प्रेस कार्यालय में एक पुलिस अधिकारी आकर जम गया, उसे दिखाए बिना कोई भी समाचार नहीं छप सका। यह सेंसरशिप थी। मेरे मन में गुस्सा था, क्योंकि सभी प्रकार की स्वतंत्रता एकदम खत्म कर दी गई थी।
आपातकाल के समय मैं विद्यार्थी परिषद का कार्यकर्ता था। उस समय मेरी उम्र 24 वर्ष थी। पिताजी पत्रकार थे, इसलिए 25 जून,1975 को रात्रि सेवा में थे। 26 जून को सुबह जब घर आए तो उन्होंने बताया कि प्रेस कार्यालय में एक पुलिस अधिकारी आकर जम गया, उसे दिखाए बिना कोई भी समाचार नहीं छप सका। यह सेंसरशिप थी। मेरे मन में गुस्सा था, क्योंकि सभी प्रकार की स्वतंत्रता एकदम खत्म कर दी गई थी।
11 दिसंबर, 1975 को कॉलेज में सत्याग्रह किया। हमारे साथ उस समय बड़ी संख्या में छात्र जेल में गए। पहले हमें तीन महीने की सजा हुई, जिसमें आम अपराधियों के साथ रखा गया। बाद में मीसा लगाया तो जेल में आ गए। लोकतंत्र के लिए यह काला अध्याय था।
अभिव्यक्ति, संगठन, कार्यक्रमों, लिखने, बोलने इत्यादि सभी चीजों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। संघ और भारतीय जनसंघ के छोटे-छोटे आंदोलन शुरू हुए तो विद्यार्थी परिषद के बैनर तले 11 दिसंबर, 1975 को कॉलेज में सत्याग्रह किया। हमारे साथ उस समय बड़ी संख्या में छात्र जेल में गए। पहले हमें तीन महीने की सजा हुई, जिसमें आम अपराधियों के साथ रखा गया। बाद में मीसा लगाया तो जेल में आ गए। लोकतंत्र के लिए यह काला अध्याय था।
दुष्टता की पराकाष्ठा ही कहेंगे कि मुझे हृदय में अचानक कुछ परेशानी हुई, जिसका आपरेशन होना था। लेकिन आपरेशन के लिए किसी निजी अस्पताल में जाने की अनुमति नहीं दी गई। खैर, किसी तरह आपरेशन हुआ। बाद में डॉक्टर ने कहा कि यहां पर रखना ठीक नहीं, क्योंकि यहां संक्रमण होने का डर है, घर जाओ। परंतु घर जाने की अनुमति नहीं थी। उसी हालत में जेल में वापस आया। ऐसी अनगिनत तकलीफदेह कहानियां हैं। आपातकाल में लोगों को बहुत यातना दी गई।
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