आपातकाल में मुझे सत्याग्रह करते हुए सदर बाजार से गिरफ्तार किया गया। इस दौरान पुलिस का रवैया बेहद डरावना था। सत्ता के दबाव में उसका जो मन आ रहा था, वह कर रही थी।
कांग्रेस का विरोध पाप जैसा हो गया था। देखते ही जेलों में ठूंस दिया जाता था। मजाल थी कोई एक शब्द भी कांग्रेस या इंदिरा के खिलाफ बोल दे।
आज की पीढ़ी तो कल्पना तक नहीं कर सकती उस दर्द की, जो हम सभी ने सहा है। जब हम जेल से छूटकर बाहर आये तो लोग हमसे बात तक करना पसंद नहीं करते थे। पड़ोसी तक दूर होने लगे थे।
यह वातावरण बनाकर रखा गया था। आज की पीढ़ी तो कल्पना तक नहीं कर सकती उस दर्द की, जो हम सभी ने सहा है। जब हम जेल से छूटकर बाहर आये तो लोग हमसे बात तक करना पसंद नहीं करते थे। पड़ोसी तक दूर होने लगे थे।
वे ऐसे देखते थे कि जैसे हम कोई बहुत बड़े अपराधी हों। इन लोगों को डर था कि कहीं उन्हें भी इसकी संगति में गिरफ्तार ना कर लिया जाए।
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