सेक्युलरिज्म को लेकर कांग्रेस की समझ भी वही है और हमेशा रही है, जो मुस्लिम लीग की थी और है। अगर पुराने मामलों का उल्लेख न करें, तो भी ‘साम्प्रदायिक हिंसा विधेयक’ लाकर कांग्रेस पहले भी स्पष्ट कर चुकी थी कि उसकी दृष्टि में हिन्दू होना साम्प्रदायिक होता है, और हिन्दू विरोधी होना या इस्लामपरस्त होना ‘पूरी तरह सेक्युलर’ होता है।
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने मुस्लिम लीग को ‘पूरी तरह सेक्युलर पार्टी’ होने और मुस्लिम लीग में ‘कुछ भी गैर-धर्मनिरपेक्ष नहीं’ होने का प्रमाणपत्र दिया और खुद मुस्लिम लीग ने इस पर कोई प्रतिक्रिया भी देना जरूरी नहीं समझा। इसे विडंबना समझा जाए, या गहरा षड़यंत्र? हालांकि कांग्रेस द्वारा मुस्लिम लीग को ‘पूरी तरह सेक्युलर पार्टी’ होने का प्रमाणपत्र देना एक बिल्कुल सहज, स्वाभाविक और अपेक्षित बात है। दोनों दल भारत के साम्प्रदायिक विभाजन में बराबर के भागीदार रहे हैं, और दोनों इसी प्रकार एक दूसरे को मान्यता देते रहे थे।
सेक्युलरिज्म को लेकर कांग्रेस की समझ भी वही है और हमेशा रही है, जो मुस्लिम लीग की थी और है। अगर पुराने मामलों का उल्लेख न करें, तो भी ‘साम्प्रदायिक हिंसा विधेयक’ लाकर कांग्रेस पहले भी स्पष्ट कर चुकी थी कि उसकी दृष्टि में हिन्दू होना साम्प्रदायिक होता है, और हिन्दू विरोधी होना या इस्लामपरस्त होना ‘पूरी तरह सेक्युलर’ होता है। बहुत समय नहीं हुआ, जब कांग्रेस और बाकी छिटपुट दल अपने बूते बहुमत नहीं जुटा पाते थे, तो वे सभी भारतीय जनता पार्टी के विरोध में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर एकजुट होकर सरकार बना लेते थे। स्पष्ट है कि इनकी दृष्टि में भारतीय जनता पार्टी कभी भी नहीं धर्मनिरपेक्ष नहीं थी। लेकिन मुस्लिम लीग धर्मनिरपेक्ष है।
इसे समझना कोई बड़ी गुत्थी नहीं है। हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं कि सत्ता से बाहर होने के बाद से कांग्रेस को अपना हिन्दू विरोध जताने का कोई बड़ा अवसर नहीं मिल पा रहा था। राममंदिर निर्माण पर उसका विरोध भी थोड़ा सहमा हुआ था और इस बार वह भगवान श्रीराम को खुलकर ‘काल्पनिक’ भी नहीं कह सकी थी। उसका रिमोट और रोबोट भी पिछले नौ वर्ष से बेमानी थे, लिहाजा न तो वह किसी आतंकवादी की रोबोट के साथ तस्वीर खिंचवा पा रही थी, न ‘हिन्दू आतंकवाद’ जैसी कोई स्वैर कल्पना कर पा रही थी। बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने के वादे से भी उसे अनमने ढंग से ही सही, पैर पीछे खींचने पड़ गए थे।
राहुल गांधी से यह अपेक्षा शायद ही कोई करता हो कि वह इसकी बारीकियों को समझने की झंझट में कभी पड़ेंगे। ऐसे में यह माना जाना ज्यादा समीचीन है कि राहुल गांधी को संचालित करने वालों का इरादा सिर्फ यह नीतिगत घोषणा करवाने का रहा हो, कि कांग्रेस और मुस्लिम लीग इसी ‘धर्मनिरपेक्षता’ की स्थापना की दिशा में चलेंगे।
वास्तव में कांग्रेस या मुस्लिम लीग शैली का सेक्युलरिज्म एक ही मंजिल तक पहुंचने के दो रास्ते भर रह गए हैं। मुस्लिम लीग का कोई भी सदस्य मुस्लिम लीग को हमेशा सेक्युलर ही मानेगा। अगर मुस्लिम लीग का लक्ष्य भारत का एक और विभाजन कराना हो तो भी। इतिहास इस बात की पुष्टि करता है कि कथित धर्मनिरपेक्षता व्यवहार में भारत में इस्लामीकरण को सशक्त करने का केवल एक मुखौटा साबित हुई है। 1980 के दशक में लालकृष्ण आडवाणी ने इसे ‘छद्म धर्मनिरपेक्षता’ कहा था, अरुण शौरी ने कहा था कि धर्मनिरपेक्षता सिर्फ हिन्दू घृणा और कट्टर इस्लामीकरण का नाम है। इसी तरह की बातें पहले भी कई विद्वानों ने, जैसे कि एक पीढ़ी पूर्व रामस्वरूप और सीताराम गोयल ने कही हैं। इनमें से किसी की किसी बात के उत्तर में कोई तर्क आज तक सामने नहीं आ सका है।
वास्तव में कथित धर्मनिरपेक्षता उन पंथों को संरक्षण देने का एक उपकरण भर रही है, जो कमजोर लोगों को जबरदस्ती अपने मत में कन्वर्ट करने का काम करते हैं। कथित धर्मनिरपेक्षता जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई, इस्लामवादियों, मिशनरियों और कम्युनिस्टों को संरक्षण देने का काम भी अगले से अगले चरण में प्रवेश करता गया और स्थिति उन्हें राज्य की विधि शक्ति, वित्त शक्ति और बल द्वारा समर्थन देने की हो गई। धर्मनिरपेक्षता सिर्फ तुष्टीकरण पर नहीं रुकी। उसने हिंदुओं के प्रति अपराध करने वालों को संरक्षण दिया, धर्मनिरपेक्षता ने राजनीति को विकृत किया, धर्मनिरपेक्षता ने आतंकवादियों का महिमामंडन किया और धर्मनिरपेक्षता ने इस देश की संस्कृति के साथ खिलवाड़ किया।
राहुल गांधी से यह अपेक्षा शायद ही कोई करता हो कि वह इसकी बारीकियों को समझने की झंझट में कभी पड़ेंगे। ऐसे में यह माना जाना ज्यादा समीचीन है कि राहुल गांधी को संचालित करने वालों का इरादा सिर्फ यह नीतिगत घोषणा करवाने का रहा हो, कि कांग्रेस और मुस्लिम लीग इसी ‘धर्मनिरपेक्षता’ की स्थापना की दिशा में चलेंगे। प्रकारांतर से यह संदेश उन लोगों के लिए है, जो इस देश से, इसकी संस्कृति से, इसके सभ्य होने से प्रेम करते हैं। इस सुसुप्त बहुसंख्यक वर्ग को अपनी आंखें और मस्तिष्क खोलने की आवश्यकता है। अगर बहुसंख्यक राहुल गांधी की इतनी खुली घोषणा पर भी अपनी आंखें नहीं खोल पाते हैं,तो उन्हें नियति को दोष देने का भी अधिकार नहीं हो सकता है।
@hiteshshankar
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