25 जून को ही आपातकाल लगा दिया गया। इसके चलते हम सभी को 26 जून को अपनी-अपनी जगह भेज दिया गया। हमें उसी दौरान पता चला कि देश में आपातकाल लगा दिया गया है।
आपातकाल के दौरान मेरी उम्र 16 साल की थी। आपातकाल लगने से पूर्व मैं फिरोजाबाद में संघ शिक्षा वर्ग में था। वर्ग का समापन 28 जून को था लेकिन 25 जून को ही आपातकाल लगा दिया गया। इसके चलते हम सभी को 26 जून को अपनी-अपनी जगह भेज दिया गया। हमें उसी दौरान पता चला कि देश में आपातकाल लगा दिया गया है।
एक दिन एक संघ अधिकारी ने मुझे किसी को कुछ साहित्य देने के लिए मेरठ भेजा था। इस दौरान बस में जांच हो गयी तो पुलिस ने मेरे पास जो साहित्य था, उसको जब्त कर लिया। इसके बाद पुलिस मुझे लालकुर्सी थाने लेकर गई। हाड़ कंपाने वाली ठंड थी। लेकिन मुझसे रातभर पूछताछ होती रही। उनका एक ही सवाल था कि ज्योति जी कौन हैं। वे कहां हैं? उस समय ज्योति जी विभाग प्रचारक थे। पूछा गया कि साहित्य कहां से लाया? इस तरह रातभर मुझे यातनाएं दी जाती रहीं,
इस खबर के बाद हम लोग भूमिगत हो गये और आंदोलन से जुड़े रहे। उस समय मैं मुजफ्फरनगर के डीएबी कॉलेज में बीएसी प्रथम वर्ष का छात्र था। एक दिन एक संघ अधिकारी ने मुझे किसी को कुछ साहित्य देने के लिए मेरठ भेजा था। इस दौरान बस में जांच हो गयी तो पुलिस ने मेरे पास जो साहित्य था, उसको जब्त कर लिया। इसके बाद पुलिस मुझे लालकुर्सी थाने लेकर गई।
हाड़ कंपाने वाली ठंड थी। लेकिन मुझसे रातभर पूछताछ होती रही। उनका एक ही सवाल था कि ज्योति जी कौन हैं। वे कहां हैं? उस समय ज्योति जी विभाग प्रचारक थे। पूछा गया कि साहित्य कहां से लाया? इस तरह रातभर मुझे यातनाएं दी जाती रहीं, लेकिन वे मुझसे जो उगलवाना चाहते थे, वह नहीं उगलवा सके। मैंने भूमिगत होकर भी आपातकाल के दौरान काम किया।
मुझे याद है कि इस दौरान कई साथी थे, जिन्हें पुलिस ने बहुत ही प्रताड़ित किया था। कई साथियों के नाखून तक उखाड़ दिए गए। आज जब इसे सोचता हूं तो सिहर उठता हूं। लोकतंत्र का गला कैसे घोंटा जाता है, उस मंजर को देखकर याद आता है।
टिप्पणियाँ