‘गर्भवती महिलाओं को पढ़ना चाहिए सुन्दरकाण्ड’

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सोनाली मिश्रा

तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुन्दरराजन ने पिछले दिनों एक महत्वपूर्ण वक्तव्य देते हुए कहा कि गर्भवती महिलाओं को सुन्दरकाण्ड का पाठ करना चाहिए, जिससे उनकी आने वाली सन्तान भी संस्कारों से भरी हुई हो। वह स्वयं स्त्री रोग विशेषज्ञ एवं भ्रूण संबंधी चिकित्सक हैं। उन्होंने गर्भ से ही अच्छे संस्कारों की बात राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े सम्वर्धनी न्यास संगठन के कार्यक्रम गर्भ संस्कार के दौरान कही।

उन्होंने माताओं के मानसिक स्वास्थ्य के विषय में भी बात करते हुए कहा कि माताओं का मानसिक स्वास्थ्य महत्वपूर्ण हैं, और हमने गावों में माताओं को रामायण, महाभारत, महाकाव्य एवं अच्छी कहानियां पढ़ते हुए देखा है।  विशेष रूप से तमिलनाडु में एक मान्यता है कि गर्भवती महिलाओं को कंबन रामायण के सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए, जो रामायण का तमिल संस्करण है। सुंदरकांड हनुमान का चमत्कार है और इसलिए यह बच्चे के लिए बहुत अच्छा होगा। तो, ये सभी गर्भावस्था के लिए समग्र दृष्टिकोण होंगे। एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण जटिल गर्भावस्था को रोक देगा लेकिन जब धार्मिक दृष्टिकोण को भी साथ लेंगे तो सामान्य गर्भावस्था तो होगी ही बल्कि साथ ही मानसिक और शारीरिक रूप से जच्चा-बच्चा स्वस्थ रहेगा!”

उनकी कही यह बात हमारे इतिहास का हिस्सा है, जिसमें अभिमन्यु की कहानी से सभी परिचित हैं। महाभारत में एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रसंग उस अध्ययन को स्थापित करती है, जो बाद में हुए और हो रहे हैं, और जो कह रहे हैं कि भ्रूण की स्मृति होती है। इसे फेटल या प्रीनटल मेमोरी का नाम दिया गया है। अभिमन्यु की कहानी यह बताने के लिए पर्याप्त है कि भ्रूण जब विकसित अवस्था में होता है तो उसके सामने जो चर्चा की जाए एवं यदि मां जागती है तो वह सब कुछ सुनता है एवं समझता है।

अभिमन्यु ने गर्भ में ही चक्रव्यूह तोड़ना सीख लिया था, क्योंकि अर्जुन उनकी मां सुभद्रा को बता रहे थे, परन्तु जब चक्रव्यूह से बाहर निकलने के विषय में वह बताने लगे तो उनकी मां को नींद आ गयी और इस प्रकार वह चक्रव्यूह से बाहर निकलना नहीं सीख पाए।

यह अद्भुत प्रसंग महाभारत के युद्ध में जाकर अंतिम मोड़ लेता है जब अभिमन्यु कौरव सेना द्वारा बनाए गए चक्रव्यूह में प्रवेश तो कर जाते हैं, परन्तु बाहर नहीं आ पाते हैं एवं अंतत: इस कारण वह वीरगति को प्राप्त होते हैं।

भारत में स्त्री की गर्भावस्था पर विशेष ध्यान दिए जाने की परम्परा है। यहां तक कि लोक में वह सब सावधानियां एक स्त्री को बताई जाती हैं, जिसे कथित आधुनिक चिकित्सा भी बताती है, जैसे गर्भ ठहरने के आरम्भिक दिनों में भार न उठाना, जैसे जैसे गर्भ की अवधि बढ़ती है वैसे वैसे मां को मानसिक शान्ति प्रदान करना, गर्भस्थ स्त्री के पास जाकर ऊंचे स्वर में बात न करना, चीखना चिल्लाना नहीं आदि!

कई बार देखा गया है कि यदि पति एवं पत्नी में सहज दाम्पत्त्य सम्बन्ध नहीं है तो शिशु भी मानसिक रूप से अपने पिता या माता से कनेक्ट नहीं हो पाता है, उसमें संबंधों को लेकर वह सहजता नहीं उत्पन्न हो पाती है। यह भी देखा गया है कि जिन बच्चों के जन्म से पूर्व यदि माता एवं परिवार के मध्य सहज सम्बन्ध रहे हैं, तो शिशु का जुड़ाव पूरे परिवार के साथ होता है।

यह विज्ञान था, जिसे वेदों में लिखा गया था। वेदों में कई मन्त्र ऐसे प्राप्त होते हैं, जो गर्भावस्था की महत्ता बताते हैं तथा शिशु के उत्तम स्वास्थ्य की कामना करते हैं।

यजुर्वेद में यह मन्त्र दिया गया है

आदित्यं गर्भ पयंसा समंङ्धि, सहस्त्रस्य प्रातिमां विश्‍वरूपम् ।
परिंवृन्धि हरसा माभिमगूँस्था:, शतायुषं कृणुहि चीयमान:।

इसी प्रकार अथर्ववेद में कई मन्त्र ऐसे हैं, जिनमें सुरक्षित सामान्य प्रसव प्रक्रिया तक के लिए आह्वान किया गया है। चाणक्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में भी गर्भवती स्त्रियों को लेकर शासन की ओर से जो सुविधाएं प्रदान की गयी थीं, उनका वर्णन किया है, कि जैसे गर्भवती स्त्री से नाव का किराया नहीं लिया जाना चाहिए।

देवों से आह्वान एवं शासन द्वारा गर्भवती स्त्री को सुविधाएं उसी मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हैं, जिनकी बात तमिलिसाई सुंदरराजन जी ने की है।

पहले गर्भाधान संस्कार के श्लोकों की सीडी भी बाजार में आती थी। यूट्यूब पर भी कई वीडियो इस औचित्य के प्राप्त होते हैं, जिनमें उन मन्त्रों और श्लोकों को बार बार सुनने के लिए कहा जाता है, जो शिशु के स्वागत का आह्वान कर रहे हैं।

आयुर्वेद में अच्छी सन्तान के लिए गर्भावस्था ही नहीं बल्कि पति एवं पत्नी के मध्य सुखद सम्बन्धों की भी बात कही गयी है। प्रयागराज की वैद्य यशोदा देवी ने इसे अपनी पुस्तकों में बार-बार बताया है कि कैसे भोजन, आहार, विहार, पति एवं पत्नी के साथ, एवं स्वस्थ तन-मन का सम्बन्ध एक स्वस्थ तथा संस्कारी संतान से है। वह अपनी पुस्तक विवाह विज्ञान एवं कामशास्त्र में स्वस्थ संतान के लिए स्वस्थ मानसिकता तथा स्वस्थ संबंधों की महत्ता को विस्तार से बताती हैं।

स्त्री के स्वास्थ्य, गर्भावस्था, स्वस्थ सन्तान एवं उत्तम आचरण वाली संतानों पर भारत में निरंतर ही संवाद होता आया है, तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े सम्वर्धनी न्यास संगठन के कार्यक्रम गर्भ संस्कार में तमिलिसाई सुंदरराजन जी का वक्तव्य इसी की एक और कड़ी है, जो उस परम्परा को पुष्ट एवं समृद्ध करती है जिसका संवाहक भारत सनातनकाल से रहा है।

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