25 जून 1975 की तारीख भारत के इतिहास में क्रूरता और अमानवीयता और लोकतंत्र की हत्या के लिए जानी जाती है। संचार के सारे साधन ध्वस्त कर दिए गए थे। मीसा के तहत जेल में डाला जा रहा था। क्या गुनाह किया है, ये भी बताने की आवश्यकता नहीं थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने बातचीत में आपातकाल के समय की चुनौतियों और उनसे कैसे निपटा गया इस पर विस्तार से चर्चा की।
दत्तात्रेय होसबाले जी बताते हैं कि आपातकाल के समय कुछ लोगों को डीआईआर और कुछ लोग मीसा एक्ट, ऐसे दो कानूनों में गिरफ्तार किया गया। डिफेंस ऑफ इंडिया रूल में कोर्ट में जाने का और वहां तर्क कर और शायद छूट भी जाने का प्रावधान था। मीसा में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था। आपको चार्ज बताने की जरूरत भी नहीं। क्या गुनाह है और कोर्ट में जाने का तो कोई अधिकार नहीं था। सब प्रकार के फंडामेंटल राइट्स निलंबित होने के कारण मीसा में रहने वाले व्यक्ति को अंदर उनका क्या हुआ, घर के लोगों को भी पता चलना चाहिए.. ऐसा भी कोई प्रावधान नहीं था।
तब न फोन कर सकते थे, संपर्क भी नहीं कर सकते थे। इसलिए जनता के साथ, कार्यकर्ता के साथ संपर्क रखना, इसके लिए संघ और संघ प्रेरित संगठनों का जाल, हमारी घर-घर में संपर्क की पद्धति बहुत काम में आयी। घरेलू संपर्क की पद्धति दशकों से संघ और संघ प्रेरित संगठनों में है, उसका लाभ, आंदोलन में भी हुआ। मेरे पास बहुत ऐसे उदाहरण हैं। जैसे रवीन्द्र वर्मा जी बेंगलुरु आए थे तो उनको कहां रखना और पुलिस को पता ना चले, ऐसे उनको रेलवे स्टेशन से लेकर आना और सुरक्षित वापिस भेजना। ये काम अत्यंत गूढ़ता से हम लोग कर सके, उसका कारण है संघ की कार्यपद्धति के अंदर घर का संपर्क।
किसका क्या हुआ, कोई पता नहीं चलता था
क्या चल रहा है लोगों को ये पता नहीं चलता था, क्योंकि समाचार पत्र सेंसर के कारण केवल सरकार की अनुमति से छपने वाले समाचार छोड़कर बाकी कोई भी समाचार नहीं छापता था। कौन, कहां अरेस्ट हो गया, किसका क्या हुआ, कोई पता नहीं चलता था। तो इसलिए एक भूमिगत साहित्य छापने को पत्रकारिता का एक जाल, अपना नेटवर्क बनाने की बहुत सफल योजना बनी और उसका क्रियान्वयन हुआ। ये दूसरी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है, अपने देश के इमरजेंसी के भूमिगत संघर्ष की। हो. वे. शेषार्दी जी ने दक्षिण भारत के चार राज्यों में साहित्य प्रकाशन का नेतृत्व किया। उनका केंद्र बेंगलुरु था। जगह-जगह पर प्रेस ढूंढकर रात को प्रेस में काम करना और प्रेस में काम करना तो आवाज नहीं आनी चाहिए। बहुत सावधानी रखनी पड़ती थी। दो पन्ने के, चार पन्ने के पत्र पत्रिकाएं छपवाना, उसमें न्यूज़ आइटम, देश के अन्यान्य भागों में क्या चल रहा है, इसके बारे में जानकारी इकट्ठा करना। ये जानकारी इकठ्ठा कैसे करना? भूमिगत काम करने वाले अलग-अलग लोगों से, प्रवास करने वाले लोगों से लिखवाकर लाते थे। कुछ कार्यकर्ता इसके लिए ही प्रवास करते थे। वो एक दृष्टि से पत्रकार जैसे ही अंडरग्राऊंड कार्य करते थे। उदाहरण के लिए कर्नाटक के चार जगह पर या महाराष्ट्र में अलग-अलग नाम से अंडरग्राउंड पत्रिकाएं छपती थीं। मराठी में, कन्नड़ में, तेलुगू में, हिंदी में.. उस-उस राज्य में नाम भी अलग-अलग थे। दो प्रकार से छपती थी, एक प्रिंटिंग प्रेस, दूसरा साइक्लोस्टाइल करना। रातों-रात काम करते थे। रात भर काम करके एक-एक हजार प्रति निकालना। उसको सुबह साढ़े तीन-चार बजे से पांच बजे के बीच जाना और सड़क पर, घर के गेट के पास डाल देना आदि..आदि।
कई लोगों की आजीविका पर असर हुआ
जिन लोगों को अरेस्ट किया या पुलिस स्टेशन में, जेल में जिनके ऊपर अमानवीय दमन और हिंसा हुई या जेल में भी रहे। या जेल में रहे हिंसा भले ही नहीं हो, जेल में रहने के कारण कई लोगों की आजीविका पर असर हुआ और उनके घरों में, परिवारों में कमाई करने वाला नहीं है और वो जेल में हैं तो इस कारण जो परिस्थिति बच्चों के लिए, परिवार के लिए थी, उसको संभालने का और उन लोगों के योगक्षेम की व्यवस्था करने के लिए, ये बहुत बड़ा काम था।
सत्याग्रह की योजना बनी
सबसे महत्वपूर्ण संघर्ष करते हुए आपातकाल के विरुद्ध लोगों की आवाज खड़ा करने के लिए, सत्याग्रह करने के लिए जो योजना बनी उसको सफल बनाना।
टिप्पणियाँ