नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका यात्रा से पहले ही रक्षा मंत्रालय ने गुरुवार को अमेरिका से 31 प्रीडेटर (एमक्यू-9 रीपर) ड्रोन हासिल करने के सौदे को मंजूरी दे दी। इसके लिए अंतिम फैसला सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) करेगी। यह डील भारत और अमेरिका के रिश्तों में एक मील का पत्थर साबित होगी।
चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के संवेदनशील क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति को मजबूत करने और निगरानी को बढ़ावा देने के लिए सेना, नौसेना और वायुसेना ने एमक्यू-9बी सशस्त्र ड्रोन की जरूरत बताई है। खासकर हिंद महासागर क्षेत्र में नौसेना अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाहती है। इस ड्रोन के आने के बाद हिंद महासागर पर चीन के खिलाफ घेराबंदी और मजबूत हो सकेगी। इसी क्रम में प्रीडेटर ड्रोन के सौदे को आज रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) की बैठक में मंजूरी दे दी गई, जिसके बाद सुरक्षा पर कैबिनेट समिति को मंजूरी का इन्तजार है।
सशस्त्र सेनाओं के हथियार खरीदने का निर्णय लेने के लिए डीएसी रक्षा मंत्रालय में सर्वोच्च निकाय है। इसके बाद इन अधिग्रहणों को सुरक्षा पर कैबिनेट समिति से अंतिम मंजूरी दी जाती है। भारतीय नौसेना इस सौदे के लिए प्रमुख एजेंसी है, जिसमें 15 ड्रोन अपनी जिम्मेदारी के क्षेत्र में निगरानी संचालन के लिए समुद्री बल में जाएंगे। इसके अलावा सेना और वायुसेना की भी 8-8 ड्रोन बेड़े में शामिल करने की योजना है। पीएम मोदी 21 से 24 जून तक अमेरिका का दौरा करने वाले हैं। प्रधानमंत्री के रूप में अपने नौ साल के शासनकाल के दौरान यह पीएम मोदी की अमेरिका की पहली राजकीय यात्रा होगी। इसी दौरे पर 32 हजार करोड़ रुपये का यह सौदा फाइनल होने की उम्मीद है।
एमक्यू-9 रीपर ड्रोन की खासियत
एमक्यू-9 रीपर ड्रोन को सैन डिएगो स्थित जनरल एटॉमिक्स ने बनाया, जो लगातार 48 घंटे उड़ सकता है। यह 6,000 समुद्री मील से अधिक दूरी तक लगभग 1,700 किलोग्राम (3,700 पाउंड) का पेलोड ले जा सकता है। यह नौ हार्ड-पॉइंट्स के साथ आता है, जो हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलों के अलावा सेंसर और लेजर-निर्देशित बम ले जाने में सक्षम है, जिसमें अधिकतम दो टन का पेलोड है। हथियारबंद ड्रोन से भारतीय सेना उस तरह के मिशन को अंजाम दे सकती है, जिस तरह का ऑपरेशन नाटो बलों ने अफगानिस्तान में किया था।
इसका इस्तेमाल अधिक्रांत कश्मीर में आतंकवादियों के ठिकाने पर रिमोट कंट्रोल ऑपरेशन, सर्जिकल स्ट्राइक और हिमालय की सीमाओं पर लक्ष्य को टारगेट बनाने में किया जा सकता है। वर्तमान में भारतीय सुरक्षा एजेंसियां इजरायली यूएवी, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन के नेत्रा और रुस्तम ड्रोन का उपयोग करती हैं।
(सौजन्य सिंडिकेट फीड)
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