गीता प्रेस को बदनाम करने की कोशिश
May 9, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

गीता प्रेस को बदनाम करने की कोशिश

गीता प्रेस को गांधी शांति सम्मान मिलने पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सवाल उठाए हैं। गीता प्रेस को घेरने की कोशिश समय-समय पर की जाती रही है। कभी झूठी अफवाह फैलाकर तो कभी गलत तथ्य पेश करके। गीता प्रेस के खिलाफ की जाने वाली साजिशों का पाञ्चजन्य ने हमेशा पर्दाफाश किया है। पढ़ें डॉ. संतोष कुमार तिवारी जी का यह लेख, जोकि वर्ष 2017 में पाञ्चजन्य में प्रकाशित हुआ था। यह लेख आर्काइव से लिया गया है।

by डॉ. संतोष कुमार तिवारी
Jun 20, 2023, 08:10 am IST
in भारत
गीता प्रेस

गीता प्रेस

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

गीता प्रेस, गोरखपुर आध्यात्मिक भारत की रीढ़ है। भारतीय चेतना का मेरुदंड है। दुर्भाग्य से कुछ अंग्रेजी पुस्तकों के माध्यम से इस मेरुदंड पर प्रहार करने का प्रयास हुआ है। इस लेख में जिन दो मुख्य बिंदुओं पर विचार किया गया है वे हैं-

1. क्या गीता प्रेस के संस्थापक ब्रह्मलीन श्री जय दयाल गोयंदका जी (1885-1965) और कल्याण के संपादक ब्रह्मलीन श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (1892-1971) को गांधीजी की हत्या के बाद गिरफ्तार किया गया था?
2. क्या महात्मा गांधी की मृत्यु के बाद कल्याण के अंकों में उन पर कोई सामग्री छापी नहीं गई थी?

दोनों बातें कितनी सच हैं और कितनी झूठ, यह पता लगाने के लिए इस लेखक ने ‘भाई जीरू पावन स्मरण’ (द्वितीय संस्करण, संवत् 2062 सन् 2006, गीता वाटिका प्रकाशन, गोरखपुर), ‘गीता के परम प्रचारक’ (द्वितीय संस्करण, प्रकाशक श्री विश्व शांति आश्रम, इलाहाबाद) और ‘पत्रों में समय संस्कृति’: हनुमान प्रसाद पोद्दार जी के कुछ विशिष्ट पत्र (संपादक अच्युतानंद मिश्र, प्रथम संस्करण प्रभात प्रकाशन, 2015, नई दिल्ली) आदि पुस्तकों का अध्ययन किया। कल्याण के फरवरी से अप्रैल 1948 के अंकों को भी देखा। साथ ही, गीता प्रेस के वर्तमान न्यासी ईश्वर प्रसाद पटवारी और अच्युतानंद मिश्र का साक्षात्कार भी लिया। (ये दोनों साक्षात्कार क्रमश: 25 दिसंबर, 2016 और 1 जनवरी, 2017 को लिए गए) और उन दो अंग्रेजी पुस्तकों को भी पढ़ा जिनमें इस प्रकार के आरोप लगाए गए हैं।

इन पुस्तकों के नाम हैं- ‘द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ जीडी बिड़ला’ (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस इंडिया 2003, लेखिका एमएम कुदैसिया) और ‘गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिन्दू इंडिया’ (हार्परकलिंस पब्लिशर्स इंडिया 2015, लेखक अक्षय मुकुल)। अच्युतानंद मिश्र और ईश्वर प्रसाद पटवारी ने बताया कि उन्हें ऐसे कोई साक्ष्य नहीं मिले, जिनके आधार पर वे यह कह सकें कि जयदयाल गोयंदका और हनुमान प्रसाद पोद्दार महात्मा गांधी हत्याकांड के बाद गिरफ्तार हुए थे। महात्मा गांधी की हत्या के बाद देश में हजारों लोगों की गिरफ्तारी हुई थी।

गोयंदका जी और पोद्दार जी की गिरफ्तारी की बात 2003 में प्रकाशित उपर्युक्त अंग्रेजी पुस्तक के पृष्ठ 269 पर कही गई है। इसी पुस्तक में यह भी लिखा है कि दोनों को रिहा कराने के लिए घनश्याम दास बिड़ला ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था, क्योंकि बिड़ला जी समझते थे कि दोनों सनातन धर्म नहीं, शैतान धर्म फैला रहे थे। बाद में इन्हीं बातों को 2015 में प्रकाशित अंग्रेजी पुस्तक के पेज 58 पर दोहराया गया। इसमें सीआईडी दस्तावेजों के हवाले से यह अनुमान लगाया गया है कि कल्याण के फरवरी और मार्च के अंकों में गांधीजी का जिक्र इसलिए नहीं है, क्योंकि पोद्दार जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बचाव करने में सक्रिय थे। संघ पर 4 फरवरी, 1948 को प्रतिबंध लगाया गया था जिसे जुलाई, 1949 को हटा लिया गया।

आरोपों में विरोधाभास

एक तरफ तो पुस्तक में यह कहा गया है कि पोद्दार जी को गिरफ्तार किया गया था और दूसरी ओर यह कथन है कि पोद्दार जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बचाने में लगे हुए थे। ये दोनों बातें विरोधाभास पैदा करती हैं। इसलिए उनकी गिरफ्तारी की बात गले नहीं उतरती। इसके अलावा, विवेचित पुस्तक में यह नहीं बताया गया है कि उन्हें किस तारीख को गिरफ्तार किया गया? कब रिहा किया गया? उन्हें किस जेल में रखा गया था? 2003 में प्रकाशित इस पुस्तक की लेखिका ने पृष्ठ 269 में कल्याण को एक साप्ताहिक मैगजीन बताया है और कहा है कि जय दयाल गोयंदका उसके कार्यकारी संपादक थे। ये दोनों ही बातें पूरी तरह तथ्यहीन हैं। कल्याण मासिक पत्रिका है और गोयंदका जी कभी उसके कार्यकारी संपादक नहीं रहे। वे गीता प्रेस के संस्थापक थे। इसी पेज में यह भी कहा गया है कि ये दोनों मारवाड़ी थे और बिड़ला परिवार के घनिष्ठ थे। इसी पुस्तक के पृष्ठ 270 में कहा गया है कि पोद्दार जी और घनश्याम दास बिड़ला रोड़ा षड्यंत्र कांड में 1914 में सह अभियुक्त रहे थे। वास्तविकता यह है कि उद्योगपति जीडी बिड़ला और पोद्दार जी परस्पर मित्र थे, परंतु उनमें घनिष्ठ संबंध नहीं थे। पोद्दार क्रांतिकारी थे और रोड़ा कांड में बंगाल में डेढ़ वर्ष से अधिक समय नजरबंद थे। वहीं बिड़ला जी कभी नजरबंद नहीं रहे। तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने जब पोद्दार जी को जेल से छोड़ा तो 24 घंटे के अंदर बंगाल छोड़ने का भी आदेश दिया था। अच्युतानंद मिश्र संपादित पोद्दार जी के पत्राचार की जिस पुस्तक का ऊपर जिक्र किया गया है, उसमें बिड़ला जी का एक भी पत्र शामिल नहीं है। मिश्र जी ने साक्षात्कार में बताया कि बिड़ला जी और पोद्दार जी में घनिष्ठ संबंध नहीं थे। हालांकि पोद्दार जी का शरीर शांत हो जाने पर उनके सम्मान में जो पुस्तक प्रकाशित हुई, उसके लिए बिड़ला जी ने अपने श्रद्धांजलि संदेश में कहा था, ‘‘हनुमान प्रसाद पोद्दार मेरे पुराने मित्र थे। उन्होंने धार्मिक साहित्य के प्रचार के लिए क्षेत्र में अद्वितीय सेवाएं की हैं। उनके निधन से मुझे दुख हुआ है।’’ (भाई जीरू पावन स्मरण, पृष्ठ 40)

कल्याण से गांधी जी का रिश्ता

स्पष्ट है कि बिड़ला जी के श्रद्धांजलि संदेश से यह नहीं लगता कि उनकी समझ में पोद्दारजी ने कभी भी शैतान धर्म फैलाया था। यहां यह बता देना जरूरी है कि अप्रैल 1926 में पोद्दार जी द्वारा तैयार भाषण को बिड़ला जी ने एक अधिवेशन में सुना था। भाषण के विचार यद्यपि बिड़ला जी के अनुकूल नहीं थे, परंतु जनसाधारण इनसे प्रभावित है- यह बात बिड़ला जी ने कही। वे पोद्दार जी से बोले, ‘‘यदि तुम लोगों के पास अपने विचारों का, सिद्धांतों का एक पत्र हो तो तुम लोगों को और भी सफलता मिल सकती है। तुम लोग अपने विचारों का एक पत्र निकालो।’’ बिड़ला जी के इसी सुझाव से एक पत्रिका के प्रकाशन का बीज पड़ा और अगस्त 1926 में ‘कल्याण’ का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। ये उपर्युक्त बातें ‘गीता के परम प्रचारक’ पुस्तक की पृष्ठ संख्या 20-22 में कही गई हैं।
‘भाई जीरू पावन स्मरण’ पुस्तक में पोद्दार जी के लिए जिन महानुभावों के श्रद्धांजलि संदेश छपे हैं, उनमें चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, राष्ट्रपति वीवी गिरि, लोकसभा अध्यक्ष गुरदयाल सिंह ढिल्लों, मोरारजी देसाई, गुलजारीलाल नंदा, जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, चौधरी चरण सिंह आदि तमाम गणमान्य शामिल हैं। अच्युतानंद मिश्र ने बताया कि पोद्दार जी आत्म प्रचार से कोसों दूर रहते थे। आजादी के बाद जब भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने की पेशकश की, तो उन्होंने उसका जवाब तक नहीं दिया। गांधीजी और कल्याण के रिश्ते बहुत गहरे थे। गांधीजी ‘कल्याण’ में लिखते थे। 1926 में जब इस पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ तो गांधीजी ने अपने आशीर्वचन में यह राय दी थी कि कल्याण में कभी भी कोई विज्ञापन नहीं छापा जाए। तब से आज तक कल्याण गांधीजी के इन वचनों का पालन कर रहा है और उसमें कोई भी विज्ञापन प्रकाशित नहीं होता। कल्याण में लिखने वालों में गांधीजी ही नहीं, बल्कि उस जमाने के कई चोटी के नेता थे। इनमें लाल बहादुर शास्त्री, पंडित मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तम दास टंडन आदि शामिल थे। कल्याण किसी भी लेखक को कोई पारिश्रमिक या मानदेय राशि नहीं देता था और आज भी नहीं देता।

तकनीक उन्नत नहीं थी

अप्रैल 1955 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद गीता प्रेस को देखने गए थे। 2015 में प्रकाशित उपर्युक्त पुस्तक के पृष्ठ 58 पर यह प्रश्न उठाया गया है कि गांधीजी की मृत्यु के फौरन बाद उन पर कोई सामग्री ‘कल्याण’ के फरवरी और मार्च के अंकों में क्यों प्रकाशित नहीं की गई। सभी को पता है कि ‘कल्याण’ एक मासिक पत्रिका है। आज प्रिंटिंग तकनीक बहुत आगे बढ़ गई है। 1948 में यह तकनीक बहुत पिछड़ी हुई थी। जब कभी संभव होता था तब मासिक पत्रिकाएं एक-एक महीने पहले छापकर रख ली जाती थीं ताकि उन्हें समय पर प्रसारित किया जा सके। आज भी प्रिंटिंग तकनीक के बहुत विकसित होने के बावजूद देश के अनेक दैनिक अखबारों की संडे मैगजीन कई दिन पहले छाप कर रख ली जाती हैं और रविवार के दिन उन्हें अखबार के साथ वितरित कर दिया जाता है।

गांधी जी का निधन 30 जनवरी, 1948 को हुआ। इस कारण यह कतई संभव नहीं रहा होगा कि फरवरी 1948 के कल्याण के अंक में उनके बारे में कोई विशेष सामग्री प्रकाशित की जाए। इस संबंध में ईश्वर प्रसाद पटवारी ने बताया कि उस समय ‘कल्याण’ का विशेषांक अर्थात् जनवरी 1948 का अंक छापने में काफी समय लगा था। उसी समय गीता प्रेस में कर्मचारियों की हड़ताल भी हुई थी। इस कारण ‘कल्याण’ का अंक काफी दिनों तक आधा अधूरा पड़ा रहा था। आज भी कल्याण के अंक आमतौर से एक मास पूर्व छपते हैं।
मास के अंतिम सप्ताह में इन्हें भेजने का प्रयास रहता है, ताकि पाठकों को समय से अंक मिल सके। वास्तव में अप्रैल 1948 का अंक ही इस जघन्य घटना के बाद छपा था। वह भी काफी विलंब से। और इतने दिनों बाद संवेदना व्यक्त करने का कोई औचित्य नहीं रह जाता। इस कारण इस अंक में ‘बापू की अमर वाणी’ शीर्षक से बापू के उपदेश छापे गए थे। इसके अतिरिक्त पोद्दार जी ने उसके साथ बापू के कुछ संस्मरण ‘बापू के भगवान्नाम संबंधी कुछ पवित्र संस्मरण’ इसी अंक में छापे थे। उक्त दोनों लेखों को पढ़ने से ही स्पष्ट हो जाएगा कि बापू को इससे बढ़िया श्रद्धांजलि नहीं हो सकती। महात्माओं के उपदेशों के अनुशीलन एवं पालन से बढ़कर कोई श्रद्धांजलि नहीं हो सकती।

अच्युतानंद मिश्र ने इस बारे में बताया कि गांधीजी और पोद्दार जी में एक परिवार जैसे संबंध थे। उनमें कभी-कभी वैचारिक मतभेद भी रहे, जिन्हें पोद्दार जी ने कल्याण के माध्यम से प्रकट भी किया। यहां यह बता देना जरूरी है कि 11 जनवरी, 1966 को जब लाल बहादुर शास्त्री का निधन हुआ था, तो इस खबर को सवेरे दिल्ली के कई अखबार नहीं छाप पाए थे, जबकि दिल्ली के हिंदी दैनिक नवभारत टाइम्स ने इसे छापा था। इसका मतलब यह नहीं है कि दिल्ली के अन्य अखबार इस खबर को नजरअंदाज करना चाहते थे। हर प्रकाशन के प्रिंटिंग प्रेस की अपनी सीमाएं होती हैं और उनके संसाधनों की भी सीमाएं होती हैं। उन्हें उन्हीं सीमाओं के तहत काम करना पड़ता है। लाल बहादुर शास्त्री के निधन के समय गीता प्रेस की स्थितियां ठीक रही होंगी। तभी कल्याण के अगले अंक में संवेदना व्यक्त करना संभव हो पाया होगा।

देश की अग्रणी प्रकाशन संस्था

आज गीता प्रेस देश की अग्रणी प्रकाशन संस्था है। यहां से प्रतिदिन करीब 50,000 पुस्तकें छप कर बाजार में आती हैं। करीब 200 से अधिक कर्मचारी यहां काम करते हैं। कभी-कभी यहां के प्रबंध तंत्र और कर्मचारियों के बीच विवाद भी होता है। ऐसे में कुछ लोग यह प्रचारित करने लगते हैं कि पैसे की कमी के कारण गीता प्रेस बंद होने वाला है। इस दुष्प्रचार के आधार पर कुछ लोग देश और विदेश में गीता प्रेस के नाम पर चंदा उगाही करके अपनी जेबें भर रहे हैं। हाल ही में गीता प्रेस के न्यासी ईश्वर प्रसाद पटवारी जी ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, ‘‘गीता प्रेस में कोई आर्थिक संकट नहीं है। संस्थान सुचारु रूप से कार्यरत है। भारत में संस्थान के बीस विक्रय केंद्र कार्यरत हैं। इसके अलावा, स्टेशन स्टॉलों की शृंखला भी कार्यरत है। गीता प्रेस द्वारा कभी भी आर्थिक सहायता न तो मांगी गई है और न ही स्वीकार की जाती है।’’ विज्ञप्ति में यह भी कहा गया कि यदि कोई गीता प्रेस के नाम पर धन संग्रह करता है, तो निश्चित रूप से ऐसा करने वाला ठगी कर रहा है।
गीता प्रेस ने अभी हाल ही में 11 करोड़ रुपये की एक पुस्तक बाइंडिंग मशीन लगाई है। पूरी परियोजना 25 करोड़ रुपये की है। अर्थात् अभी इसमें कुछ और काम होना बाकी है। आत्म प्रचार से कोसों दूर रहकर जयदयाल गोयंदका और ब्रह्मलीन हनुमान प्रसाद पोद्दार ने गीता प्रेस की जो निस्वार्थ सेवा की, उसी का परिणाम है कि आज यह विश्व की एक अग्रणी प्रकाशन संस्था है और कल्याण 90 वर्ष से अधिक समय से निरंतर प्रकाशित होने वाली देश की शायद सबसे पुरानी मासिक पत्रिका है।

(लेखक कार्डिफ विश्वविद्यालय, ब्रिटेन से पी.एच.डी प्राप्त हैं और झारखंड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग से प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हुए हैं)

Topics: RSSगीता प्रेस गांधी शांति सम्मानGeeta Press Gandhi Shanti Sammanसंघगीता प्रेस गोरखपुरgita press gorakhpurआरएसएसमहात्मा गांधीMahatma GandhiSangh
Share6TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने की ऑपरेशन सिंदूर की प्रशंसा, बताया- ‘पहलगाम के पीड़ितों के लिए न्याय का प्रारंभ’

बिटिया के पांव पखारते सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जी ने पिता के रूप में किया कन्यादान, बिटिया के पांव पखारे, बारात की अगवानी की

प्रख्यात वैज्ञानिक के कस्तूरीरंगन का निधन

कस्तूरीरंगन जी के देहावसान से राष्ट्र जीवन के देदीप्यमान नक्षत्र का अस्त, कई क्षेत्रों में भारत की सेवा की : आरएसएस

श्री दत्तात्रेय होसबाले जी, सरकार्यवाह , राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

पहलगाम में आतंकी हमला देश की एकता और अखंडता पर प्रहार करने का दुस्साहस, सरकार जल्द उठाए कदम : आरएसएस

उत्कल विपन्न सहायता समिति के वार्षिक उत्सव में बोले मुख्यमंत्री: ‘संघ से मिली है लोगों की सेवा की प्रेरणा

क्या कांग्रेस को वास्तव में गांधीजी की कोई चिंता थी ? किन बातों पर डालना चाहती है पर्दा ?

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

‘आतंकी समूहों पर ठोस कार्रवाई करे इस्लामाबाद’ : अमेरिका

भारत के लिए ऑपरेशन सिंदूर की गति बनाए रखना आवश्यक

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ

भारत को लगातार उकसा रहा पाकिस्तान, आसिफ ख्वाजा ने फिर दी युद्ध की धमकी, भारत शांतिपूर्वक दे रहा जवाब

‘फर्जी है राजौरी में फिदायीन हमले की खबर’ : भारत ने बेनकाब किया पाकिस्तानी प्रोपगेंडा, जानिए क्या है पूरा सच..?

S jaishankar

उकसावे पर दिया जाएगा ‘कड़ा जबाव’ : विश्व नेताओं से विदेश मंत्री की बातचीत जारी, कहा- आतंकवाद पर समझौता नहीं

पाकिस्तान को भारत का मुंहतोड़ जवाब : हवा में ही मार गिराए लड़ाकू विमान, AWACS को भी किया ढेर

पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर से लेकर राजस्थान तक दागी मिसाइलें, नागरिक क्षेत्रों पर भी किया हमला, भारत ने किया नाकाम

‘ऑपरेशन सिंदूर’ से तिलमिलाए पाकिस्तानी कलाकार : शब्दों से बहा रहे आतंकियों के लिए आंसू, हानिया-माहिरा-फवाद हुए बेनकाब

राफेल पर मजाक उड़ाना पड़ा भारी : सेना का मजाक उड़ाने पर कांग्रेस नेता अजय राय FIR

घुसपैठ और कन्वर्जन के विरोध में लोगों के साथ सड़क पर उतरे चंपई सोरेन

घर वापसी का जोर, चर्च कमजोर

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies