सदर बजार स्थित दिल्ली के 34 लोगों का समूह था। हम सभी सत्याग्रह करके जेल गए। उस समय कोई अदालत नहीं थी। जो पुलिस ने कह दिया वह ठीक और न्यायालय भी उसे मानकर सभी को जेल भेजता था। उस समय लगभग 18 महीने मैं घर से बाहर ही रहा।
आपातकाल के समय मेरी आयु 24 साल थी। मैं संघ कार्यालय में रुका हुआ था, लेकिन अचानक से छापा पड़ गया, क्योंकि आपातकाल की घोषणा हो चुकी थी। चारों तरफ भय का माहौल था। तानाशाही चरम पर थी।
सदर बजार स्थित दिल्ली के 34 लोगों का समूह था। हम सभी सत्याग्रह करके जेल गए। उस समय कोई अदालत नहीं थी। जो पुलिस ने कह दिया वह ठीक और न्यायालय भी उसे मानकर सभी को जेल भेजता था। उस समय लगभग 18 महीने मैं घर से बाहर ही रहा।
मेरे सभी साथी जेल में हों, और मैं बाहर, ऐसा नहीं चलेगा। जेल में कई साथियों को बर्फ पर नग्न करके लिटा दिया गया और उन्हें इतना मारा गया कि उनके शरीर से चमड़ी तक उधड़ गई। कांग्रेस सरकार ने हम भारतीयों पर नाजियों जैसे अत्याचार किये। जिसको मर्जी जेल में डाल दिया। किसी कांग्रेस कार्यकर्ता ने जिस पर भी उंगली उठा दी, फौरन पुलिस उसे जेल में ठूंस देती थी।
मेरी नौकरी 5 मार्च, 1975 को लगी थी, लेकिन मैंने उसे छोड़कर सत्याग्रह आंदोलन करके जेल जाना पसंद किया। पिताजी ने कहा कि चार साल बाद नौकरी लगी है, देख लेना क्या करना है। पर मैंने एक ना सुनी।
मैंने कहा कि अब जो कुछ भी होगा, देखा जाएगा। पर मेरे सभी साथी जेल में हों, और मैं बाहर, ऐसा नहीं चलेगा। जेल में कई साथियों को बर्फ पर नग्न करके लिटा दिया गया और उन्हें इतना मारा गया कि उनके शरीर से चमड़ी तक उधड़ गई।
कांग्रेस सरकार ने हम भारतीयों पर नाजियों जैसे अत्याचार किये। जिसको मर्जी जेल में डाल दिया। किसी कांग्रेस कार्यकर्ता ने जिस पर भी उंगली उठा दी, फौरन पुलिस उसे जेल में ठूंस देती थी।
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