पाकिस्तान का एक ट्विटर यूजर का एक ट्वीट दो दिनों से चर्चा का विषय बना हुआ है। यह ट्वीट उस सच्चाई के विषय में है, जिसे हर विमर्श में छिपाया जाता है। इन दिनों एआरवाई पर जो पारिवारिक धारावाहिक आ रहे हैं, वह महिलाओं के अधिकारों पर लगातार बात कर रहे हैं और यह तक साबित कर रहे हैं कि महिलाओं को बराबर के अधिकार दिए जाते हैं और दहेज आदि नहीं लेना चाहिए।
मगर महिलाओं को लेकर वहां का दृष्टिकोण केवल उन्हीं उदाहरणों से समझ लिया जाना चाहिए जिनमें मासूम हिन्दू लड़कियों का अपहरण करके उन्हें जबरन मुस्लिम बनाकर मूल मानव अधिकारों से ही इस आधार पर वंचित कर दिया जाता है कि वह मुस्लिम हो गई हैं क्योंकि उनकी शादी की उम्र अब इस्लाम के अनुसार हो गई है।
ऐसी तमाम कहानियां हैं, जो दफन हो जाती हैं। वह अधिकारों के उस विमर्श में आ ही नहीं पाती हैं, जिनमें आना चाहिए। जिन हिन्दू लड़कियों का अपहरण होता है, उन्हें इस आधार पर उनका अपहरण करने वालों के हाथों सौंप दिया जाता है कि वह अब मुस्लिम हो गई हैं। मगर अधिकारों का यह विमर्श किसी भी धारावाहिक का मुद्दा नहीं है।
वहां पर यही मुद्दे हैं कि कैसे लड़कियों को समान अधिकार मिले हुए हैं। मगर जो ट्वीट वायरल हो रहा है, वह बहुत बड़े नहीं बस गवाह होने जैसे अधिकार की बात करता है और जिसमें एक पढ़ी-लिखी डॉक्टरेट मुस्लिम महिला की गवाही केवल बैंक खाते के लिए ही नहीं मानी गई और उसके स्थान पर उसके ड्राइवर के हस्ताक्षर लिए गए क्योंकि महिलाओं की गवाही शरिया के अनुसार आधी मानी जाती है।
हालांकि इस ट्वीट को करने वाले को उसी घृणा का सामना करना पड़ रहा है, जैसा कि किसी भी मजहबी कुरीति के विषय में बात करने वाले के साथ होता है। मदीहा नामक यूजर ने अपनी सहेली के विषय में बताते हुए लिखा कि कुछ वर्षों पहले उनकी एक नजदीकी दोस्त जो एमबीबीएस और पीएचडी है, वह पाकिस्तान लौटी और जब उसने पाकिस्तान में अपने बैंक खाते को दोबारा चालू करने वाले के लिए सोचा तो वह अपने शौहर के साथ बैंक गई। बैंक ने उनसे कुछ आवश्यक दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा, जिसमें गवाह के भी हस्ताक्षर सम्मिलित थे।
जब दोस्त का समय आया कि वह अपने शौहर की गवाही लेते हुए फॉर्म भर दे, तो बैंक मैनेजर ने कहा कि शरिया के अनुसार उसके हस्ताक्षर वैध नहीं कहे जा सकते हैं क्योंकि महिलाओं को इस्लाम में आधा माना गया है। और फिर उसके स्थान पर उसके ड्राइवर को बुलाया गया, जिसने स्कूल की शिक्षा भी पूरी नहीं की थी और उसने फॉर्म भरा।
मदीहा ने आगे लिखा कि महिलाओं के साथ इस प्रकार का भेदभाव बहुत ही दुःख देने वाला है और यह भी दुर्भाग्य है कि महिलाओं को अभी तक इंसान नहीं माना जाता है।
True story
A few years ago, one of my closest friends returned to Pakistan after completing her dual doctorate in MBBS and PhD.She decided to visit the bank one day to reactivate her account, accompanied by her husband. 1/5
— Madiha (@mysteryatheist1) June 10, 2023
इस थ्रेड में उन्हें झूठ ठहराया जाना आरम्भ हो गया, मगर उनका समर्थन करने वाले लोग भी सामने आए, जिनमें से एक ने लिखा कि यह उनके साथ भी हुआ। उनके भाई को बैंक के लिए एक एफिडेविट पर हस्ताक्षर करवाने थे, मगर वह नहीं कर सकती थी, बल्कि घर में कोई नहीं कर सकता था क्योंकि उनके भाई को छोड़कर सब महिलाएं थीं, तो उनके भाई को न जाने कहाँ कहाँ जाना पड़ा!
हालांकि इस सामान्य ट्वीट पर लोगों का विरोध फूट पड़ा है और कट्टरपंथी इसे नकार रहे हैं, जबकि लड़कियां वहां पर कह रही हैं कि उनके साथ भी ऐसा ही हुआ। एक यूजर ने कहा कि उन्हें अपने अब्बा को कॉल करना पड़ा कि वह उनके बैंक खाते को सत्यापित करें और पहचानें।
जहां एक ओर कुछ महिलाएं इस भेदभाव के साथ सहमत दिखीं तो वहीं एक बड़ा वर्ग वह भी था जिसका यह मानना था कि यह कहानी और कुछ नहीं बस पाकिस्तान को गलत दृष्टि से दिखाने के लिए लिखी गयी है। वहीं एक दो आदमियों का यह कहना था कि उसकी दोस्त को यह तो बुरा लग गया कि ड्राइवर से दस्तखत कराए मगर उसकी कार चलाने वाला ड्राइवर कैसे नीचा हो गया?
और कुछ लोगों ने कहा कि एमबीबीएस कैसे डॉक्टरेट की डिग्री हो गई? ऐसे कई तर्कों के आधार पर मदीहा को नीचा दिखाने की और उनकी कहानी को झूठ ठहराने का प्रयास हो रहा है, मगर इस ट्वीट पर चर्चा हो रही है, सबसे मजेदार एक उत्तर था कि इसी भेदभाव के चलते यह औरतें भारत या यूरोपीय देशों में जाती हैं मगर वहां जाकर फिर वह शरिया क़ानून के लिए लड़ती हैं।
एक यूजर ने लिखा कि पहले महिलाएं खुद ही इस्लाम में यकीन करती है और फिर औरतों के साथ भेदभाव का रोना रोती हैं। पहले कुछ ईमानदारी वह सीखें और फिर बात कहें!
मामले की सत्यता क्या है, यह तो यूजर या वह देश या वह बैंक ही बता पाएगा जहां की यह घटना बताई जाती है, परन्तु उसके बहाने विमर्श तो हो रहा है!
टिप्पणियाँ