शिवपुरी। मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित सेंट चार्ल्स स्कूल के औचक निरीक्षण के लिए पहुंची मध्य प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग की टीम को यहां कई खामियां मिली हैं। आयोग को मिशनरी के ग्वालियर-डबरा स्थित सेंट पीटर्स स्कूल की तरह ही यहां भी प्रबंधक मप्र स्कूल शिक्षा विभाग की कोई मान्यता नहीं दिखा पाए। आयोग के पूर्व निरीक्षण के दौरान पाए गए हार्ट एवं किडनी जैसे अंग इस बार प्रयोगशाला से गायब थे, लेकिन जांच कराकर जो इनके बारे में रिपोर्ट प्रस्तुत की जानी थी, वह भी इस बार के दूसरे निरीक्षण में स्कूल प्रबंधक नहीं दे सके। राज्य बाल संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) द्वारा यह जांच 2 सदस्यीय टीम डॉ. निवेदिता शर्मा और ओंकार सिंह ने की है।
आयोग की टीम को नहीं जाने दिया गया बिल्डिंग के अंदर
आयोग की टीम को यहां रुपयों के लेन-देन में भारी गड़बड़ी मिली है। कृषि भूमि पर स्कूल संचालित हो रहा है, विद्यालय के लिए भूमि का डायवर्जन सही नहीं पाया गया। विद्यालय के अंदर जहां आवासीय परिसर शिक्षकों के लिए बताया, वहां दूसरे राज्यों से आकर नन और सिस्टर्स रह रही हैं। संख्या बताई आठ और अंदर से बाहर आईं सिर्फ तीन। इस बिल्डिंग के भीतर आयोग की टीम को जाने नहीं दिया गया। जो महिलाएं यहां मिलीं भी तो उनका कोई पुलिस वेरिफिकेशन नहीं पाया गया। इस प्रकार से कई अन्य धांधलियां, आर्थिक अनियमितताएं यहां मिली हैं। जब इन सभी कमियों के बारे में स्कूल प्रशासन, खासकर सेंट चार्ल्स स्कूल की प्राचार्या सिस्टर लीसा चाको से जानना चाहा तो वे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाईं।
प्रयोगशाला से हार्ट-किडनी गायब मिले
राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा ने बताया कि इससे पूर्व 10 दिसम्बर 2022 को मिशनरी द्वारा संचालित इस स्कूल का निरीक्षण करने आई थी, उस समय स्पेशीमेन में ह्दय और किडनी मौजूद मिले थे। यह किस पशु की हैं, इसके बारे में स्कूल प्रशासन आयोग को कोई जवाब नहीं दे पाया था। स्कूली शिक्षा के नियमानुसार सिलेबस में कहीं भी स्पेशीमेन के ऑरिजनल प्रदर्शन की बात नहीं कही गई है। उसमें साफ बताया गया है कि लैब में अध्ययन मॉडल और चार्ट के द्वारा ही कराया जाएगा। ऐसे में यहां किसी के अंगों का मिलना कई प्रश्न खड़े कर रहा था, यह किसी जानवर के हैं या मानव के यह जांच का विषय था। ऐसे में मैंने जिला शिक्षा विभाग को इस संबंध में जांच करने के निर्देश दिए थे। वहीं, स्कूल से भी कहा था कि इसके बारे में बताएं कि यह किसका है, कहां से खरीदा गया, कोई खरीदने की रसीद होगी तो वह प्रस्तुत करें। लेकिन इस बार के निरीक्षण में प्रयोगशाला से यह दोनों ही स्पेसीमेन गायब मिले। न इस पर जिला शिक्षा अधिकारी की ओर से कोई जांच की गई और न हीं अब तक विद्यालय ही कोई पुख्ता जानकारी मुहैया करा सका, हमें जांच में उसके पास से हार्ट और किडनी खरीदने की कोई रसीद नहीं मिली है।
विद्यालय 1998 से बिना मान्यता के संचालित
डॉ. निवेदिता शर्मा ने बताया कि यह विद्यालय 1998 से अब तक बिना मान्यता के संचालित हो रहा है, इस बार गहराई से जांच करने पर जब प्राचार्य लीसा से मान्यता संबंधी राज्य शिक्षा विभाग के दस्तावेज़ मांगे गए तो वे कुछ भी प्रस्तुत नहीं कर पाईं बिना मान्यता के पास हुए बच्चों की मार्कशीट का क्या भविष्य है, यदि कोई उन्हें चैलेंज कर दे तो?
बिना अनुमति के बना दिए कई भवन
आयोग सदस्य डॉ. शर्मा का कहना यह भी था कि इस विद्यालय की चार मंजिला इमारत है, किंतु भवन निर्माण की इनके पास कोई स्वीकृति नहीं पाई गई। इसके अलावा भी जो निर्माण कार्य यहां अलग से कई जगह पर हुआ है, उसकी जिला प्रशासन के संबंधित विभाग द्वारा ली जानेवाली आवासीय निर्माण की कोई भी अनुमति इस स्कूल के पास नहीं है।
उन्होंने बताया कि बच्चों को टीसी एवं माईग्रेशन के नाम पर नगद वसूली की जा रही थी। किसी बच्चे को कोई राशि प्राप्त करने संबंधी कोई रसीद नहीं दी जा रही थी। जबकि इन दोनों के बदले एक छात्र से विद्यालय 350 रुपए वसूल रहा है। इस विद्यालय की 6 करोड़ वार्षिक आय होना सामने आया है। लेकिन इसके आंतरिक वितरण में अनेक कमियां आयोग ने पाई हैं।
नहीं है किसी के पास कोई दस्तावेज
आयोग के सदस्य ओंकार सिंह ने कहा कि यहां जो सिस्टर शिक्षक एवं अन्य स्टाफ के रूप में कार्य करती हुई दर्शायी गई हैं, उनमें प्रचार्य समेत सभी का वेतन, योग्यता एवं पुलिस वेरीफिकेशन संबंधित कोई भी दस्तावेज स्कूल प्रबंधन नहीं दिखा पाया। मांगने पर शासकीय कार्य में बाधा डालने का कार्य स्कूल प्राचार्य सिस्टर लीसा द्वारा किया गया। प्राचार्या लीसा स्टाफ लिस्ट में शामिल नहीं हैं, किंतु उनके द्वारा हजारों में वेतन लिया जा रहा है। साल भर लाखों रुपए स्कूल से वेतन के नाम पर लेने के बाद भी ज्यादातर लोग आयकर नहीं भरते ।
सेंट चार्ल्स सोसायटी के खाते में लाखों रुपए जमा कराता है स्कूल
ओंकार सिंह ने बताया कि स्कूल प्रबंधन ने स्वीकार किया कि वे नर्मदापुरम् (होशंगाबाद) की सेंट चार्ल्स सोसायटी में प्रतिमाह 3,65000/- रुपए जमा करवाते हैं, इस प्रकार से हर वर्ष इस समिति के खाते में स्कूल से 43 लाख से ज्यादा रुपए जमा कराए जाते हैं। जिसको कि सिस्टर्स के वेतन के रूप में दर्शाया गया है। पर इन सिस्टर्स के नाम स्कूल की टीचर एवं गैर टीचर किसी भी सूची में नहीं दिए गए हैं। इसके अलावा यहां स्टाफ आवास में कोई नहीं रहता है। उन्होंने बताया है कि अनेक खामियों को देखते हुए राज्य बाल संरक्षण आयोग ने इस विद्यालय को सील कर इसकी जांच जिला कलेक्टर, शिक्षा अधिकारी से किए जाने की अनुशंसा की है।
जिला शिक्षा अधिकारी ने लगाई नए प्रवेश पर रोक
जिला शिक्षा अधिकारी जो अब तक ये कह रहे थे कि स्कूल के पास मान्यता नहीं है तो क्या हुआ? उनके स्वर बदले हुए नजर आए हैं। समर सिंह राठौर ने शुक्रवार रात एक पत्र जारी कर ईसाई मिशनरी के स्कूल सेंट चार्ल्स को निेर्देशित किया है कि शिक्षा का अधिकार (आरटीई) के नियमों के उल्लंघन एवं राज्य की स्कूल संचालन संबंधी मान्यता 1998 से नहीं होने की स्थिति में विद्यालय में सत्र 2023-24 के लिए होनेवाले नवीन प्रवेश बिना जिला शिक्षा कार्यालय की अनुमति लिए नहीं किए जा सकेंगे।
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