बिहार में सुल्तानगंज-अगुवानी निर्माणाधीन सेतु भरभरा कर गिर गया। कुछ ही सेकेंड में पुल का एक हिस्सा गंगा नदी में समा गया। इसके साथ ही लोगों की वह उम्मीद भी खत्म हो गई, जो वर्षों से जगी थी। इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता मणिभूषण सिंह ने जनहित याचिका दायर की है।
गत दिनों जून में बिहार में सुल्तानगंज-अगुवानी निर्माणाधीन सेतु भरभरा कर गिर गया। कुछ ही सेकेंड में पुल का एक हिस्सा गंगा नदी में समा गया। इसके साथ ही लोगों की वह उम्मीद भी खत्म हो गई, जो वर्षों से जगी थी। इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता मणिभूषण सिंह ने जनहित याचिका दायर की है। उनके अनुसार यह पुल 2,000 करोड़ रु. से भी ज्यादा की बंदरबांट का जरिया था। इस पुल का निर्माण एसपी सिंगला कंपनी कर रही है। पुल के ध्वस्त होने के बाद बिहार सरकार पर कई सवाल उठ रहे हैं।
सबसे बड़ा सवाल है कि यह पुल 14 महीने में दो बार धराशायी कैसे हो गया? इससे पहले 30 अप्रैल, 2022 को भी 3,160 मीटर लंबे इस पुल का 200 मीटर का हिस्सा गिरा था। तत्कालीन पथ निर्माण मंत्री नितिन नवीन ने निर्माण कार्य रोक कर जांच के आदेश दिए थे, लेकिन उसके कुछ दिन बाद ही राज्य में सत्ता का समीकरण बदल गया।
भाजपा के स्थान पर राष्ट्रीय जनता दल आ गया। इसके बाद राज्य के पथ निर्माण मंत्री बने राजद नेता तेजस्वी यादव। उन्होंने जांच की रपट आने से पहले ही काम पुन: शुरू करवा दिया। यही नहीं, कुछ दिन पहले ही कंपनी से कहा गया था कि 31 दिसंबर, 2023 तक पुल का निर्माण पूरा हो जाना चाहिए। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि 4 जून को पिलर नंबर 10-13 के बीच 400 मीटर का हिस्सा ढह गया।
‘‘यह पुल मुख्यमंत्री की बड़ी परियोजनाओं में से एक है। जब पुल गंगा नदी में समा गया तब कहा जाने लगा कि इसका डिजाइन ही गलत था। ऐसी स्थिति में एक इंजीनियर मुख्यमंत्री द्वारा निर्माण का आदेश दिया जाना भ्रष्टाचार की कहानी को खुद बयां कर रहा है।’’ भाजपा ने इस मामले की जांच पटना उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश या सीबीआई से कराने की मांग की है।
-प्रेम रंजन पटेल, भाजपा नेता और पूर्व विधायक
इस पुल का टेंडर 2014 में हुआ था। उस समय राज्य में जदयू और राजद की ही सरकार थी और तेजस्वी यादव पथ निर्माण मंत्री थे। 2014 में इसकी लागत केवल 600 करोड़ थी, जो अब बढ़कर 1,710 करोड़ रु. हो गई है। पुल का निर्माण कार्य 2015 में शुरू हुआ। एक आरोप के अनुसार उस समय10 प्रतिशत कमीशन पर पुल का निर्माण तय हुआ था।
यानी शुरू से इस पुल पर भ्रष्टाचारियों की नजर थी। अब तेजस्वी यादव कह रहे हैं कि डिजाइन में कमी होने के कारण पुल गिरा है। वहीं भाजपा कह रही है कि अगर डिजाइन में दोष था तो डिजाइनर का नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किया जा रहा है?
भाजपा नेता और पूर्व विधायक प्रेम रंजन पटेल इस घटना के लिए एकमात्र दोषी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मानते हैं। वे कहते हैं, ‘‘यह पुल मुख्यमंत्री की बड़ी परियोजनाओं में से एक है। जब पुल गंगा नदी में समा गया तब कहा जाने लगा कि इसका डिजाइन ही गलत था। ऐसी स्थिति में एक इंजीनियर मुख्यमंत्री द्वारा निर्माण का आदेश दिया जाना भ्रष्टाचार की कहानी को खुद बयां कर रहा है।’’ भाजपा ने इस मामले की जांच पटना उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश या सीबीआई से कराने की मांग की है।
यह भी जानना जरूरी है कि बिहार में एसपी सिंगला कंपनी के पास सबसे अधिक कार्य हैं। यह कंपनी पूरे देश में अब तक 25 पुलों का निर्माण कर चुकी है। इनमें सबसे ज्यादा आठ पुल बिहार में बनाए हैं। यह कोई पहला मौका नहीं है जब कंपनी की किसी परियोजना पर सवाल उठे हों।
मई, 2020 में पटना में लोहिया चक्र पथ का निर्माण चल रहा था। उस समय एक कंक्रीट स्लैब गिरने से तीन बच्चों की मौत हो गई थी। घटना की जांच हुई लेकिन कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसलिए लोग कह रहे हैं कि कंपनी के पीछे कोई ऐसी ताकत है, जो उसे बार-बार बचा रही है। शायद इस बार भी यही होगा।
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