आपातकाल लोकतंत्र में एक काले अध्याय के रूप में हमेशा दर्ज रहेगा। कुर्सी के लिए सत्ता ने लोकतंत्र को कैद कर दिया। जनता को इतनी यातना दी गई, जिसकी कल्पना भी स्वतंत्र भारत में नहीं की जा सकती थी। गर्भवती महिला को जंजीरों से जकड़ा गया, प्रसव के दौरान भी वह बेड़ियों में जकड़ी रही। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने एक विशेष बातचीत में आपातकाल के दौर की चर्चा की। उन्होंने बताया कि कैसे जनता के साथ क्रूरता और अमानवीयता की गई।
क्रूरता और अमानवीयता बहुत व्यापक प्रमाण में हुई
दत्तात्रेय जी कहते हैं कि कई बार लगता है कि उस क्रूरता को भी याद करना क्या? संघ के तृतीय पूजनीय सरसंघचालक बालासाहब देवरस जी ने आपातकाल के पश्चात एक बहुत महत्वपूर्ण वक्तव्य दिया था। अपने सार्वजनिक भाषण में कहा था – फॉरगिव एंड फॉरगेट। जो हो गया, हो गया। उसको भूल जाओ, उसको क्षमा करो। लेकिन देश के इतिहास में, जिस एक काले अध्याय के दौरान घोर दमन और अत्याचार हुआ वो इतिहास के पन्नों पर है। कई पुस्तकें इस विषय पर आई हैं। व्यक्तिगत तौर पर भी लोगों ने लिखा है और संगठनों ने भी साहित्य प्रकाशित किया है। इसलिए, नहीं भी बताएंगे तो भी वो है ही। क्रूरता और अमानवीयता बहुत व्यापक प्रमाण में हुई। अपने देश में पुलिस-प्रशासन की व्यवस्था ऐसी बर्बरता दिखा सकती है, इसका एक अनुभव आपातकाल में हुआ। दोनों हाथ बांधकर ऊपर से खींचना और उस समय उनकी पीठ पर उनके पैर पर लाठी से मारना।
तीन प्रकार से दी जाती थी यातना
उस समय तीन प्रकार की क्रूरता हुई। एक जो अरेस्ट हुए उनके साथ लॉकअप में, पुलिस स्टेशन में क्रूरता हुई, उनको जेल भेजने से पहले। उस समय आंध्रप्रदेश (आज तेलंगाना) के एक कार्यकर्ता को कैंडल से शरीर पर लगभग सौ जगह जलाया गया, जबरन उनके मुंह से कुछ कहलवाने के लिए। किसी को नारियल के अंदर कीड़े रखकर नाभि के ऊपर बांध दिया गया। या पुलिस की भाषा में ऐरोप्लेन कहते हैं, गोली कहते हैं, चपाती कहते हैं, ये सब हिंसा के अलग-अलग प्रकार रहे। सीधा बिठाकर उसके ऊपर रोलिंग करना, इलेक्ट्रिक शॉक दो या पिन अंदर घुसा दो। इस प्रकार के भयानक अत्याचार किए।
लॉकअप में तीन दिन, चार दिन अमानवीय अत्याचार सहन जेल में आए लोगों का जेल में आने के बाद 10 दिन, 15 दिन तक उनकी मालिश करना, ये सब मैंने भी किया है। इन अमानवीय अत्याचारों से कुछ लोग जीवनभर अपंग हो गए, कुछ लोगों को जीवनभर किसी न किसी प्रकार की व्याधि हो गई। ऐसा हमारी आंखों के सामने हुआ। जिनके साथ ऐसा हुआ, उनके मुंह से किसी भी प्रकार के कोई अपशब्द नहीं आए, इस आंदोलन से दूर नहीं गए। या उनके घर के लोगों ने संगठन को नहीं छोड़ा। कर्नाटक में पुलिस स्टेशन के अंदर राजू नाम के एक व्यक्ति की हत्या हो गई। ऐसे लॉकअप में कई प्रकार की हिंसा देश भर में बहुत जगह पर हुई।
बेंगलुरु में गायित्री के साथ अमानवीय व्यवहार
ओमप्रकाश कोहली जी दिल्ली में थे, जो राज्य सभा सदस्य रहे, विद्यार्थी परिषद के अखिल भारतीय अध्यक्ष भी रहे, सब जानते हैं कि ओमप्रकाश कोहली जी चलने में थोड़ा- सा दिव्यांग थे। दिल्ली की तिहाड़ जेल में उनको पुलिस ने लात मारी थी। लॉकअप में उनके साथ अत्यंत अपमान का व्यवहार किया। वो कॉलेज के प्रोफेसर थे। खड़े होना मुश्किल था। ऐसे व्यक्ति के साथ ऐसा किया। ऐसे देश भर में हुआ है। बेंगलुरु में गायित्री करके एक महिला ने आपातकाल के खिलाफ सत्याग्रह किया। सत्याग्रह करने के बाद उनको अरेस्ट किया। जेल में ले गए। वो गर्भवती थीं, वो सत्याग्रह करके आई थीं….लॉकअप में लेकर जाने के बाद उन्हें प्रसव वेदना हुई तो हॉस्पिटल लेकर गए। हॉस्पिटल में उनको पलंग पर सुलाया था और उनकी डिलीवरी के समय उनके दोनों पैरों को जंजीर से बांधा हुआ था। उन बातों को आज याद करने से अपने मन में अनावश्यक यातना होती है. गर्भवती महिला कहीं भाग जाएगी, ऐसा तो नहीं है और डिलीवरी हो गई तो उनको बांध कर रखने की क्या जरूरत थी?
उत्तर भारत में व्यापक प्रमाण में नसबंदी हुई, पकड़-पकड़ कर की। उस समय की सरकार को, प्रशासन को चलाने वाली चौकड़ी थी। उसमें जो भी लोग थे, उन्होंने नसबंदी के कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए, देश के अंदर जनसंख्या नियंत्रण करने के लिए, जिस प्रकार आपातकाल का दुरुपयोग किया…वह घोर अमानवीय और मानवाधिकार के विरुद्ध के इतिहास के पन्नों पर हमेशा एक काला धब्बा है। जेल में क्रिमिनल कैदी भी रहते हैं, उन लोगों को राजनीतिक कैदियों के खिलाफ उकसा कर झगड़ा करवा दिया, उनसे मारपीट करवाई। जेल के अंदर ऐसा जानबूझकर करवाने का प्रयत्न किया। झगड़े हो गए, बल्लारी जेल में लगभग 25 लोगों की हाथ की, पैर की हड्डी टूट गई। महीनों तक उनको अस्पताल में रखना पड़ा।
स्वयंसेवकों पर अधिक बर्बरता
सामान्यतः जो टॉर्चर हुआ, अधिकतर टॉर्चर पुलिस लॉकअप में हुआ वो स्वयंसेवकों पर ही हुआ। इसके दो कारण हैं। एक – भूमिगत काम में सक्रिय स्वयंसेवक अधिक थे, इसलिए वही पकड़े गए। दूसरा – उनको लगता था कि इनसे बहुत जल्दी हम बुलवाएंगे। उदाहरण के लिए, अंडरग्राउंड लिटरेचर छपता था, पूछते थे – कहां छपता है। तो स्वयंसेवक बोलता नहीं था। टॉर्चर करने के बाद भी स्वयंसेवक के मुंह से शब्द नहीं निकलते थे। इसलिए उनका अधिक टॉर्चर हुआ।
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