बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहीं ये नदियां सूखती जा रही हैं, पर सरकारों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। दुर्भाग्य ये कि यह न तो समाचार-पत्रों की सुर्खियां बनती हैं और न ही किसी राजनीतिक दल के घोषणापत्र का हिस्सा। ऐसे में कुछ लोगों ने स्वयं ही अपना भाग्य संवारने का निर्णय लिया है।
बिहार को जल संसाधन की दृष्टि से संपन्न माना जाता है। यहां कभी 600 नदियां लोगों को खुशहाल बनाती थीं। परंतु अब अधिकांश नदियां सूखने के कगार पर हैं। बिहार की जीवनदायिनी गंगा नदी का जल क्षेत्र भी कम हो रहा है। बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहीं ये नदियां सूखती जा रही हैं, पर सरकारों ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
दुर्भाग्य ये कि यह न तो समाचार-पत्रों की सुर्खियां बनती हैं और न ही किसी राजनीतिक दल के घोषणापत्र का हिस्सा। ऐसे में कुछ लोगों ने स्वयं ही अपना भाग्य संवारने का निर्णय लिया है। पूर्णिया शहर के बीचोंबीच बहने वाली सौरा नदी अतिक्रमण और गंदगी के कारण समाप्त होने की स्थिति में थी, लेकिन आज जनसहयोग से यह पुन: प्रवाहमान हो गई है।
हो गई थी मृतप्राय
पूर्णिया शहर से होकर दो नदियां बहती हैं- सौरा और परमान। सौरा नदी मुख्य शहर के पूर्व में बहती है। शोधकर्ता सुमित प्रकाश इसका उद्गमस्थल अररिया जिलांतर्गत प्रसिद्ध साहित्यकार फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ के गांव औराही हिंगना के समीप बदरिया घाट के निकट झिंगना गांव में मानते हैं। झिंगना गांव के अहमदनगर चौर में अनेक जल धाराएं स्वत: फूटती हैं। इससे ही सौरा नदी का जन्म हुआ है। यह नदी अररिया, पूर्णिया होते हुए कटिहार के दिलारपुर में गंगा नदी में मिलती है।
आज इन जल धाराओं पर संकट है। नदी संरक्षण के लिए लगातार प्रयास करने वाले अखिलेश चंद्र सौरा नदी की तुलना लंदन की टेम्स नदी से करते हैं। अररिया और पूर्णिया के किसान खेती के लिए इसी नदी पर निर्भर थे। इसमें पाई जाने वाली मछलियां भी किसानों के लिए आय का अच्छा माध्यम हुआ करती थीं। लेकिन नदी के पानी के सूखने के साथ किसानों की आमदनी भी समाप्त होने लगी।
सौरा नदी के किनारे पुरनदेवी मंदिर और काली मंदिर जैसे प्रसिद्ध आस्था केंद्र स्थित हैं। शहर के काली मंदिर में देव दीपावली, कार्तिक पूर्णिमा पर हर साल कोसी आरती का वार्षिक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। पुरनदेवी मंदिर के बारे में जन श्रुति है कि पांडवों ने अज्ञातवास में जाने के पहले इस मंदिर में पूजा-अर्चना की थी। ऐसी प्रसिद्ध नदी भी शहरीकरण की भेंट चढ़ गई थी। लोगों ने इसे कचरा डालने की जगह बना दिया था।
नदी संरक्षण में जुटे रंजीव कुमार कहते हैं कि जनसंख्या के दबाव और विकास ने पारिस्थितिक असंतुलन के अलावा राज्य को बहुत नुकसान पहुंचाया है। बिहार कभी सैकड़ों नदियों की धाराओं से समृद्ध था, लेकिन अब ये नदियां अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए जूझ रही हैं। नदियों के तल पर अतिक्रमण और चल रहे निर्माण नदियों को निचोड़ रहे हैं। इस मुद्दे पर गंभीर सार्वजनिक बहस होनी चाहिए, लेकिन दुख की बात है कि कोई भी राजनीतिक दल इसमें दिलचस्पी नहीं दिखा रहा।
रंग लाई मेहनत
सरकारी और राजनीतिक उपेक्षा से त्रस्त हो स्थानीय लोगों ने नदी की सेहत सुधारने का निर्णय लिया। इसमें श्रीराम सेवा संघ ने पहल की। अखिलेश चंद्र के नेतृत्व में पूर्णिया के कुछ युवकों ने मृतप्राय सौरा नदी को पुन: प्रवाहमान बनाने का संकल्प लिया। अखिलेश चंद्रा के पत्रकार होने का लाभ भी मिला। मीडिया संस्थानों ने इस मुद्दे को प्रमुखता दी। बाद में एक मीडिया संस्थान भी इस मुहिम में शामिल हो गया।
नदी संरक्षण की दिशा में काम करने वाले ब्रज नंदन पाठक की ओर से पटना उच्च न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका से भी नदी की स्थिति सुधारने में मदद मिली। अखिलेश बताते हैं, ‘‘हम मामले को राजनीतिक दलों और सरकार के संज्ञान में लाने के लिए नियमित रूप से अभियान चला रहे थे, लेकिन चुनाव के समय अन्य मुद्दे हावी हो जाते थे। सबसे दुखद बात है कि राजनीतिक दल मानते ही नहीं कि यह मुद्दा उन्हें वोट दिला सकता है।’’
यही सब कारण रहे कि सौरा को संवारने की पहल 1987 में प्रारंभ हुई, लेकिन कुछ समय बाद यह प्रयास शिथिल-सा पड़ गया।पूर्णियावासी केवल सरकार को पत्र लिखते रहे। पहले सभी इसी कोशिश में थे कि सरकार इस मामले में पहल करे, लेकिन जब सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया, तब अंतत: लोगों ने अपने दम पर सौरा नदी को नया जीवन देने की पहल शुरू की। 30 वर्ष बाद 2017 में स्थानीय लोगों ने एक अभियान के तौर पर इस काम को शुरू किया। सौरा को पुन: प्रवाहमान बनाने के लिए 3 चरणों में प्रयास किए गए। पहले चरण में जन जागरण के लिए जगह-जगह पोस्टर लगाए गए। साइकिल यात्रा और प्रभात फेरी के माध्यम से लोगों को सौरा नदी के महत्व, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और वर्तमान स्थिति के बारे में बताया गया।
दूसरे चरण में नदी के उद्गम स्थल से लेकर जहां यह गंगा नदी में मिलती है, वहां तक पदयात्रा की गई। इस तरह, नदी प्रवाह वाले लगभग 100 किलोमीटर क्षेत्र में लोगों को जागरूक किया गया। लोगों के सहयोग से नदी की सफाई की गई और फिर उन्हें शपथ दिलाई गई कि भविष्य में वे सौरा नदी क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं होने देंगे, इसकी सफाई करेंगे और इसके अजस्र प्रवाह को कभी बाधित नहीं होने देंगे। तीसरे चरण में सरकारी स्तर पर प्रयास की पहल की गई। पूर्णिया के स्थानीय विधायक विजय कुमार खेमका और सांसद संतोष कुशवाहा ने सदन में सौरा के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया।
सभी स्तरों पर हुए लगातार प्रयास रंग लाए और लगभग मृत हो चुकी सौरा में पुन: जलधारा बहने लगी। नदी पुनर्जीवित हुई तो क्षेत्र का भू-जल स्तर भी बढ़ा। 2020 में पूर्णिया के जिलाधिकारी ने सौरा नदी के चरणबद्ध विकास का भरोसा दिया। जल जीवन हरियाली मिशन में सरकार को इसे शामिल करना पड़ा। मई 2023 में सौरा नदी के सौंदर्यीकरण के लिए 1 करोड़ 16 लाख 30 हजार की राशि स्वीकृत की गई है। अब शीघ्र ही सौरा नदी में ‘वाटर स्पोर्ट्स’ का भी आयोजन होगा।
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