मैं उन दिनों लगभग 17 साल का था। चारों तरफ एक ही शोर था, वह था आपातकाल का। पुलिस मुझे और मेरे बड़े भाई को उठाकर ले गई।
पुलिस का जी नहीं भरा तो मेरे पिताजी को उठाकर थाने ले गए। बाद में डरा-धमकाकर और पैसे लेकर उन्हें घर जाने दिया। लेकिन हम जेल में रहे। पुलिस हमें असहनीय यातनाएं देती थी। उनसे कुछ भी कहने-सुनने से कोई फर्क नहीं पड़ता था।
हमारे कई साथियों को पुलिस ने इतना पीटा था कि उनके शरीर पर गहरे निशान तक पड़ गए थे।अनेक लोगों को बुरी तरह से पीटा गया था। उस समय का सबसे बड़ा अत्याचार यही था कि यदि कोई कांग्रेसी पुलिस में जाकर कह दे कि यह व्यक्ति कांग्रेस विरोधी है, बस पुलिस उसे घर से उठाकर जेल में ठूंस देती थी।
जब हम उनसे कहते थे कि हम लोगों ने क्या गलत किया है जो हमें जेलों में ठूंस रहे हो, तो उनका एक ही उत्तर होता था कि ऊपर से आदेश है ऐसा करने को। हमारे कई साथियों को पुलिस ने इतना पीटा था कि उनके शरीर पर गहरे निशान तक पड़ गए थे।
अनेक लोगों को बुरी तरह से पीटा गया था। उस समय का सबसे बड़ा अत्याचार यही था कि यदि कोई कांग्रेसी पुलिस में जाकर कह दे कि यह व्यक्ति कांग्रेस विरोधी है, बस पुलिस उसे घर से उठाकर जेल में ठूंस देती थी।
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