फिर से शोर है, फिर से एक बार बहसें गर्म होंगी, मगर फिर से एक बार मूल प्रश्न से दृष्टि चुरा ली जाएगी कि आखिर 16 वर्ष की साक्षी को चाकू किसने मारा? दिल्ली की 16 वर्ष की साक्षी सहित न जाने कितनी लड़कियां पहचान को मिटाने के उस युद्ध का शिकार हो रही हैं, जिसे हाल ही में अभी केरल स्टोरी में दिखाया गया है। मगर केरल स्टोरी को झूठ ठहराने वाला वर्ग और साक्षी की घटना में मुख्य दोषी को नकारने वाला वर्ग एक ही है, जिसकी दृष्टि में हिन्दू लड़कियों की धार्मिक पहचान को लेकर हत्याएं कोई बड़ी घटना नहीं हैं।
16 वर्ष की साक्षी की जिस प्रकार से शाहबाद डेरी इलाके में साहिल खान ने हत्या की है, वह दिल दहला देने वाली है। साहिल ने साक्षी पर चाकू से 40 बार वार किये और फिर पत्थर से वार किए, वह दिल दहला देने वाला है। और जो वीडियो है उसमें यह भी दिख रहा है कि साक्षी पर लगातार वार होते रहे और उसे कोई बचाने भी नहीं आया।
साक्षी का शव चीख चीख कर उस षड्यंत्र की बात कर रहा है, जो केरल स्टोरी और द कन्वर्जन फिल्म में दिखाया गया है, मगर इसे वह वर्ग स्वीकारने से इंकार करता है, जो साक्षी जैसी मासूम लड़कियों को इन जिहादियों के जाल में फंसाने के लिए जिम्मेदार होता है। आज जब साक्षी की हत्या की बात सोशल मीडिया या मीडिया पर होगी, तो क्या उस जाल पर बात की जाएगी जो ऐसी लड़कियों के लिए बिछाया जाता है?
दरअसल नहीं! जो तस्वीर अब सामने आई है, अर्थात गिरफ्तार किए गए साहिल की, उससे एक बहुत ही चौंकाने वाला दृश्य सामने आया है और वह साहिल के हाथ में कलावा! तो क्या उसने हिन्दू नाम बताया होगा? यह घटना मात्र हत्या नहीं है, बल्कि जिस घृणा के साथ हत्या की गयी है, वह लोक के अस्तित्व के प्रति घृणा को दिखाती है।
ये है मोहम्मद साहिल s/o सरफ़राज़
इसी हैवान ने दिल्ली में नाबालिग हिंदू लड़की को बेरहमी से चाकुओं से गोद गोद कर मार डाला
इस साहिल के हाथ में कलावा कैसे ?
ये लव जिहाद है
ये बेटियों के ख़िलाफ़ सुनियोजित हमला है
साहिल के मास्टर माइंड कौन है ? pic.twitter.com/3S2ucmSDy8
— Kapil Mishra (@KapilMishra_IND) May 29, 2023
प्रश्न यही उठता है कि आखिर उसके हाथ के कलावा क्यों है? क्यों केरल स्टोरी को झूठ ठहराने वाले लोग साक्षी की कैमरे में कैद हुई हत्या के मुख्य कारण अर्थात हिन्दू पहचान से घृणा पर बात नहीं करते हैं? यह घटना तो कैमरे में कैद हुई तो पता चला कि नृशंसता का यदि कोई नाम होता है तो साहिल होता है। मगर जो घटनाएं कैमरे में कैद नहीं होतीं हैं उनका क्या?
इस घटना में तो कथित लोग प्यार का हवाला भी दे सकते हैं। हालांकि साक्षी के सबसे बड़े दोषी यही प्यार की आजादी वाले लोग ही हैं क्योंकि वही उनके दिल में यह बात डालते हैं कि प्यार तो हर सीमा, हर धर्म, हर जाति से परे होता है, इसलिए प्यार में यह सब नहीं देखना चाहिए। जो उम्र लड़कियों की पढने की होती है, उस उम्र में कथित प्यार की रूमानियत के प्रति यही फेमिनिज्म उन्हें प्रेरित करता है, और जब उस फेमिनिज्म का शिकार लड़कियां किसी साहिल का शिकार होती हैं, तो वह फेमिनिज्म उन लड़कियों के पक्ष में नहीं बल्कि कथित अल्पसंख्यक साहिल के पक्ष में जाकर खड़ा हो जाता है कि “आरोपी का नाम” लेकर बात न हो!
यही जाल है जो सूक्ष्मता से बुना जाता है और फिर जाल के नीचे कई अपराध छिपा दिए जाते हैं। यदि यह प्यार है तो फिर घृणा किसे कहते हैं?
इस बहाने यह प्रश्न भी उठना चाहिए कि 16 वर्ष की बच्चियों के दिल में बॉयफ्रेंड वगैरा की रूमानियत कौन भरता है? कई बार यह देखा गया है कि जब इन मासूम बच्चियों को यह समझाने का प्रयास किया जाता है कि वह ऐसे लोगों से दूर रहें, तो वह समझाने वालों को ही गलत दृष्टि से देखती हैं और उन्हें ही पिछड़ा, दकियानूसी आदि कहती हैं। कई बार ऐसे हिन्दू संगठन की वीडियो सामने आते हैं।
क्योंकि इन बच्चियों का ब्रेन वाश इस सीमा तक कर दिया जाता है कि वह अपने को बचाने वालों को भक्षक समझ बैठती हैं और अपना शोषण या कभी कभी तो हत्या करने वालों को अपना रक्षक समझ बैठती हैं। अभी कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश से ही एक लड़की का मामला सामने आया था, जिसमें एक मुस्लिम युवक ने हिन्दू लड़की से पहचान बढ़ाई, नाम गलत बताया और शारीरिक सम्बन्ध बनाए।
फिर उस पर मतांतरण का दबाव डालने लगा। एक प्रश्न यह भी उठता है कि लड़कियों के मन में विवाह से पहले शारीरिक सम्बन्धों के प्रति आकर्षण कौन भरता है? एक नियत उम्र से पहले शारीरिक सम्बन्ध बच्ची के शारीरिक विकास की दृष्टि से भी उचित नहीं है। यदि इन्हें एक बड़ा वर्ग शुचितावाद कहकर ख़ारिज भी करता है, तो भी यह प्रश्न तो उनसे करना ही चाहिए कि क्या एक चौदह या पंद्रह वर्ष की बच्ची का शरीर, शारीरिक संबंधों के प्रति तैयार होता है? क्या उसके सामने कोई चिकित्सा समस्या नहीं आती हैं?
यदि आती हैं तो यह अभियान क्यों नहीं चलाया जाना चाहिए कि जब तक बच्ची इस कथित प्यार मोहब्बत जैसे शब्दों के विषय में सब कुछ नहीं जान जाती, जब तक मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हो जाती, तब तक उसके दिमाग में इनके प्रति रूमानियत न भरी जाए?
बॉलीवुड में सोलह वर्ष की उम्र को लेकर तमाम गाने लिखे गए हैं। आखिर इतनी कम उम्र में बच्चियों के दिल में शिक्षा के स्थान पर सोलह बरस की बाली उमर जैसी बातें बैठाने से किसका लाभ होता है? क्या साहिल जैसे शिकारियों का? या आमिर, जाबिर, नादिर और बहाव जैसे लोगों का जिन्हें उत्तर प्रदेश पुलिस ने पकड़ा है?
16 वर्ष की साक्षी की हत्या जितनी दुखद है, उतना ही दुखद है उस मूल विषय पर बात न होना, उन तमाम कारकों पर बात न होना, जो किसी भी देश की, समाज की बच्चियों को शिक्षा के स्थान पर ऐसे जाल की ओर धकेल रहे हैं, जहां पर उनके लिए अंधकार के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।
केरल स्टोरी जैसी फिल्मों का विरोध करने वाला वर्ग हमारी बेटियों को उन्हीं चाकुओं के हवाले करना चाहता है, जो साहिल ने साक्षी के मारे हैं, क्योंकि वह समय से पहले शारीरिक सम्बन्ध की वकालत करते हैं, जो शारीरिक और मानसिक एवं आर्थिक हर तरीके से लड़की के लिए हानिकारक हैं।
यह शुचिता से बढ़कर लड़कियों के शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक तनाव से रक्षा के लिए है कि सही समय पर प्रेम की परिभाषा समझें, सही समय पर सही लड़के का चयन करें, पूरी पहचान के बाद ही बातचीत जैसा कदम बढ़ाएं, क्योंकि उन्हें समझाया जाता है कि प्यार अँधा होता है, मगर यह अंधा प्यार एक ऐसे अंधे मोड़ पर ले आता है, जहां पर अन्धकार के अतिरिक्त और कुछ नहीं है!
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