आपातकाल की जब घोषणा हुई तो मैं संघ शिक्षा वर्ग में था। उम्र यही कोई 17 साल की थी। वर्ग को रोकना पड़ा और सभी को घर जाने का आदेश हुआ।
आपातकाल में तानाशाही रवैये के विरोध में संघ की ओर से जेल भरो आंदोलन का निर्देश दिया गया था। मैं और कुछ कार्यकर्ता भूमिगत होकर काम कर रहे थे।
पुलिस वालों ने पहले नग्न किया और खूब मारा। जब जी नहीं भरा तो उल्टा लटका कर मारा। यहां मुझे हर तरह की यातनाएं दी गईं। सुबह तक मेरी हालत बहुत खराब हो गई थी। अंतत: हमें तिहाड़ जेल भेज दिया गया। कुछ लोगों को तो इतना पीटा गया कि वे 15 दिन तक घायल रहे।
हमारी जिम्मेदारी थी इंदिरा गांधी के विरोध में पोस्टर बांटना। साइकिल से घर-घर, दरवाजे-दरवाजे पोस्टर बांटते थे। लेकिन एक दिन लालचंद नामक कांग्रेसी ने हमें देख लिया और पुलिस को सूचना देकर गिरफ्तार करा दिया। जिस समय मुझे गिरफ्तार किया गया था, उस समय रात के दस बजे थे। उस समय से मेरी और मेरे साथियों की चार बजे सुबह तक जमकर पिटाई की गई।
पुलिस वालों ने पहले नग्न किया और खूब मारा। जब जी नहीं भरा तो उल्टा लटका कर मारा। यहां मुझे हर तरह की यातनाएं दी गईं। सुबह तक मेरी हालत बहुत खराब हो गई थी।
अंतत: हमें तिहाड़ जेल भेज दिया गया। कुछ लोगों को तो इतना पीटा गया कि वे 15 दिन तक घायल रहे। उस समय माहौल ऐसा था कि इंदिरा गांधी के विरोध में कोई कुछ बोल ही नहीं सकता था।
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