्याग्रही अरेस्ट हुए।
संघ ने सारे संघर्ष में, जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन में और बाद में आपातकाल के विरुद्ध संघर्ष में काम किया। इसलिए संघ का दमन करना, यह मुख्य बात होने के कारण अन्य 25 संगठन के साथ संघ को भी बैन कर दिया था। इसलिए संघ पर प्रतिबंध लगाना और संघ का दमन करना, यह सरकार के वरिष्ठों के, नेताओं के, प्रधानमंत्री का स्पष्ट उद्देश्य था। संघ का दमन करने के लिए स्वयंसेवकों की पुरानी-पुरानी सूची उनको मिली और कहीं किसी डायरी में मिल गयी या कार्यालय उन्होंने बंद करवाए। कार्यालय पर छापेमारी की, कार्यालय पर ताला लगाया, कार्यालय के अंदर जो सूची मिली…तो कार्यकर्ताओं की सूची, गुरु दक्षिणा की सूची तो ऐसी सूची पकड़-पकड़ कर उन घरों में गए। घर पर बैठे व्यक्ति को भी ले गए, उनको संघ की व्यवस्था पद्धति का लाभ मिला। संघ के कार्यकर्ता सरकारी या कॉलेज में, बैंक में नौकरी में हैं तो दबाव डालकर उनको वहां सस्पेंड किया, व्यापारियों पर दबाव बनाया।
आपातकाल में सक्रिय रहे स्वयंसेवक
बहुत सारे स्वयंसेवक नित्य की शाखा में नहीं थे। कई वर्ष पहले वो शाखा के नित्य के काम में थे। किसी न किसी व्यक्तिगत कारण से, घर की कुछ कठिनाई के कारण नित्य शाखा के काम में नहीं होंगे। हमारे लिए गर्व का विषय है कि बहुत बड़ी संख्या में ऐसे स्वयंसेवक आपातकाल में भागे नहीं, दूर नहीं गए, उल्टा सक्रिय हो गए। उन्होंने कहा – देखो, हम स्वयंसेवक हैं। पुलिस को पता नहीं है क्योंकि हमारे नाम अभी सूची में नहीं है, इसलिए हमारे घर का उपयोग करिए। हमारे घर में भूमिगत कार्यकर्ता रुकें, भोजन करें, क्योंकि हमारे घर पुलिस के राडार में नहीं है। ये कहने की हिम्मत स्वयंसेवकों ने की, उन्होंने अपनी तरफ से हर प्रकार का सहयोग किया। दूसरे संगठन, दूसरी पार्टी…के लिए भी स्वयंसेवकों ने किया। सर्वोदय के दो कार्यकर्ताओं के घर में कर्नाटक में जब परिस्थिति अच्छी नहीं थी, संघ के स्वयंसेवकों ने उनकी व्यवस्था की। संघर्ष के लिए जो निधि चाहिए, वो भी स्वयंसेवकों ने समाज से इकट्ठा की।
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