पश्चिम बंगाल के सच को सामने लाती फिल्म ‘द डायरी आफ वेस्ट बंगाल’ के निर्देशक पर प्राथमिकी दर्ज कर बंगाल पुलिस ने उन्हें तलब कर लिया है, मानो सच दिखाना अपराध हो। यह फिल्म अभिव्यक्ति के झंडाबरदारों को बर्दाश्त नहीं हो रही
केरल में मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा हिंदू लड़कियों को अपने जाल में फंसा कर, उनका कन्वर्जन कराकर उन्हें इस्लामी आतंकवाद के कुएं में धकेलने के मुद्दे पर बनी फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ पर सेकुलर गिरोह का हंगामा अभी थमा भी नहीं कि एक नयी फिल्म को लेकर वितंडा प्रारंभ हो गया है। नयी फिल्म है ‘द डायरी आफ वेस्ट बंगाल’।
इस फिल्म का ट्रेलर अप्रैल माह के आखिर में जारी हुआ था। एक माह बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने यह कहते हुए फिल्म के निर्देशक सनोज मिश्रा को नोटिस थमाकर तलब कर लिया कि यह फिल्म पश्चिम बंगाल को बदनाम करती है। मानो सच को सच दिखाना अपराध हो। यह अलग बात है कि सनोज मिश्रा ने फिलहाल पश्चिम बंगाल पुलिस के समक्ष पेश होने के लिए एक माह की मोहलत ले ली है। पश्चिम बंगाल सरकार की यह कार्रवाई इस तथ्य के बावजूद है कि ‘द केरल स्टोरी’ के प्रदर्शन पर राज्य में प्रतिबंध लगाने के राज्य सरकार के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय ने न सिर्फ पलट दिया बल्कि राज्य सरकार को बहुत लताड़ भी लगायी।
दरअसल, ‘द डायरी आफ वेस्ट बंगाल’ के ट्रेलर में दावा किया गया है कि पश्चिम बंगाल की सरकार वहां रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को बसा रही है। इसके अलावा इसमें हिंदुओं की हत्या और शरीयत कानून को लेकर भी दावे किये गये हैं। लखनऊ में ट्रेलर लॉन्च करने के मौके पर फिल्म के निर्माता जितेंद्र त्यागी उर्फ वसीम रिजवी ने कहा था कि पिछले कुछ वर्षों में पश्चिम बंगाल के हालात बेहद खतरनाक होते जा रहे हैं। वहां बड़े स्तर पर बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों को बसाया जा रहा है।
उन्होंने कहा था कि वहां की सरकार रोहिंग्याओं को अपना वोट बैंक बना रही है जिसके तहत इन लोगों के नाम आधार कार्ड और वोटर लिस्ट में डलवाये जा रहे हैं। यही कारण है कि बांग्लादेश से सटे पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती जिलों में रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी बढ़ती जा रही है। पश्चिम बंगाल में रह रहे हिंदू परिवार इनसे डरकर अपना घर छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। उन पर जो जुल्म किये जा रहे हैं, उसे इस फिल्म में दिखाया गया है। पश्चिम बंगाल की इस सच्चाई को फिल्म के माध्यम से पर्दे पर उतारा गया है। लेखक-निर्देशक सनोज मिश्रा का कहना है कि हमारा इरादा राज्य की छवि को खराब करना नहीं है। हमने फिल्म में केवल तथ्य दिखाये हैं जिन पर गहन शोध किया गया है।
रोहिंग्याओं की भारत में घुसपैठ कराने के लिए कई गिरोह सक्रिय हैं, वे पहचान बदलकर पश्चिम बंगाल में मकान बनवा कर रहते हैं। यह कई राज्यों की एटीएस और एनआईए की कार्रवाइयों से सामने आ चुका है।
2 मिनट 12 सेकेंड के ट्रेलर में पश्चिम बंगाल के हालात की कश्मीर से तुलना की गयी है। बंगाल से सटी बांग्लादेश की सीमा से रोहिंग्या मुसलमानों को कांटेदार बाड़ को पार करके पश्चिम बंगाल में प्रवेश करते दिखाया गया है। राज्य में अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण की राजनीति और इससे अन्य समुदायों को हो रही समस्या दिखायी गयी है। ट्रेलर में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को राज्य में सीएए और एनआरसी लागू करने का विरोध करते दिखाया गया है।
‘मुझे जेल में मारा जा सकता है’
आरसीपीसी की धारा 41 के तहत प्राप्त नोटिस के संबंध में निर्देशक सनोज मिश्रा ने कहा कि ‘मैं आतंकवादी नहीं हूं। मैंने कोई असंवैधानिक काम नहीं किया है। यह फिल्म सत्य घटनाओं पर आधारित है। मेरे खिलाफ प्राथमिकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप है। मुझे पश्चिम बंगाल पुलिस ने तलब किया है। वहां जेल में मुझे जान से भी मारा जा सकता है।’ सनोज मिश्रा ने एक फेसबुक पोस्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मदद मांगी है। सनोज ने पोस्ट में लिखा है, ‘मेरी फिल्म द डायरी आफ वेस्ट बंगाल को बिना देखे ट्रेलर के आधार पर बंगाल पुलिस ने मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है। मुझे गिरफ्तार कर जेल में मारा जा सकता है। सच बोलने के कारण मुझे प्रताड़ित किया जा रहा है।’
पश्चिम बंगाल में तो कश्मीर की तरह ‘सफाई अभियान’ चल रहा है। किसी राजनीतिक दल के साथ ऐसा नहीं होता कि पंचायत चुनाव में उसके सैकड़ों लोग मार दिये जाएं, दर्जनों लोग पेड़ों-खंभों पर टांग दिये जाएं। पश्चिम बंगाल में घुसपैठिए रोहिंग्याओं के वोटर आईडी तक बन रहे हैं। मुस्लिमों को खुश रखने के लिए बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हिंदुओं की संस्कृति पर हमलावर नीतियां लागू कर रही हैं। दुर्गा पूजा पर रोक से लेकर शैक्षिक किताबों तक में मुस्लिम समाज के अनुरूप बदलाव किये जा रहे हैं।
रोहिंग्याओं को संरक्षण
रोहिंग्याओं की भारत में घुसपैठ कराने के लिए कई गिरोह सक्रिय हैं, वे पहचान बदलकर पश्चिम बंगाल में मकान बनवा कर रहते हैं। यह कई राज्यों की एटीएस और एनआईए की कार्रवाइयों से सामने आ चुका है। दिल्ली के विभिन्न इलाकों में रोहिंग्याओं ने पकड़े जाने पर उन्होंने खुद को पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले का निवासी बताया। उनके पास से पश्चिम बंगाल के वोटर कार्ड भी बरामद हुए। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बंगाल के कूचबिहार, मालदा, अलीपुरद्वार, जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग, उत्तर दिनाजपुर और दक्षिण दिनाजपुर जिले में रोहिंग्या वहां के मुसलमानों के बीच छिपकर रहते हैं। दार्जिलिंग समेत अन्य जगहों पर दलालों के माध्यम से तीन-चार हजार रुपये में इन्हें फर्जी प्रमाण पत्र मिल जाते हैं।
एआईए ने दिसंबर 2021 में दर्ज एक केस में बांग्लादेश के मुस्लिमों और रोहिंग्याओं की अवैध तस्करी का खुलासा किया। बांग्लादेश के मुस्लिमों एवं रोहिंग्याओं को भारत में लाकर उनके फर्जी दस्तावेज तैयार कराये गये। एनआईए ने इस केस को लेकर कई जगह छापे भी मारे। एक दशक में पांच लाख से अधिक बांग्लादेशी महिलाएं व बच्चे, अवैध तौर पर भारत में आ चुके हैं। यहां से ये देश के कोने-कोने में फैल चुके हैं। रोहिंग्या आतंकी गुट हूजी के आसान निशाने पर भी हैं। परंतु यह सब जब फिल्म में दिखाया जाता है तो पश्चिम बंगाल सरकार इस सच को दबाने के लिए अभिव्यक्ति पर आघात करने से नहीं चूकती।
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