जब आपातकाल लगा तो मैं दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.कॉम कर रहा था। तत्कालीन सरकार ने संघ पर भी प्रतिबंध लगा दिया। ऐसे में चुन-चुनकर संघ विचारधारा के लोगों को गिरफ्तार किया जाने लगा। जो जहां मिलता पुलिस उनकी वहीं धरपकड़ करती। कांग्रेसी उन दिनों मुखबिरी के काम में लगे थे। वे पुलिस की आंख-कान थे।
मैं और मेरे कुछ साथी आपातकाल के विरोध में दिल्ली में एक जगह पर्चे बांट रहे थे तो पुलिस ने हम लोगों को गिरफ्तार कर लिया। हमारे घर की छत पर एक कमरा था, जिसमें हमने छपाई मशीन आदि लगा रखी थी। गिरफ्तारी से पूर्व रात में यही काम होता था। मुझे भी पुलिस ने गिरफ्तार किया।
संघ के कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां इनकी ही सूचनाओं पर हो जाती थीं। मैं और मेरे कुछ साथी आपातकाल के विरोध में दिल्ली में एक जगह पर्चे बांट रहे थे तो पुलिस ने हम लोगों को गिरफ्तार कर लिया। हमारे घर की छत पर एक कमरा था, जिसमें हमने छपाई मशीन आदि लगा रखी थी। गिरफ्तारी से पूर्व रात में यही काम होता था। मुझे भी पुलिस ने गिरफ्तार किया।
मैं पढ़ने में ठीक था, लेकिन जेल में रहने के बाद मेरी पढ़ाई पर फर्क पड़ा और मैं थर्ड डिवीजन में पास हुआ। फिर तो कहीं प्रवेश ही नहीं मिला। जो पढ़ना चाहता था और जीवन में करना चाहता था वह नहीं कर पाया। कांग्रेसी जुल्म ने मेरा जीवन ही तितर-बितर कर दिया।
टिप्पणियाँ