उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है। यहां एक से बढ़कर एक मंदिर मौजूद हैं। इन मंदिरों के रहस्य और पौराणिक कथाएं काफी प्रचलित हैं। देवों की इस भूमि में देवताओं के साथ-साथ असूर भी पूजे जाते हैं। साथ ही यहां शुभ ग्रह भी पूजे जाते हैं और अशुभ ग्रह भी। ऐसे ही यहां राहु का मंदिर भी है।
समुद्र मंथन के दौरान जब राहु चुपके से देवताओं के वेश में अमृत पी गया तो भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट दिया। कहते हैं कि यहां राहु का सिर पत्थर के नीचे दबा हुआ है। यह मंदिर पौड़ी जिले में पैठाणी नामक गांव में स्योलीगाड़ नदी (रथवाहिनी नदी) और नवालिका (पक्षिमी नयार नदी) के संगम पर स्थित है, जहां राहु और शिवजी की पूजा की जाती है।
पांडवों ने राहु दोष से बचने के लिए की थी पूजा
ऐसा कहा जाता है कि शायद यह मंदिर पूरे उत्तर भारत या भारत में एकलौता राहु का मंदिर है। हालांकि, दक्षिण भारत में भी एक ऐसा मंदिर है, लेकिन वहां केतु के साथ राहु की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण आदि शंकराचार्य जी ने करवाया था। इस मंदिर को लेकर एक मान्यता ये भी है कि इसका निर्माण पांडवों ने किया। जब पांडव स्वर्गारोहिणी यात्रा पर थे तब राहु दोष से बचने के लिए पांडवों ने भगवान शिव और राहु की पूजा की थी और उन्होंने इस मंदिर को स्थापित किया होगा।
मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग
इस मंदिर में राहु के साथ शिवजी की पूजा की जाती है। दरअसल, इस मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। मंदिर की दीवारों पर राहु के कटे सिर के साथ-साथ भगवान विष्णु के सुदर्शन की कारीगरी भी की गई है। ऐसी मान्यता है की भगवान विष्णु द्वारा राहु का सिर काटे जाने के बाद यहां पत्थरों के नीचे राहु का सिर दबा हुआ है। लोगों का मानना है कि यहां पूजा करने से राहु दोष से मुक्ति मिलती है। देशभर से लोग यहां आते हैं।
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