अपना देश, अपनी भाषा
May 10, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

अपना देश, अपनी भाषा

कोई भी विदेशी भाषा राष्ट्र की प्रतिभा को अभिव्यक्त नहीं कर सकती। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्पष्ट दृष्टिकोण है कि यदि हमें विश्व का नेतृत्व करना है तो अंग्रेजी भाषा के वर्चस्व के विपरीत भारतीय भाषाओं की स्थापना करनी ही होगी

by शेषांक चौधरी
Jun 1, 2023, 02:12 pm IST
in भारत, विश्लेषण, संघ, शिक्षा
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं, वरन् किसी भी राष्ट्र के स्वाभिमान तथा उसकी प्राचीन संस्कृति की संवाहिका भी होती है। गुलाम देशों की अपनी कोई भाषा नहीं होती। वे अपने शासकों की भाषा का व्यवहार करने को विवश होते हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ किसी भी अभारतीय भाषा के आधिपत्य का विरोध और भारतीय भाषाओं के अनुप्रयोग का पक्षधर रहा है। उसका मानना है कि कोई भी विदेशी भाषा राष्ट्र की प्रतिभा को अभिव्यक्त नहीं कर सकती, न ही उसके विकास में सहायक हो सकती है। भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं, वरन् किसी भी राष्ट्र के स्वाभिमान तथा उसकी प्राचीन संस्कृति की संवाहिका भी होती है। गुलाम देशों की अपनी कोई भाषा नहीं होती। वे अपने शासकों की भाषा का व्यवहार करने को विवश होते हैं। यही कारण है कि देश की आजादी के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने यह मांग की कि देश का प्रशासन हमारी अपनी भाषा में चलाया जाए। मगर सरकार ने स्वाधीनता के 15 वर्षों बाद तक अंग्रेजी के राजभाषा के रूप में अनुप्रयोग की अनुमति दी थी।

जब इस अवधि की समाप्ति से पूर्व ही तत्कालीन सरकार ने प्रशासन में इसका उपयोग सदैव जारी रखने के अपने निर्णय की घोषणा की, तब संघ ने इसका प्रखर विरोध किया। संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने वर्ष 1963 में ‘शासन की भाषा नीति’ नामक प्रस्ताव पारित कर अपना मंतव्य स्पष्ट किया जिसमें कहा गया कि ‘‘एक राष्ट्रीय भाषा के माध्यम से प्रशासन, राष्ट्र की स्वतंत्रता और सार्वभौमिकता का अभिन्न अंग है। इस तथ्य के बाद भी, कि भारत में अत्यंत विकसित अनेक राष्ट्रीय भाषाएं हैं, यह दुर्भाग्य की बात है कि हमारी स्वतन्त्रता के सोलह वर्ष पश्चात भी देश के प्रशासन में अंग्रेजी, प्रभुत्व के स्थान पर बैठी हुई है।

संविधान ने वर्ष 1965 के बाद अंग्रेजी को तिलांजलि दे देने का प्रावधान किया था; परन्तु सरकार ने संविधान के इस निर्देश को लागू करने के लिए कोई पग नहीं उठाया है। अब उन्होंने अंग्रेजी को सह-राजभाषा घोषित करने के लिए विधेयक प्रस्तुत करने और इस प्रकार प्रशासन में इसका उपयोग सदैव जारी रखने के अपने निर्णय की घोषणा की है। यह निर्णय सिद्धान्त और व्यवहार, दोनों ही दृष्टियों से घोर असामयिक और अनुचित है।’’ यही नहीं, अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने वर्ष 1965 में भी एक ‘भाषा नीति’ नामक प्रस्ताव पारित किया, उसमें भी देशी भाषाओं के विपरीत शासन द्वारा अंग्रेजी भाषा को महत्ता दिए जाने पर चिंता व्यक्त की गई।

संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने वर्ष 1963 में ‘शासन की भाषा नीति’ नामक प्रस्ताव पारित कर अपना मंतव्य स्पष्ट किया जिसमें कहा गया कि ‘‘एक राष्ट्रीय भाषा के माध्यम से प्रशासन, राष्ट्र की स्वतंत्रता और सार्वभौमिकता का अभिन्न अंग है। इस तथ्य के बाद भी, कि भारत में अत्यंत विकसित अनेक राष्ट्रीय भाषाएं हैं, यह दुर्भाग्य की बात है कि हमारी स्वतन्त्रता के सोलह वर्ष पश्चात भी देश के प्रशासन में अंग्रेजी, प्रभुत्व के स्थान पर बैठी हुई है।

अगर हम विश्व के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि प्राय: दुनिया के प्रत्येक देश ने परतन्त्रता की बेड़ियों से मुक्ति के बाद अपने देश के उत्थान की गाथा अपनी भाषा में लिखी है। इस्राइल ने तो अपनी तब मृतप्राय ‘हिब्रू’ भाषा को अपनी राष्ट्रभाषा बनाया और आज वह भाषा पूरी दुनिया में तकनीकी की प्रमुख भाषाओं में शामिल है।

आज लोग हिब्रू का अनुवाद अन्य भाषाओं में करने को विवश हैं। रूस ने रूसी, चीन ने चीनी (मंदारिन) और जापान ने जापानी भाषा को अपनी राज-काज तथा शिक्षा-दीक्षा की माध्यम भाषा बनाया। हमारे छोटे से पड़ोसी देश नेपाल ने भी अपनी भाषा नेपाली में ही अपनी प्रगति यात्रा की शुरुआत की। हिन्दुस्थान इसका अपवाद रहा है। औपनिवेशिक दासता से मुक्ति के बाद एक प्राचीन राष्ट्र होते हुए भी अंग्रेजी यहां पर राज-काज की भाषा बनी हुई है। अंग्रेजों के जाने के बाद भी अंग्रेजी का सिक्का कायम है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ‘सरकार की विभिन्न व्यवस्थाओं में अंग्रेजी को दी जाने वाली अनुचित वरीयता का विरोधी रहा है।’

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य गुरुजी के अनुसार-‘विदेशी भाषा अंग्रेजी अपने साथ-साथ अंग्रेजी संस्कृति एवं जीवन के अंग्रेजी प्रतिमान भी अवश्य लाएगी। विदेशी जीवन प्रतिमानों की जड़ यहां जमने देना, निज संस्कृति एवं धर्म की जड़ खोदना होगा।’ उनका मानना है कि शताब्दियों के विदेशी शासन के बावजूद अगर हम अपनी सभ्यता और संस्कृति के अविरल प्रवाह को अक्षुण्ण रखने में सफल हो पाए हैं तो इसका कारण यही है कि हमने अपने सांस्कृतिक उत्तराधिकार की थाती को अपनी भाषाओं के माध्यम से संजोए रखा।

वे कहते हैं कि ‘अंग्रेजी को स्वीकार करने का अर्थ अपनी जीवनी-शक्ति के मुख्य स्रोतों को क्षीण करना होगा। अंग्रेजों के राज्य के साथ आई अंग्रेजी, हमारे ऊपर कृत्रिम रूप से लादी गई है। अब हम स्वतन्त्र हो चुके हैं, हमें इसे उतार फेंकना चाहिए। अंग्रेजी को वही स्थान देते रहना, जो इसे विदेशी शासनकाल में प्राप्त था; मानसिक दासता का लक्षण है और संसार की दृष्टि में हमारे राष्ट्रीय सम्मान के लिए कलंक है।’

हालांकि संघ विश्व की अन्यान्य भाषाओं में उपलब्ध विपुल ज्ञान-सम्पदा को अर्जित करने हेतु विश्व की विभिन्न भाषाओं को सीखने का हिमायती है, मगर जैसा कि हिंदी नवजागरण के अग्रदूत भारतेंदु हरिश्चंद्र लिखते हैं कि-
‘अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषा ज्ञान के, रहत हीन के हीन।’
अगर हमें इस हीनता से पार पाना है तो हमें स्व-भाषा को किसी विदेशी भाषा के वर्चस्व की तुलना में वरीयता देनी ही होगी। विश्व की भाषाओं में उपलब्ध ज्ञान-संपदा को अर्जित करने के लिए उन भाषाओं का अध्ययन करना और उनके बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करना कोई बुरी बात नहीं है। मगर उन्हें अपनी मातृभाषा से अधिक वरीयता देना संघ की दृष्टि में अनुचित है। इसीलिए जब सरकार ने अंग्रेजी को राजभाषा बनाने का विधेयक प्रस्तुत किया तो संघ ने उसका विरोध किया। संघ का मानना था कि ‘किसी विदेशी भाषा को सह-राजभाषा स्वीकार करना भी राष्ट्रीयता की भावना के सर्वथा विपरीत है। व्यवहार में इसका अर्थ होगा-अंग्रेजी का पूर्ण प्रभुत्व और इस प्रकार भारत की विभिन्न राष्ट्रीय भाषाओं को उनके न्यायसम्मत स्थान से वंचित करना।’

‘भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर होने वाली बौद्धिक बहस के लिए एक मात्र भाषा अंग्रेजी अपनाने से हम कई मोर्चों पर हार गए। सबसे पहले अपवाद को छोड़ दें तो, एक समुदाय के रूप में हमारे सर्वोत्तम संस्थान भी विश्व स्तर पर कभी नेतृत्व नहीं कर सकते हैं, यदि अंग्रेजी उच्च स्तरीय बौद्धिक बहस की एकमात्र भाषा रहती है। हमारे सर्वोत्तम दिमाग भी सिर्फ दूसरों के विचारों को व्यक्त करने वाले वाक्पटु ही होंगे।’

-के. विजय राघवन, वरिष्ठ वैज्ञानिक

औपनिवेशिक काल में ज्ञानोत्पादन पर औपनिवेशिक भाषा (अंग्रेजी) के एकतरफा प्रभुत्व के कारण हमारी सभी भारतीय भाषाएं इस मामले में एक संस्थागत रक्ताल्पता का शिकार रही हैं। हम अपना मौलिक चिंतन किसी थोपी हुई भाषा में नहीं कर सकते। यह हमारी मातृभाषा में ही सम्भव है।

देश के वरिष्ठ वैज्ञानिक के. विजय राघवन ने ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ में छपे अपने एक लेख में लिखा है – ‘भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर होने वाली बौद्धिक बहस के लिए एक मात्र भाषा अंग्रेजी अपनाने से हम कई मोर्चों पर हार गए। सबसे पहले अपवाद को छोड़ दें तो, एक समुदाय के रूप में हमारे सर्वोत्तम संस्थान भी विश्व स्तर पर कभी नेतृत्व नहीं कर सकते हैं, यदि अंग्रेजी उच्च स्तरीय बौद्धिक बहस की एकमात्र भाषा रहती है। हमारे सर्वोत्तम दिमाग भी सिर्फ दूसरों के विचारों को व्यक्त करने वाले वाक्पटु ही होंगे।’

इस प्रकार हम देखते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अंग्रेजी भाषा के वर्चस्व का विरोध करते हुए उनकी तुलना में भारतीय भाषाओं को महत्व देने का पक्षधर है। संघ का मानना है कि- ‘भारत को विश्वगुरु बनाने के क्रम में भारत की सभी भाषाओं को प्रोत्साहन देना आवश्यक है।
(लेखक हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं)

Topics: वरिष्ठ वैज्ञानिक के. विजय राघवनराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघप्राचीन संस्कृतिस्वाधीनता के 15 वर्षों बादराष्ट्र के स्वाभिमानप्राचीन संस्कृति की संवाहिकाराष्ट्र की प्रतिभा
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री स्वांत रंजन

संस्कृति रक्षक अहिल्याबाई

यह युद्ध नहीं, राष्ट्र का आत्मसम्मान है! : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ऑपरेशन सिंदूर को सराहा, देशवासियों से की बड़ी अपील

मौत के बाद भी कई जिंदगियों को जीवन दे गई कुसुम

पुस्तक का लोकार्पण करते श्री मोहनराव भागवत। साथ में हैं (बाएं से) स्वामी विज्ञानानंद, प्रो. योगेश सिंह और स्वामी कृष्णशाह विद्यार्थी

‘आध्यात्मिक चेतना का सजीव रूप है धर्म’

मुसलमानों का एक वर्ग वक्फ संशोधन कानून के समर्थन में

वक्फ संशोधन विधेयक : रसातल में कांग्रेस!

अभियान के दौरान पौधारोपण करते कार्यकर्ता

किशनगंज में पर्यावरण रक्षा अभियान

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Pakistan Defence minister Khawaja Asif madarsa

मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों को पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने बताया सेकंड लाइन ऑफ डिफेंस

भारतीय सेना के हमले में तबाह हुआ पाकिस्तानी आतंकी ठिकाना

जब प्रश्न सिंदूर का हो, तब उत्तर वज्र होता है

Pahalgam terror attack

आतंक को जवाब: पाकिस्तान के 4 एयरबेस पर फिर सेना ने किया हमला

एक शिविर में प्रशिक्षण प्राप्त करते संस्कृत प्रेमी

15,000 लोगों ने किया संस्कृत बोलने का अभ्यास

Pakistan attacks in india

जम्मू-कश्मीर से लेकर राजस्थान तक पाकिस्तान ने किए हमले, सेना ने दिया मुंहतोड़ जवाब

चित्र प्रतीकात्मक है

चाल पुरानी मंशा शैतानी : ड्रोन अटैक की आड़ में घुसपैठ की तैयारी में पाकिस्तान!

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री स्वांत रंजन

संस्कृति रक्षक अहिल्याबाई

जल बचाओ अभियान से जुड़े विशेषज्ञ

‘सबसे बोलो, नल कम खोलो’

Representational Image

IMF से पैसा लेकर आतंकवाद में लगा सकता है पाकिस्तान, भारत ने बैठक में जताई चिंता, रिकॉर्ड पर लिया बयान

PIB Fact Check : दिल्ली आगजनी और मिसाइल हमले का फर्जी वीडियो वायरल, PIB ने खोली पाकिस्तान की पोल!

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies