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तकनीकी के साथ करें कदमताल

तकनीक के प्रति हमारे अंतर्विरोध एक हद तक हमारे अपने असुरक्षा बोध की ओर इशारा करते हैं। जरूरत इस बात की है कि तकनीक के उन्नत होने के साथ ही हम स्वयं को भी उन्नत करें

by बालेन्दु शर्मा दाधीच
Jun 10, 2023, 04:22 pm IST
in विज्ञान और तकनीक
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मशीनी अनुवाद भी, चैट जीपीटी भी। और हम दोनों ही मामलों को लेकर चिंतित हैं। मशीनी अनुवाद की तथाकथित कमजोरी हमें परेशान कर रही है तो चैट जीपीटी की मजबूती हमें व्यथित किये दे रही है।

जिन कार्यक्रमों में मैं प्रौद्योगिकी के नवीनतम घटनाक्रम लोगों से साझा करता हूं, उनमें से अधिकांश में मैंने लोगों को नई तकनीकों की नुक्ताचीनी करते हुए देखा है। उनकी आलोचना इस बात पर है कि मशीनी अनुवाद तो बिल्कुल बकवास परिणाम देता है। पहले वे यही बात वक्से पाठ (स्पीच टू टेक्स्ट) के बारे में कहा करते थे लेकिन वह आलोचना अब बहुत कम हो गई है। बहरहाल, मशीनी अनुवाद की खिल्ली उड़ाना आज भी जारी है। लोग तमाम तरह के जटिल और असामान्य किस्म के वाक्य बनाकर मशीन अनुवाद को आजमाते हैं ताकि वे यह साबित कर सकें कि अनुवाद करना कंप्यूटर के वश की बात नहीं और वे इस बात से परेशान हैं कि शुद्ध अनुवाद की दिशा में प्रगति क्यों नहीं हो रही।

अब दूसरे दृश्य की ओर चलिए। हाल ही में ओपनएआई ने ‘चैटजीपीटी’, माइक्रोसॉफ़्ट ने ‘बिंग चैट’ और गूगल ने ‘बार्ड’ नामक संवादात्मक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का निर्माण किया है। यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता का अगला संस्करण है जो आश्चर्यजनक रूप से बेहद शक्तिशाली है। इतना शक्तिशाली कि अधिकांश मामलों में वह एक औसत इंसान की प्रतिभा, तर्कशक्ति और ज्ञान से आगे निकल जाता है। और हम एक बार फिर चिंतित हो रहे हैं इस बात पर कि यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता इतनी सटीक कैसे है? इसके परिणाम इतने शुद्ध क्यों हैं?

उपरोक्त दोनों ही अनुप्रयोग कृत्रिम बुद्धिमत्ता के अनुप्रयोग हैं- मशीनी अनुवाद भी, चैट जीपीटी भी। और हम दोनों ही मामलों को लेकर चिंतित हैं। मशीनी अनुवाद की तथाकथित कमजोरी हमें परेशान कर रही है तो चैट जीपीटी की मजबूती हमें व्यथित किये दे रही है। भला यह कैसा दृष्टिकोण है? एक ही प्रौद्योगिकी, उसके दो रूप और हमारी दो विरोधाभासी प्रतिक्रियाएं। मुझे तो यह लगता है कि कल को मशीन अनुवाद 95 या 98 प्रतिशत तक शुद्ध हो जाएगा तो हम उसकी शुद्धता से परेशान हो जाएंगे। अब या तो तकनीक की शक्ति से चिंतित हो जाओ या फिर तकनीक की नाकामी से, लेकिन किसी एक बात पर तो टिको।

प्रौद्योगिकी का विद्यार्थी और शोधार्थी होने के नाते मैं इन बदलावों को लंबे समय से देखता आया हूं और जिस अंदाज में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का विकास हुआ है, उसे देखते हुए मेरे शुरू से विश्वास रहा है कि यह प्रौद्योगिकी हमारी दुनिया को बदलने की ताकत रखती है। वह लगातार बेहतर होती चली जाएगी और शायद एक दिन इंसान की क्षमताओं के बहुत करीब पहुंच जाए। वह कितना अच्छा या बुरा है, वह शोधकर्ता बताएंगे लेकिन मेरी दृष्टि में हम लोगों का प्रौद्योगिकी के प्रति नजरिया बहुत अस्पष्ट, अस्थिर और भ्रमपूर्ण है। हम चाहते तो हैं कि प्रौद्योगिकी में तरक्की हो लेकिन इतनी नहीं कि वह पूरी तरह सफल हो जाए। प्रौद्योगिकी के प्रति हमारे दृष्टिकोण के अंतर्विरोध किसी हद तक हमारे अपने असुरक्षा बोध की ओर संकेत करते हैं क्योंकि मशीन अनुवाद तथा चैट जीपीटी दोनों के संदर्भ में यदि कोई एक बात उभयपक्षी है, तो वह है एक किस्म का असुरक्षा बोध। जिन्हें हम प्रौद्योगिकी की कमजोरी समझ रहे हैं, कहीं वे हमारी कमजोरियां तो नहीं हैं? शायद हमारी अनभिज्ञता, कौशल न होना और नए घटनाक्रम को आत्मसात करने में आने वाली मुश्किल। लेकिन बदलाव तो स्थायी है और प्रौद्योगिकी निरंतर अपने-आपको उन्नत करने में जुटी है। हम भी तकनीकी दृष्टि से स्वयं को उन्नत करते रहें, यह बहुत आवश्यक है।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में निदेशक- भारतीय भाषाएं
और सुगम्यता के पद पर कार्यरत हैं)

Topics: Microsoft's 'Bing Chat' and Google's 'Bard' conversational artificial intelligencekeep pace with technologychatgpt‘चैटजीपीटी’माइक्रोसॉफ़्ट ने ‘बिंग चैट’ और गूगल ने ‘बार्ड’ नामक संवादात्मक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
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